आत्मबोध शतक | Aatmbodh Shatak | आर्यिकारत्न १०५ पूर्णमति माता जी
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- Опубліковано 11 лют 2025
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*आत्मबोध शतक | Aatmbodh Shatak | आर्यिकारत्न १०५ पूर्णमति माता जी*
1008 चिंतामणि श्री पार्श्वनाथ भगवान की जय | 1008 अनन्तान्त श्री सिद्ध परमेष्ठि भगवान की जय|
परमपूज्य आचार्य गुरुवर १०८ श्री विद्यासागरजी महाराज की जय |
परम पूज्या आर्यिका रत्न १०५ श्री पूर्णमति माताजी की जय|
आचार्य गुरुवर १०८ श्री विद्यासागरजी महाराज की अनन्य कृपा से पूज्या आर्यिका रत्न १०५ श्री पूर्णमति माताजी द्वारा लिखित यह आत्मबोध शतक निज परमात्मा के लिए उदबोद्धित है|
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सुनने और चिंतन करने वालाही इस आत्मबोध शतक को सुनकर जीवन में परिवर्तन ला सकता है।
Vndami mataji🙏🙏🙏🙏🙏🙏👍👍🌹🌹🌹🌹🌹🌹♥️♥️
वंदामी माताजी 🙏🌹🙏
Vndami Mata Ji maa 🙏🙏🙏
शुद्ध आत्मभावों से सराबोर करने वाली रचना
वन्दामि माताजी
😊
🙏अति मार्मिक भावनात्मक गीत🙏
Vandami mataji barambar
Mataji ko 🙏 naman vandna 🙏sakshat Kath me shrashuati mata virajman hai bahut hi sunder aatma ko santi mil gai 🙏🙏🙏🙏
Jainam Jayatu Shashnam 🙏🏻
जय...हो..माता.. की जय हो.. शत शत शत नमन. कर्म तैसे.फल.जन्म.से.लेकरं.अंत.तक.कर्म. कर्म. जय हो गुरु शिष्य की.
🙏🏻🙏🏻🙏🏻
😊
🙏 अति मधुर शिक्षाप्रद स्वयं का परिघय करवाने वाला गीत🙏👌
Atmbodh shatak आध्यात्मिक उन्नति के लिए मोक्ष प्राप्ति के लिए सबसे अच्छा साधन है
Vandami
❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤
Mamta lad vandami mataji
🙏 अति भावपूर्ण 🙏👌
🙏🏻
वन्दामि माता जी
वंदामि माताजी 🙏🙏
Mata ji k charno me barambar Naman 🙏🙏🙏
कंठ कोकिला कोयल माता जी आपके चरणों में बारम्बार बन्दामि करता हूँ आपने भक्ति शतक में संसार पूरा सत्य बता दिया
Vandami Mataji aapko barmbar vandami 🙏
बहत सुन्दर रचना है मन प्रसन हो गया
.
. 🏵 संसार सागर पार करने की अनुपम विधि
Namostu gurudev 🙏🙏🙏
Vandami mataji🙏🙏🙏
Vandami vandami mataji tejpalbhai aapka yeh strotra sunkar aatma ko Anupam ras pine komila vandami bhayandar (west) mumbai
🙏🙏🙏
माताजी के चरणों मे बारंबार वंदामि
Bandami mataji
vandaami Maa
VANDAMI🙏 VANDAMI🙏🙏 VANDAMI MATAJI🙏🙏🙏
🙏🙏🙏🙏🙏vandami - Rasila Gandhi
अध्यात्म का सागर
Bandami ma
आर्यिका पूर्णमती मताजींचे 'आत्मबोध शतक' मला खूप आवडते. अतिशय अर्थपूर्ण आहे.
त्या मधल्या 87व्या कडव्यातल्या खालच्या 3 ओळींचा अर्थ समजला. पण पहिल्या ओळीच्या अर्थाबद्दल संभ्रम वाटतो. कोणत्याही 'पर पदार्थांला' कसं काय शरण मानायचं ? 'पर' सगळं शरण जाण्याला अयोग्य आहे आणि केवळ निजातम्यालाच शरण जायला, त्याचा अवलंब करायला पाहिजे ना ?
अशरण भावना ही बारा भावनांमधली एक मुख्य भावना आहे. त्यात सर्व पर-पदार्थ शरण जाण्यास कसे अयोग्य आहेत ते सांगितले आहे. पण त्या पहिल्या ओळीत 'करना है' असं लिहिलंय, म्हणजे 'करायचं आहे', ते जरा मनाला खटकतंय.
इथं एकदम उलटं लिहिण्याचं काय प्रयोजन ?
मी बऱ्याच जणांना विचारलं....
कोणी म्हणलं हे असदभूत व्यवहार नयाचं कथन आहे. पण पुढचं-मागचं सर्व कथन अगदी निश्चय नायाचं असताना मधेच हे असं का ?
कोणी म्हणलं की टायपिंग मधली चूक असेल, पण ऑडिओ मध्ये पण तसंच आहे.
कोणी म्हणलं की पद्य लिखानाच्या नियमांमध्ये बसवण्यासाठी आणि त्याची गेयता टिकवण्यासाठी असे करावे लागत असते. पण पद्य लिहिण्याचे नियम पाळण्यासाठी तत्वर्थामध्ये तडजोड करून कसे चालेल ?
पाहिलं वाक्य समजायला माझा काय घोळ होतोय ? कोणी समजावून सांगितले तर बरं होईल...
प
Vandami mataji🙏🙏🙏
🙏🙏🙏
Vandami mataji🙏🙏🙏
🙏🙏🙏
Vandami mataji 🙏🙏