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कैसे रखें अपने मन को शांत और प्रसन्न | रायपुर चातुर्मास प्रवचन 2022 | श्री ललितप्रभ जी

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  • Опубліковано 29 вер 2022
  • कैसे रखें अपने मन को शांत और प्रसन्न
    (Kaise Rakhen Apne Man ko Shant aur Prasann)
    How to keep your mind calm and happy
    रायपुर चातुर्मास प्रवचन 2022
    राष्ट्र-संत श्री ललितप्रभ जी
    जीने की कला - दिव्य प्रवचनमाला
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    • रायपुर चातुर्मास प्रवच...
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    प्रस्तुति : अंतर्राष्ट्रीय साधना तीर्थ, संबोधि धाम, जोधपुर (राजस्थान)
    ‘‘मन का केवल शांत होना ही नहीं, उसका शुद्ध होना भी जरूरी है। जितना जरूरी है हमारा मन शांत हो, उससे पहले जरूरी है हमारा मन शुद्ध भी हो। इसीलिए कहा गया है कि मन चंगा तो कठौती में गंगा। आदमी का मन यदि पवित्र है तो उसे गंगा तक जाने की भी जरूरत नहीं। मन जितना शांत हो, उतना ही हमारा मन निर्मल भी हो। केवल शरीर की सफाई से ही आदमी निर्मल नहीं होता, जिंदगी में उसके विचार भी पवित्र होने चाहिए। मन की शांति के साथ-साथ मन की पवित्रता भी जरूरी है। क्योंकि जहर से सने हुए पात्र में अगर अमृत भी डाल दिया गया तो वह भी जहर बन जाता है। मन लोभी मन लालची मन चंचल चितचोर, अरे मन के मते ना चालिए, पलक-पलक मन होत। लोभी का वश चले तो वह पूरी दुनिया की दौलत तो क्या, पूरी दुनिया का राजा बनना वह पसंद करेगा। मन की अशांति का एक बड़ा कारण है क्योंकि वह कभी तृप्त नहीं होता। मुक्ति, आनंद और शांति का मार्ग उसी के लिए है जो अपने मन को शांत भावों से तृप्त कर ले।’’
    विषयान्तर्गत संतप्रवर ने आगे कहा कि दुनिया में सबसे बड़ी दौलत यदि कोई है तो वह है आदमी के मन की शांति। इसी दौलत को पाने भगवान श्रीमहावीर और गौतम बुद्ध ने राजमहलों का त्याग कर दिया था। जिसके पास ये दौलत होती है, उसे दुनिया की और किसी दौलत की जरूरत नहीं पड़ती।
    अंतिम प्रार्थना में हमारे शब्द होते हैं
    भगवान उनकी आत्मा को शांति दें
    संतप्रवर ने कहा कि इस संसार से विदा हो चुके व्यक्ति की अंतिम अरदास-उठावना या शोक सभा में लोग जाने वाले की तारीफ किया करते हैं और आखिर में उनके शब्द ये ही होते हैं कि परम पिता परमात्मा उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें। उस समय संसार की किसी भी वस्तु या व्यक्ति को प्रदान करने की नहीं, शांति प्रदान करने की प्रार्थना की जाती है। तब व्यक्ति को शांति का वास्तव में महत्व और अर्थ समझ आता है। विवेकवान-बुद्धिमान वो है जो अपने जीते-जी मन की शांति को पा लेता है। ताकि उसके जाने के बाद लोग उसकी आत्मशांति की नहीं अपितु आत्मोन्नति के लिए प्रार्थना करें।
    मन की शांति पाने का पहला मंत्र
    नो नेगेटिव-बी पाॅजीटिव
    संतप्रवर ने कहा कि अक्सर आदमी का नजरिया दूसरों में बुराइयां-कमियां देखने का होता है, मन की अशांति का यह बड़ा कारण है। मन की शांति का मालिक होने के लिए सबसे पहला मंत्र है- नो नेगेटिव-बी पाॅजीटिव। यह मंत्र अगर आपकी जिंदगी में आ गया तो फिर आपको किसी में कमजोरी या बुराई नजर नहीं आएगी। वह हमेशा सकारात्मक होकर बड़ी सोच का मालिक बना रहेगा। क्योंकि आदमी को मन की शांति न तो संसार के रंगों में मिलती है और न ही धन में मिलती है, हजारों-हजार जन्मों तक संसार के रंगों के साथ रह लो लेकिन फिर भी कभी मन इनसे तृप्त नहीं होता। संसार के भोग-विलासों से आज तक किसी के मन को तृप्ति नहीं मिली। एक संत और एक गृहस्थ में फर्क केवल मकान और कपड़े का नहीं होता। गृहस्थ वह है जिसके पांव तो यहां टिके हैं पर उसका मन पूरी दुनिया में भटकता है और संत वो है जिसके पांव तो चलते हैं पर मन हमेशा टिका हुआ रहता है। जिसका मन हमेशा एकांत और शांत रहता है, वही आदमी संत जीवन का मालिक बन सकता है।
    संतश्री ने आगे कहा कि मन की शांति पाने के लिए दूसरा मंत्र है- लोड मत लो। मेरे साथ ही ऐसा क्यों हो रहा है, उसे तो सब कुछ मिल रहा है। दूसरों को देख कर ऐसा मन बनाना, इसी का नाम है मन की अशांति। क्योंकि जब जिसके साथ जो होना है वो हो रहा है, मेरे रोकने से वो रूकेगा नहीं और मेरे चाहने से वह होगा नहीं। नगर पालिका की कचरा पेटियों में कचरा कम होगा पर उससे ज्यादा ईष्र्या, वैमनस्य, कुंठा, द्वेष आदि कसायों का कचरा हमने अपने मन की पेटी में भर रखा है। इस कचरे की सफाई किए बिना मन कभी शांत हो नहीं पाएगा। मन की शांति पाने का तीसरा मंत्र है- कभी भी किसी से अपनी तुलना मत करो। जिसको जो मिला है, उसकी किस्मत से मिला है। मुझे जो मिला है वह मेरे भाग्य से ज्यादा मिला है। दूसरों को देख कर मन को कभी दुखी मत करो। हमें अपने मन की दशाओं को सकारात्मकता की ओर बदलना बहुत जरूरी है। तीसरा मंत्र है- मैं जीवन में हर पल प्रसन्न रहुंगा। हमेशा वर्तमान का आनंद लूंगा। चैथा बेशकीमती मंत्र है- जो है प्राप्त वही है पर्याप्त। पांचवा मंत्र है- अपने जीवन के अप्रिय प्रसंगांें को जीवन से निकाल दो। छठा मंत्र है- कभी भी किसी के बनते काम में ज्यादा हस्तक्षेप या दखलंदाजी मत करो। सातवां मंत्र है- किसी के प्रतिकूल व्यव्हार से छोटी-छोटी बातें जो दिमाग में घर कर चुकी हैं, उन्हें भूल जाओ। या सामने वाले को दिल से माफ कर दो। आठवां मंत्र है- पानी से आधी भरी गिलास को हमेशा आधी भरी हुई देखो। और मन की शांति का मालिक बनने नवां अंतिम व महत्व का मंत्र है- रोज ध्यान-मेडिटेशर जरूर करो। यदि इन मंत्रों को आप अपनी जिंदगी में जोड़ लेते हैं तो आपका जीवन आनंदमयी हो जाएगा।

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