sawan mela mata chintpurni 2023 || Himachal pardesh || mata chintpurni mandir

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  • Опубліковано 10 вер 2024
  • sawan mela mata chintpurni 2023 || Himachal pardesh || mata chintpurni mandir
    माता चिंतपूर्णी के मेले को स्थानीय लोग माता दा मेला या फिर देवी का मेला भी बुलाते हैं ।
    मेले में मां चिंतपूर्णी के दरबार में देश विदेश से हज़ारों श्रद्धाल दर्शन करने आते है और माता के दरबार के दर्शन कर मनवांछित फल पाते हैं।
    हिमाचल प्रदेश को देवभूमि कहा जाता है। हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले में प्रसिद्ध शक्तिपीठ चिंतपूर्णी धाम में साल में तीन बार मेला आयोजित किया जाता है।
    चैत्र चिंतपूर्णी मेला जो कि चैत्र मास की नवरात्रि में आयोजित किया जाता है
    सावन चिंतपूर्णी मेला जिसे सावन नवरात्रि में कहा जाता है सावन मास में आयोजित किया जाता है
    अश्विन चिंतपूर्णी मेला जो अश्विन मास के नवरात्रों में आयोजित किया जाता है।
    इसके अतिरिक्त चिंतपूर्णी धाम में चिंतपूर्णी जयंती पर श्रद्धालु दूर-दूर से मां के दर्शनों के लिए आते हैं।
    ऐसा माना जाता है कि चिंतपूर्णी मंदिर की रक्षा भगवान शिव स्वयं करते हैं। मंदिर की चारों दिशाओं में भगवान शिव के मंदिर हैं।
    पूर्व में महाकालेश्वर मंदिर
    पश्चिम में नारायण महादेव मंदिर
    उत्तर में मुचकुंद महादेव मंदिर
    दक्षिण में शिव बाड़ी मंदिर
    चिंतपूर्णी मंदिर प्रसिद्ध शक्तिपीठ
    चिंतपूर्णी धाम शक्तिपीठ है जहां पर मां सती के चरण गिरे थे।
    जब प्रजापति दक्ष ने यज्ञ करवाया तो उन्होंने सभी देवी देवताओं को निमंत्रित दिया लेकिन भगवान शिव से बैर के कारण उनको नहीं बुलाया।
    माता सती को जब पता चला कि उनके पिता यज्ञ कर रहे हैं तो वह बिना बुलाए ही यज्ञ में चली गई। वहां यज्ञ में भगवान शिव का भाग ना देखकर , भगवान शिव का यह अपमान सह ना सकी और हवन‌ कुंड में कूद गई।
    भगवान शिव को जब माता सती के देह त्याग का पता चला तो वहां पहुंच कर सती के शरीर को बाहर निकाल कर तांडव करने लगे तो सृष्टि को प्रलय से बचाने के लिए भगवान विष्णु अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 हिस्सों में बांट दिया।
    यहां यहां माता सती के शरीर के भाग गिरे वहां शक्तिपीठ बन गई। चिंतपूर्णी में माता सती के चरण गिरे थे।
    माता चिंतपूर्णी को छिन्नमस्तिका भी कहा जाता है। माना जाता है कि माता के भक्त की जो भी चिंता होती है वह माता के दरबार आने पर दूर हो जाती है इसलिए माता के धाम को चिंतपूर्णी धाम कहा जाता है।
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