Mal De Suraj K Muh Pe Annual Day 2023

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  • Опубліковано 28 жов 2024

КОМЕНТАРІ • 10

  • @Sumansuman-j3t7m
    @Sumansuman-j3t7m 8 місяців тому +2

    ❤❤❤

  • @RatneshKumar-mu5hb
    @RatneshKumar-mu5hb Рік тому +2

    That's awesome 👍

  • @sindhujatripathi325
    @sindhujatripathi325 Рік тому +1

    Nice 👍

  • @PoojaSingh-jn7hp
    @PoojaSingh-jn7hp 9 місяців тому +2

    ❤❤❤❤❤❤❤❤

  • @ananyasingh1806
    @ananyasingh1806 Рік тому +2

    Very good 👍

  • @PoojaSingh-jn7hp
    @PoojaSingh-jn7hp 9 місяців тому +1

    🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉

  • @PoojaSingh-jn7hp
    @PoojaSingh-jn7hp 9 місяців тому +1

    ❤❤❤❤❤❤❤

  • @harinarayan6411
    @harinarayan6411 Рік тому +2

    बैसाखी पर्व हर वर्ष 13 या 14 अप्रैल को मनाया जाता है..
    यह त्योहार हिन्दुओं, बौद्ध और सिखों के लिए महत्वपूर्ण है। इस दिन भारतीय उपमहाद्वीप के अनेक क्षेत्रों में बहुत से नववर्ष के त्यौहार जैसे जुड़ शीतल, पोहेला बोशाख, बोहाग बिहू, विशु, पुथंडु मनाए जाते हैं। बैसाखी के पर्व की शुरुआत भारत के पंजाब प्रान्त से हुई है और इसे रबी की फसल की कटाई शुरू होने पर मनाया जाता है, किंतु वैसाखी त्यौहार, सिख आदेश के जन्म का स्मरण है, जो नौवे गुरु तेग बहादुर के बाद शुरू हुआ और जब उन्होंने धार्मिक स्वतंत्रता के लिए खड़े होकर इस्लाम में धर्मपरिवर्तन के लिए इनकार कर दिया था तब बाद में मुगल सम्राट औरंगजेब के आदेश के तहत उनका शिरच्छेद कर दिया गया। गुरु की शहीदी ने सिख धर्म के दसवें और अन्तिम गुरु के राज्याभिषेक और खालसा के संत-सिपाही समूह का गठन किया, दोनों वैसाखी दिन पर शुरू हुए थे। प्रकृति का एक नियम है कि जब भी किसी जुल्म, अन्याय, अत्याचार की पराकाष्ठा होती है, तो उसे हल करने अथवा उसके उपाय के लिए कोई कारण भी बन जाता है। इसी नियमाधीन जब मुगल शासक औरंगजेब द्वारा जुल्म, अन्याय व अत्याचार की हर सीमा लाँघ, श्री गुरु तेग बहादुरजी को दिल्ली में चाँदनी चौक पर शहीद कर दिया गया, तभी गुरु गोविंद सिंह जी ने अपने अनुयायियों को संगठित कर खालसा पंथ की स्थापना की जिसका लक्ष्य था धर्म व भलाई के आदर्श के लिए सदैव तत्पर रहना। पुराने रीति-रिवाजों से ग्रसित निर्बल व साहसहीन हो चुके लोग, सदियों की राजनीतिक व मानसिक गुलामी के कारण कायर हो चुके थे। भिन्न-भिन्न जाति के लोगों को दशमेश पिता ने अमृत छकाकर सिंह बना दिया। इस तरह 13 अप्रैल,1699 को श्री केसगढ़ साहिब आनंदपुर में दसवें गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना कर अत्याचार को समाप्त किया। उन्होंने सभी जातियों के लोगों को एक ही अमृत पात्र से अमृत चखा पाँच प्यारे सजाए। ये पाँच प्यारे किसी एक जाति या स्थान के नहीं थे, वरन्‌ अलग-अलग जाति, कुल व स्थानों के थे, जिन्हें खंडे बाटे का अमृत चखाकर इनके नाम के साथ सिंह शब्द लगा। अज्ञानी ही घमण्डी नहीं होते, ज्ञानी को भी अक्सर घमण्ड हो जाता है। जो परिग्रह करते हैं उन्हें ही घमण्ड हो ऐसा नहीं है, अपरिग्रहियों को भी कभी-कभी अपने त्याग का घमण्ड हो जाता है... अहंकारी अत्यन्त सूक्ष्म अहंकार के शिकार हो जाते हैं। ज्ञानी, ध्यानी, गुरु, त्यागी या संन्यासी होने का अहंकार कहीं अधिक प्रबल हो जाता है। यह बात गुरु गोविंद सिंह जी जानते थे। इसलिए उन्होंने न केवल अपने गुरुत्व को त्याग गुरु गद्दी गुरुग्रंथ साहिब को सौंपी बल्कि व्यक्ति पूजा ही निषिद्ध कर दी। आप सभी को बैसाखी एवं सिख पंथ के स्थापना दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं...

  • @PoojaSingh-jn7hp
    @PoojaSingh-jn7hp 9 місяців тому +1

    🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