लग्नेश का विभिन्न ग्रहो के साथ युति का फलादेश

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  • Опубліковано 8 вер 2024
  • कुंडली के प्रथम भाव को लग्न कहकर ही संबोधित किया जाता है और लग्न भाव अर्थात कुंडली के प्रथम भाव में स्थित राशि का स्वामी लग्नेश कहलाता है। फलित ज्योतिष में लग्न भाव और लग्नेश की स्थिति को बड़ा ही महत्व पूर्ण माना गया है।
    ज्योतिषीय नियमों के अनुसार कुंडली के लग्न भाव को इसलिए भी महत्वपूर्ण माना गया है क्योंकि यह हमारे जीवन के बहुत महत्वपूर्ण पहलुओं का प्रतिनिधित्व करता हैं, कुंडली के लग्न भाव को शरीर बल, स्वास्थ्य, रोग प्रतिरोधक क्षमता, रूप, मष्तिष्क, आकृति, प्रकृति, स्वभाव, आयु, आत्मा, आत्मविश्वास, सम्मान, प्रसिद्धि, प्रतिष्ठा, यश, तेज़, आदि का कारक माना गया है। कुंडली में लग्न और लग्नेश का बली स्थिति में होना जातक के जीवन में उपरोक्त पहलुओं की अच्छी स्थिति प्रदान करता है तो कमजोर लग्न और लग्नेश व्यक्ति को बहुत से उतार-चढ़ाव और संघर्ष का सामना कराते हैं।
    यदि कुंडली में लग्नेश बली स्थिति में होकर केंद्र में हो और पाप प्रभाव से मुक्त हो तो ऐसा केंद्र में बैठा बली लग्नेश बहुत समृद्धि और उन्नति दायक माना गया है। कुंडली में लग्नेश का मजबूत होना केवल स्वास्थ्य या प्रसिद्धि ही नहीं देता बल्कि जीवन के पूर्ण विकास और उन्नति में बहुत सहायक होता है। यदि कुंडली में लग्नेश शुभ भावों में हो या स्व, उच्च राशि में होकर बली स्थिति में हो तो ऐसे में लग्नेश ग्रह की दशा बहुत शुभ फल करने वाली होती है तथा शुभ और बली लग्नेश की दशा में व्यक्ति को अच्छा स्वास्थ्य, आत्मविश्वास, प्रसिद्धि और प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है तथा जीवन उन्नति और समृद्धि के मार्ग पर आगे बढ़ता है।

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