Can We Talk With God ? Ways To Talk With God | Ishwar se baat Kaise kare ? Paramhansa Yogananda

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  • Опубліковано 5 жов 2024
  • Second channel - / @vivekanandvimal
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    By Vimal Vani (Vivekanand Vimal)
    Key Points :-
    1. How To talk with god
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    3. Paramhansa Yogananda
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    दोस्तों आज मैं इस प्रश्न का उत्तर आपको अपने शब्दों में बताने की कोशशि करता हूं जो योगानंद जी ने अपनी पुस्तक "ईश्वर से वार्तालाप की विधि" में वर्णन किया है।
    दोस्तों इस वीडियो को आखिर तक देखें क्योकि इस में मैं परमहंस योगानंद जी के ईश्वर से वार्तालाप के एक व्यक्तिगत अनुभव के बारे में भी बताऊंगा, जो आपको चकित कर देगा।
    दोस्तों योगानंद जी कहते हैं कि ईश्वर से वार्तालाप करना एक वास्तविकता है, यह कोई मनगढ़ंत बात नहीं। भारत के हजारों संत ईश्वर के साथ संपर्क में अपने ध्यान में रहते हैं लेकिन वह कभी भी हमारी सामाजिक संरचना में दखलंदाजी नहीं करते क्योंकि इससे सृष्टि के खेल में बाधा उत्पन्न हो सकती है। यह वार्तालाप एकपक्षीय नहीं बल्कि द्विपक्षीय होती है यानी आप केवल प्रार्थना नहीं कर रहे होते बल्कि ईश्वर आपके हर प्रश्न का ईश्वर उत्तर भी देते हैं।
    दोस्तों अब आपके मन में प्रश्न उठा रहा होगा कि अगर यह संभव है तो हर व्यक्ति ईश्वर से बातचीत क्यों नहीं कर पाता। वह खुद को ईश्वर से इतना दूर क्यों महसूस करता है। योगानंद जी इसके कुछ कारण बताते है -
    पहला कारण है हमारा संदेह करना - दोस्तों जरा खुद पर ध्यान दीजिए, अपने मन को टटोलीये कि क्या आपके भीतर विश्वास है कि आप ईश्वर से बात कर सकते हैं या ईश्वर से बातचीत संभव है। शायद नहीं ।आप आज भी संदेह करते हैं अगर संदेह नहीं करते तो आपके मन में यह प्रश्न उठता ही नहीं। और आप इस वीडियो पर क्लिक ही नहीं करते। दोस्तों यही संदेह ही सबसे बड़ी रुकावट है, संदेह के होने का अर्थ है कि आपके भीतर अभी ईश्वर के प्रति वह भक्ति नहीं है, भक्ति यानी ईश्वर के लिए निस्वार्थ प्रेम।
    योगानंद जी कहते हैं कि मनुष्य केवल अपने मन से ही ईश्वर की प्रार्थना करता है, वह हृदय की पूर्ण गहराई और आतुरता के साथ प्रार्थना नहीं कर पाता, इसलिए ऐसी प्रार्थना भगवान से उत्तर लाने में अति असमर्थ होती है। दोस्तों योगनानाद जी के अनुसार परमात्मा से हमें आत्मविश्वास और ऐसी निकटता की भावना से बातचीत करनी चाहिए जैसे हम अपने माता-पिता से करते हैं, इस प्रकार की विनती को स्वीकार करने के लिए ईश्वर भी विवश हो जाते हैं। इसलिए यह आवश्यक है कि आपको उनपर पूर्ण विश्वास हो, कि एक न एक दिन वह अवश्य उत्तर देंगे आपके प्रश्नों का। आपका विश्वास ही आपके संदेह को मिटा सकता है।
    इसके अलावा दोस्तों योगानंद जी यह भी कहते हैं कि हमारे मन में ईश्वर की एक निश्चित धारणा भी होनी अनिवार्य है... अन्यथा कोई स्पष्ट उत्तर नहीं पा सकता। इसका अर्थ यह है की आपके मन में ईश्वर का कोई रूप मन में ईश्वर का कोई रूप का कोई रूप, कोई छवि अवश्य होनी चाहिए, जिस रूप में आप उन्हें देखना या महसूस करना चाहते हैं। अगर आप उनका जगन्नमाता के रूप में दर्शन प्राप्त करना चाहते हैं तो वो आपको जगन माता के रूप में दर्शन देंगे , अगर आप उन्हें राम कृष्ण, शिव , जीसस, बुद्ध या किसी भी अन्य रूप में दर्शन चाहते हैं तो आपको वह उसी रूप में दर्शन देंगे। अगर आप उनके निराकार स्वरूप का दर्शन चाहते हैं तो आपको इसी रूप में साक्षात्कार मिलेगा। ईश्वर तो एक ही है दोस्तों लेकिन आप उन्हें किस रूप में चाहते हैं यह आपके मन मस्तिष्क और आपके हृदय पर ही निर्भर करता है।
    दोस्तों योगानंद जी हमें कहते हैं कि कहते हैं कि प्रभु से उत्तर पाने की माँग दृढ़ होनी चाहिए, ईसके लिए अंधविश्वासी प्रार्थना पर्याप्त नहीं है। यदि आप दृढ़ निश्चय कर लें कि ईश्वर मुझसे अवश्य वार्तालाप करेंगे और आप इसके अतिरिक्त कोई शंका मन में नहीं लाए,तो चाहे कितने ही वर्षों तक भगवान आपको उत्तर ने दें, यदि आप उन पर पूर्ण विश्वास रखें तो एक दिन वह अवश्य उत्तर देंगे।। दोस्तों इसीलिए ईश्वर साक्षात्कार प्राप्त करने की चाह करने वाले साधु संत या लोग ध्यान साधना आदि करते हैं ताकि उनका मन अधिक से अधिक एकाग्र हो और वह अपने लक्ष्य के प्रति बिल्कुल समर्पित हो सके।
    दोस्तों अब मैं आपको योगानंद जी के के के मैं आपको योगानंद जी के के के ईश्वर साक्षात्कार के एक अनुभव के विषय में उनके ही शब्दों में बताता हूं, ताकि आपका विश्वास और मजबूत हो सके कि ईश्वर ईश्वर से वार्तालाप संभव है। जोगाराम जी कहते कहते हैं -
    दोस्तों ईश्वर साक्षात्कार के ऐसे ही अनेकों अनेकों वर्णन आपको योगानंद जी के पुस्तक में मिलेंगे। अगर हम भी योगानंद जी या हमारे महान संतों जैसी श्रद्धा, समर्पण, भक्ति अपने हृदय में, अपने मन में जगा सके तो ईश्वर साक्षात्कार बहुत दूर नहीं। हम सभी को ईश्वर साक्षात्कार प्राप्त होना ही है, तभी जन्म मरण के इस बंधन से मुक्ति संभव है। बस फर्क इतना है कि उसमें वक्त कितना लगता है।

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