बैंगन दशमी के पद | लालकी शोभा कहेत | Baingan Dashmi Kirtan | baingan dashmi in pushtimarg Kirtan

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  • Опубліковано 15 вер 2024
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    बैंगन दशमी के पद | लालकी शोभा कहेत | Baingan Dashmi Kirtan | baingan dashmi in pushtimarg Kirtan
    शास्त्र द्वारा बैंगन 🍆में दो दोष बताये है,
    १.🍆 बुद्धि की सात्विक विचारधारा को नष्ट करता है।
    २.🍆 आसुरी विचारधारा को पोषण और प्रोत्साहन देता है।
    इस लीये श्रीमहाप्रभुजीने संप्रदायमें बैंगन 🍆 के प्रयोग का पहले निषेध रखा था, प्रभु को नहीं धरते थे, और प्रभु को धरने की आज्ञा नहीं थी।
    जब, आपश्री एक बार ऊडिसा जगन्ननाथ पूरी तीर्थ में पधारे हते, तब स्वयं जगन्ननाथजी ने कहा कि "मुझे बैंगन 🍆 बहुत प्रिय है आप भी संप्रदाय में स्वीकार करो, सामग्री में धरो।"
    तब श्रीमहाप्रभुजीने, सेवा कृतिर् गुरू आज्ञा, बाधनं वा हरिच्छया ( नवरत्नम् श्लोक ७ ) के न्याय सु प्रभु के वचन का पालन करके, संप्रदायमें बैंगन 🍆 धरने हेतु, कुछ नियम स्थापित कीए ।
    जीस में बैंगन 🍆के जो दोष है वह तो कायम रहेगा यह भी समझाया। अर्थात श्रीमहाप्रभुजी ने शास्त्र में कहे बैंगन के दोष को, अपने 'संकल्प' द्वारा ' तिरोहित ' किये। परंतु आपश्री की आज्ञा विरुध्द उसका प्रसाद लेने पर बैंगन 🍆 अपना दोष प्रकट करेंगे और नुकसान करेंगा यह भी बताया।
    नियम १. बैगन जो 'सफेद - हरे' रंग के है ( जीसे वंताक कहते है) उसमें दोष प्रकट ही रहेगा अर्थात वैष्णव को वह बैंगन 'सफेद - हरे' नहीं लेने यह निषेध बताया है।
    लेकिन जांबली 🍆बैगन में से दोष की निवृत्ति प्रभु को भोग धरने के कारण बताइ याने , भगवद प्रसादी अधरामृत में बैंगन का दोष 'तिरोहित' रहेगा अर्थात सेवक को वह दोष तकलीफ नही देगा।
    परंतु जिव्हा के स्वाद की प्राधान्यता से प्रसादी को अधिक लेने पर बैंगन का दोष, खाने वाले में प्रकट हो जायेगा याने बुद्धि में आसुरी विचारों की प्राधान्यता हो जायेगी। अर्थात भगवद प्रसाद के भाव से थोड़ा लेने में दोष नहीं लगेगा पर जिव्हा के स्वाद के कारण लेने पर दोष लगेंगे ही।
    श्रीगुसांइजी के खवास का प्रसंग संप्रदायमें प्रसिद्ध है। एक बार आपश्री पृथ्वी परिक्रमा याने यात्रामें हते तब नवनित प्रियाजी का एक खास खवास जीस के पास नवनित प्रियाजी के श्रृंगार के गहेना को डबरो रहतो। उसने एक दिन राजभोग में धरे बैंगन को साग, स्वाद के कारण बहुत खायो। तब उसकी बुद्धिमें यह विचार आया की मेरे पास इतने सारे गहेना है ले कर भाग जाऊ तो पुरी जिंदगी आराम से गुजर जाएगी।
    अनोसर को समय हतो सब आराम करते थे, तब वह डबरा घरेना सहित ले कर भाग्यो। बहोत दूर निकल गयो तब उसे खरचू की शंका हुई, ( याने निपटवे की / Toilet जावे की इच्छा भई ), सब बैंगन को अंश मात्र शरीर से निकल गयो । आदत और नियम अनुसार स्नान करके चरणामृत लिया।
    शुद्ध होने पर सात्विक विचार यह आया, यह मैंने क्या किया, अब उत्थापन का समय होगा, प्रभुको श्रीगुसांइजी शृंगार बड़े करते समय मुजे याद करेंगे तब क्या होगा ? मैं ने यह बहुत गलत किया, यह सोचकर दौड़ कर वापस आया।
