Jagjit Singh & Chitra Singh Tujhko dariya dili ki qasam - Cover by Gunjan &

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  • Опубліковано 30 гру 2023
  • Jagjit Singh & Chitra Singh Tujhko dariya dili ki qasam saqiya
    रौनक़-ए-मैक़दा यूँ ही बढ़ती रहे, एक गिरता रहे इक सम्भलता रहे ! Wishing you all a very Happy New Year 2024! (Live performance at Toronto, by Gunjan and Jayant)
    Famous ghazal of Shree Jagjit Singh Ji and Chitra Ji (Live performance at Toronto)
    Original Credits:
    Singers and composer: Sh. Jagjit Singh ji accompanied by Chitra Singh Ji
    Label: Saregama
    Tujh ko darya-dili ki qasam saqiya lyrics / तुझको दरियादिली की क़सम साक़िया
    तुझको दरियादिली की क़सम साक़िया
    मुस्तक़िल दौर पर दौर चलता रहे
    रौनक़-ए-मैक़दा यूँ ही बढ़ती रहे
    एक गिरता रहे इक सम्भलता रहे
    (मुस्तक़िल = चिरस्थाई, निरंतर, लगातार)
    सिर्फ शबनम ही शान-ए-गुलिस्ताँ नहीं
    शोला-ओ-गुल का भी दौर चलता रहे
    अश्क भी चश्म-ए-पुरनम से बहते रहे
    और दिल से धुआँ भी निकलता रहे
    (शबनम = ओस), (शान-ए-गुलिस्ताँ = बग़ीचे की शान), (अश्क = आँसू), (चश्म-ए-पुरनम = भीगी हुई आँखें)
    तेरे कब्ज़े में हैं ये निज़ाम-ए-जहाँ
    तू जो चाहे तो सहरा बने गुलसिताँ
    हर नज़र पर तेरी फूल खिलते रहे
    हर इशारे पे मौसम बदलता रहे
    (सहरा = रेगिस्तान), (निज़ाम-ए-जहाँ = दुनिया का प्रबंध), (गुलसिताँ = बग़ीचा)
    तेरे चेहरे पे ये ज़ुल्फ़ बिखरी हुई
    नींद की गोद में सुबह निखरी हुई
    और इस पर सितम ये अदाएं तेरी
    दिल हैं आखिर कहाँ तक सम्भलता रहे
    इस में ख़ून-ए-तमन्ना की तासीर हैं
    ये वफ़ा-ए-मोहब्बत की तस्वीर हैं
    ऐसी तस्वीर बदले ये मुमकीन नहीं
    रंग चाहे ज़माना बदलता रहे
    (तासीर = प्रभाव, असर)
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