प्यार किसे कहते हैं?

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  • Опубліковано 27 сер 2024
  • रसमय उपदेश :
    जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की काव्य रचनाओं में जो रस सिक्त तत्त्वज्ञान भरा है, वह इस बात का द्योतक है कि उनका अपना व्यक्तित्व भक्ति के परमोज्ज्वल स्वरूप से ऊर्जस्वित, जीव कल्याण की करुणामयी भावना से द्रवित एवं श्रीराधा-कृष्ण के अलौकिक प्रेम रस से ओतप्रोत है। भक्तियोगरसावतार की उपाधि प्राप्त श्री कृपालु जी महाराज हमारे वर्तमान विश्व के पाँचवें मूल जगद्गुरु हैं। वेद-शास्त्रों के प्रमाणों पर आधारित उनके सारगर्भित प्रवचन तो वैदिक हिन्दू सनातन धर्म के वास्तविक सिद्धान्त को सरलता एवं स्पष्टता से समझने का प्रमुख आधार हैं ही, उनकी सरस संगीतमय संकीर्तन रचनाएँ भी सिद्धांत ज्ञान से परिपूरित हैं। श्री महाराज जी द्वारा रचित रसमय संगीतात्मक काव्य कृतियों में कितना गहन तत्त्व ज्ञान लबालब भरा है, इसका वास्तविक परिचय तब मिलता है जब वे स्वयं अपने स्वरचित संकीर्तनों की व्याख्या करते हैं। ये बहुत आकर्षक व्याख्याएँ हैं, जिनमें रस (भक्तियोगरसावतार) एवं उपदेश (जगद्गुरूत्तम) का कृपामय सामंजस्य है।
    यह वीडियो ऐसे ही एक रसमय संकीर्तन की व्याख्या पर आधारित है, जिसकी माधुरी का पान करते करते सहज ही परमोत्कृष्ट उपदेश साधक के अंतर्मन में उतर जाता है।
    इस वीडियो के कुछ अंश हैं-
    "प्यार वार तू का जाने कान्हा …कान्हा कान्हा कान्हा।
    भगवान का एक वाक्य है-
    तं भ्रंश्यामि संपद्योः यश्चेच्छामनुग्रहं।
    यमहमनुगृह्णामि हरिष्ये तद्धनं शनैः।
    मैं जिस पर कृपा करता हूँ उसका संसार छीन लेता हूँ।
    सुना?
    आप लोग जितने बैठे हैं,
    कोई मानेगा इस सिद्धांत को?
    बाप मर जाये, बेटा मर जाये, पति मर जाये,
    बीवी मर जाये, धन लुट जाये,
    शरीर में रोग हो जाये तो इसको भगवान की कृपा realize करे, भीतर से महसूस करे।
    वो शरणागत भक्त है।
    लेकिन हम लोगों का कोई काम बन जाता है,
    तो भगवान की दया से…महाराज जी आपकी कृपा से शादी वादी सब हो गई अच्छी तरह।
    यानी जो संसार संबंधी सफलता मिले
    तो कृपा मानते हैं।
    और संसार नष्ट हो उसमें कोप मानते हैं।"
    -जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज
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    कलियुग में दान को ही कल्याण का एकमात्र माध्यम बताया गया है। 'दानमेकं कलौयुगे'।
    दान पात्र के अनुसार ही अपना फल देता है तथा भगवान एवं महापुरुष के निमित्त किया गया दान सर्वोत्कृष्ट फल प्रदान करता है।
    हम साधारण जीव यथार्थ में यह नहीं जान सकते कि वास्तविक महापुरुष के प्रति किया गया हमारा दान/समर्पण हमारे कल्याण का कैसा अद्भुत द्वार खोल देगा। अतएव, समर्पण हेतु आगे बढिये।
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