#diptimisra

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  • Опубліковано 5 вер 2024
  • #diptimisra
    जश्न-ए-बहार 2018 कलकत्ता
    कविता-चरित्र
    मैं "चरित्रवान" थी
    और दुनिया मुझे
    "चरित्रहीन" बनाने में तुली थी!
    लड़ते-लड़ते हुआ ये कि मैं...
    "चरित्र-विहीन" हो गई!
    अब न चरित्र है,
    न लड़ाई,
    न भय!
    कुछ है तो बस-
    "व्यक्तित्व का दर्पण"
    चाहे जिस दृष्टि से देखो मुझे
    प्रतिबिम्ब तुम्हारा होगा !!!

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