    श्रीगुसांइजी तब उत्थापन भोग सरा कर, आरती करके, प्रभु सन्नमुख श्रृंगार बड़े करने बिराजे ही हते, तब यह खवास जा पहुंचा, दौड के कारण बहुत श्रमित था सांसे फूल रही थी।
    तब श्रीगुसांइजी हंसकर बोले मैने कहा था " जिव्हा के स्वाद की प्राधान्यता से खाने पर बैंगन 🍆अपनो दोष जताए बिगर नहीं रहेगो "।
    नियम २. बैंगन 🍆 का चातुर्मास में सम्पूर्णतः निषेध बताया है । सिर्फ, एक दिन धरने की छूट भगवद सुखार्थ है यह सुना है l
    ( चातुर्मास याने, आषाढ़ सुद ११ देव शयनी एकादशी से कार्तिक सुद ११, याने देव प्रबोधनी एकादशी तक का समय )
    नियम ३. संप्रदायमें प्रत्येक मास की वद १३ और सुद १३ पर वैष्णव को बैंगन अधरामृत प्रसाद के रूप में बिलकुल नहीं लेना है, रंचक लेना भी निषेध कहा है।
    【 याने प्रभु को धरवे में बाध नहीं परंतु वह प्रसाद हमें नहीं लेनो, गौ ग्रास में गाय को धर देनो । उत्तम पक्ष यह है की नहीं धरनो। 】
    आषाढ़ सुद १० को संप्रदाय में 🍆 बैंगन दशमी 🍆 के उत्सव रूप मनाते है। आज के रोज प्रभुको ज्यादा सामग्री बैंगन 🍆कि धरी जाती है जैसे, 🍆बैंगन के परोठा, 🍆बैंगन भात, बैंगन कढ़ी,🍆 बैंगन का शीरा, 🍆बैंगन की बर्फी, 🍆बैंगनके भुजेना (भजिया), इत्यादि अनेक प्रकारकी सामग्री प्रभुको धर सकते है।
    आज 🍆बैंगन धरनेका वर्ष का आखिरी दिन है, बाद में चातुर्मास का अनुष्ठान हो जाता है
    दूसरे दिन याने आषाढ़ सुद ११ देव शयनी एकादशी से चातुर्मास प्रारंभ होता है ।
    जो, कार्तिक सुद ११, याने देव प्रबोधनी एकादशी ( देव का प्रबोधन ) तक रहता है। जिसमें बैंगन नहीं धरे जाते, संप्रदाय में और शास्त्र में भी निषेध की प्राधान्यता है।
    (यद्यपि जगन्नाथजीमें बारह महीने धरने का प्रकार है।)
    मर्यादा भक्ति मार्ग में चातुर्मास में भक्ति वर्धन हेतु नियम लेने के बताते है, वह ब्रह्मसंबंधी वैष्णव को नहीं लेने चाहिए। क्योंकि यह, सकामता युक्त होने के कारण संप्रदाय में निषेध है।
    जब हम, ब्रह्मसंबंधी वैष्णव मर्यादा भक्ति में बताये प्रकार से नियम लेते है तब बहिर्मुख हो जाते है। और बहिर्मुख का संग दुसंग ही कहलाएगा।
    श्रीमहाप्रभुजी के संप्रदाय में, कार्तिक सुद ११ के दिन देव प्रबोधनी एकादशी है, तब तुलसी विवाह के लग्न मंडप में बैंगन 🍆को, अनेक सामग्री के साथ सजाते है। प्रभुको अत्यंत प्रिय होने के कारण, दूसरे दिन कार्तिक सुद १२, को बैंगन 🍆 की विविध सामग्री प्रभु को खास धरी जाती है।
    पूरे वर्ष में प्रत्येक मास की तेरस १३ का निषेध हमें याद रखना जरूरी है। औऱ जिव्हा के स्वाद के कारण उसका अधिक प्रसाद का निषेध भी याद रखना जरूरी है।
    चातुर्मास का समय, आषाढ़ सुद ११, ( देव शयनी एकादशी)से कार्तिक सुद ११ ( देव प्रबोधनी एकादशी) तक का मनाते है, परंतु,
    कार्तिक सुद १, को अन्नकूट के कारण अन्नकूट में बैंगन 🍆धरने का प्रकार है।
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КОМЕНТАРІ • 4

  • @mapawala
    @mapawala 2 місяці тому +2

    जयश्रीकृष्ण बधाई excellent video presentation

    • @PushtiKirtan
      @PushtiKirtan  2 місяці тому

      Badhai ho sir jay shree krishna 🌹♥️🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

  • @rajuladesai2643
    @rajuladesai2643 2 місяці тому +2

    Jay hooo❤❤❤❤❤