भोपाल गैस त्रासदी : दस कहानियां Part 2: "हम आखिर जाते कहाँ?" | Bhopal GasTragedy
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- Опубліковано 18 вер 2024
- पूरी कहानी पढ़िए यहाँ : bit.ly/2zFknuW
आजाद मियां (79 वर्ष) यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री में काम करते थे, और दिन की शिफ्ट होने से रात में घर पर ही थे। उन्हें पता था कि जब कोई कोई दुर्घटना हो तो क्या करना है। जैसे ही गैस उन्होंने सूंघी उन्हें अनहोनी का अंदाजा हो गया। उसके बाद उन्होंने इधर-उधर भाग रहे लोगों को बस्ती से लोगों को सुरक्षित निकालना शुरू किया। "02 दिसंबर, 1984 की रात 11.50 बजे ऐसा लगा कि किसी ने कुछ जला दिया है। हमें पता चल गया कि ऐसी दुर्घटना हुई है। लोग खांस रहे थे, भाग रहे थे, आंसू निकल रहे थे। जब फैक्ट्री का सायरन बजा तो दूसरों को पता चला कि गैस लीकेज हो गई है," आजाद मियां ने बताया। जब अफरा-तफरी शुरू हुई तो हमने बस्ती वालों से कहा कि पहले हवा का रुख देखो जिधर हवा थी उसके विपरीत हम बस्ती वालों को लेकर गए। इस तरह के हादसों में क्या करना चाहिए, इसकी चेतावनी मालूम थी," एक छोटे से कमरे में बैठे कुर्सी पर बैठे आजाद मियां ने बताया।