अहिल्याबाई होलकर...
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- Опубліковано 29 вер 2024
- ।। जय जयतु अहल्यामाता ।।
देवी, पुण्यश्लोक, साध्वी, मातोश्री,
गंगाजलनिर्मलसम गंगाभागीरथी ।
पवित्रता- शुद्धता - सात्त्विक चारित्र्य ने आपको दी उपाधि ।
जीवन आपका आपत्तियों से व्याप्त दुःखभरी कह अविचल रहकर, प्रजानुरंजनसमर्पित ।
जीवन बिताती कर्तृत्वशालिनी
देवी अहल्या की कर्तव्यनिष्ठा अनुपम, सटीक उसकी वाणी ।
मंदिर-सराय-कुएं-बावडी रस्ते-घाट निर्माणी ।
दुर्गम भागों में अन्नछत्र चलाने से धर्मयात्रामें सुगम बनी ।
शत्रुद्वारा खंडविखंड मंदिर गौरवशान से फिर बनवाएं।
अपमानों के चिन्ह मिटायें स्वाभिमान के ध्वज लहराएं ।
पक्षी-प्राणी की भी चिंता, राज कानून नये बनाए ।
शिवलिंग हाथ लेकर निस्पृहता से न्याय दियें ।
शिवत्व के अनुभव से सम्मुख व्यक्ति सद्गद होता ।
'भील कौडिं' से भीलों का जीवन आलोकित किया ।
'अनंतफंदी' शृंगार रससे भक्तिमार्ग की ओर चला ।
निर्माण-लेखन कार्य से हजारो हाथों को काम दिया ।
वस्त्र बुनाई से महेश्वर का नाम दूर दूर फैलाया ।
उपभोगशून्य जीवन, परहित निज धन का व्यय किया ।
वाणी-लेखनी दुर्बल हमारी, कैसा वर्णन करें आपका?
आपके चरित्र आलोक में हम जीवन की राह चलें ।
धर्महित काम करने की नित्य प्रेरणा पायें ।
हे राजमाता अमर आपका नाम ।
हे लोकमाता अमर आपका काम ।
हे देवी, आप महेश्वर की महाश्वेता, पद्मश्वेता ।
जन्मत्रिशती आपकी
'जय जयतु अहल्यामाता'
घोष नित गूंजता ।