023 : श्रीमाताजी साहित्य संचयन (pg 38)
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- Опубліковано 7 лют 2025
- भगवान् की ओर मुड़ना
‘‘एक बार जब तुम यह कहते हुए भगवान् की ओर मुड़ गए, ‘‘मैं तुम्हारा होना चाहता हूँ, और भगवान् ने कह दिया, ‘‘हाँ’’, तो सारा संसार भी तुम्हें उनसे अलग नहीं रख सकता। जब केन्द्रीय सत्ता ने अपना समर्पण कर दिया है, तो मुख्य कठिनाई
दूर हो गयी है। बाह्य सत्ता तो एक ऊपरी परत की तरह है। साधारण लोगों में यह परत इतनी सख्त और मोटी होती है कि इसके कारण वे अपने अन्दर के भगवान् के प्रति सचेतन नहीं होते। परन्तु यदि, क्षण भर के लिए भी, आन्तरिक सत्ता ने एक
बार यह कह दिया हैः ‘‘मैं उपस्थित हूँ और मैं तुम्हारी हूँ’’, तो मानो एक सेतु बन जाता है और यह बाहरी परत धीरे-धीरे पतली और अधिक पतली पड़ती जाती है और अंततः दोनों भाग पूर्ण रूप से जुड़ जाते हैं और आन्तर तथा बाह्य दोनों एक हो जाते
हैं।’’ १४ अप्रैल, १९२९ (CWM 3: pg 7)