Nilam Desh ki Rajkanya jainendra Kumar।❤️👰।

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  • Опубліковано 14 гру 2023
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    ‘नीलम देश की राजकन्या’ कहानीकार जैनेंद्र कुमार विरचित उनकी एक मनोवैज्ञानिक कहानी है। इसमें फंतासी के प्रयोग द्वारा नारी मन की प्रकृति भाव-दशा बखूबी प्रस्तुत हुई है।
    प्रस्तुत कहानी में कथानक का ताना वाना नीलम देश की राजकन्या को केंद्र में रखकर गुना गया है। वह अपनी सखियों के संग खुश रहती हैं। परंतु न जाने क्यों उदास रहने लगती हैं। किन्नरियों को वह दुत्कारती और अकेला पन उसे अच्छा लगता है। उसे जैसे किसी की प्रतीक्षा हो पर कोई राजपुत्र नहीं आता है। यद्यपि वह चारों तरफ देख आती है एक दिन किन्नर बालाएं हाथों में उपहार लिए प्रस्तुत होती है उनके मुंह से राजपुत्र की इच्छा से उपहार लाए जाने की बात सुनकर राजकन्या उन्हें राजपूत्र को कैद खाने में डाल देने की बात कहती है। तत्पश्चात अपनी किन्नर साथियों से एक एक कर मिलती हुई राजकन्या उन्हीं के साथ क्रीड़ा मग्न होती है।
    प्रस्तुत कहानी में केंद्रीय नारी पात्र नीलम देश की राजकन्या तथा अन्य पात्रों में किन्नर बालाएं है। जिनके मध्य रहकर राजकन्या का मन बदलता रहता है। किंतु एकाएक अपने मन में किसी की प्रतीक्षा का आभास पाकर उदास और खिन्न रहने लगती हैं। किन्नरियों उसे अकेला छोड़ देती हैं। राजकन्या पुखराज, पन्ने और हीरे के राजमहल में अपने सपनों में उपस्थित हुए राजकुमार को ढूंढती है। उदास होती है तत्पश्चात उसे अकेलापन छलता प्रतीत होता है। एक दिन वह अपने पक्ष को दबाती हुई फुलक का अनुभव करती है। उसकी हर्ष की चीख निकल पड़ती है। बाहर उसे चारों तरफ बसंत आते हुए दिखाई देता है राजपूत्र की इच्छानुसार भांति-भांति के उपहारों के साथ प्रस्तुत किन्नर बालाओं से स्पष्टता बताती हैं कि राजपूत्र उसकी कैद में है फिर राजकन्या अपने को अवसाद मुक्त पाकर अपने साथियों के साथ क्रीड़ा मग्न होती है।
    राजकन्या को केंद्रीय ता प्राप्त होने के कारण कहानी में चरित्र ही प्रधान रहता है। यही कारण है कि यहां कहानीकार द्वारा चरित्र का सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया गया है। नीलम देश की राजकन्या एक ऐसी नारी के रूप में चित्रित हुई है जो अपने साखियों के साथ क्रीड़ा मग्न होती हुई किसी की प्रतीक्षा का आभास पाकर उदास से रहने लगती है और उसे प्रतीक्षा ही सत्य प्रतीत होने लगती हैं ऐसा कहानीकार का मानना है।
    किसी कहानी में संवाद पात्रों के चरित्रोद्घाटन में सहायक होता है। जिनका अन्य संवादोचित गुणों से युक्त होने के साथ ही प्रभोत्पादक और व्यंजक होना अत्यंत आवश्यक है। इस दृष्टि से नीलम देश की राजकन्या का कथन किन्नरियों के प्रति-“तुम जाओ मुझे तो तुमने बहुत आनंदित कर दिया है। मैं उतने योग्य नहीं हूं बस तुम्हारे हाथ जोड़ती हूं मुझे अब अकेला छोड़ दो। “राजकन्या का कथन”कैसा राजकुमार! कौन राजकुमार? तुम मेरी बैरीन क्यों बनी हो।”
    राजकन्या का कथन- “नहीं-नहीं सखियों ऐसी बात मत कहो हम सब बचपन की संगिनी हैं। तुम्हारे बिना मैं क्या हूं? चित्र कभी उदास हो जाता है, सो जाने क्यों? पर मैं तुम लोगों से अलग नहीं हूं तुम्हारी हूं।”
    प्रस्तुत कहानी में कहानीकार द्वारा राजकन्या की मानसिक स्थिति को दर्शाने के लिए कई स्थानों पर बाह्य वातावरण का चित्रण किया गया है। इस दृष्टि से कुछ के उदाहरण दृष्टव्य है- “बड़े-बड़े प्रासाधों के आंगनों और कोष्टों में जा जाकर राजकन्या अपने को बहलाती फिरती है पर सब तरुणी संगिनियों के बीच घिरी रहकर ही जाने कैसे सुना लगता है।”
    “चारों ओर होता हुआ अट्टहास चीत्कार का रूप घर उठा मानव सहस्त्रों कंकाल दांत किट किट आकर विकट रूप से गर्जन कर रहे हो। हवा प्रचंड हो उठी। समुद्र दुर्दांत(भयंकर) रूप से महल पर फन रूप से पटक पटक कर फूत्कार करने लगा। जान पड़ा सब ध्वांस हो जाएगा।”
    प्रस्तुत कहानी में राशि कन्या के माध्यम से नारी चरित्र की प्रकृत भाव दशा का मनोवैज्ञानिक चित्रण करना कहानीकार का एकमात्र उद्देश्य रहा है। कहानी में प्रयुक्त भाषा शैली में साहित्यिकता गंभीरता और प्रतीकात्मकता विद्यमान है।
    प्रस्तुत कहानी विषय के अनुरूप शीर्षक नीलम देश की राजकन्या औचित्य पूर्ण है। इसलिए हम यह कह सकते हैं कि नीलम देश की राजकन्या कहानी कला के तत्वों से युक्त कहानी है और यह कहानीकार की सबसे उत्कृष्ट कहानी है। इस कहानी में कहानीकार को आशातीत सफलता मिली है।
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