जितने भी शासन देवी देवता है सभी चौथे गुण स्थान में है और हम पांचवे गुण स्थान में हैव,जितने भी शासन देवी देवता है उन्हें अभिषेक की उपमा मत दो ओ भी हमारे स्वधर्मी भाई बहन है उनको सम्मान दो ,हम aashadhana नहीं करना ,उनका सम्मान करने में कोई बाधा नहीं ,उनकी पूजा अर्चना करोगे तो मिथ्या दृष्टि बन जाओगे
महाराज श्री सम्यक दृष्टि तो ग्रहस्थ पुरुष एवं महिला भी हो सकती है। ऐसे में तो देवी देवताओं के साथ फिर उनको भी अर्ध चढ़ाया जाएगा? तो फिर ग्रहस्थ देवी के वस्त्र उतार कर जल आदि से शुद्धि कैसे सकता है? सम्यक दृष्टि महिला की?
एक काम हमें कर दिया है कि गिरनारजी के महेश गिरी को आज कुम्भ के दौरान सभी पदों से अलग कर दिया है अब आप गिरनारजी में जैन समाज के श्रद्धांलु जन को दर्शन पूजन प्राप्त हो उस काम में लग जाएं 🙏🙏
लोग पता नही पूजा शब्द के नाम पर भ्रमित क्यो है. पूजा के कई अर्थ होते है. जैन धर्म मे पूजा का मूल अर्थ अष्ट द्रव्य से पूजा लिया है लेकिन लौकिक भाषा मे पूजा के कई मतलब है गुणगान करना भी पूजा एक फूल चढ़ा देना भी पूजा और किसी को सम्मान देने कुछ भेट करना ये भी पूजा. हम बोलते है पेट पूजा मतलब पेट की जो जरूरत है उसे पूरा करना मतलब भोजन देना. तो मूल आगम मे शासन देवी देवता की पूजा करने का कोई उल्लेख नही लेकिन बाद के आचार्यो ने मात्र जनता को यहाँ वहाँ भटकने से बचने के लिए इनकी पूजा मतलब सम्मान करने बोला. Lekin कब जब ये सामने. ऐसा नही कि इनकी मूर्ति बना कर पूजा करो और तीर्थंकर की pratimao के साथ जो इन देवी देवताओ की मूर्ति होती थी वो उनका वैभव दिखाने होती थी न कि इनको पूजने के लिए. आकृत्रिम जिनालय मे भी एक देव और एक देवी की प्रतिमाओं का उल्लेख है लेकिन मात्र उनके vaibhav को दिखाने जैसे अष्ट प्रतिहार्य वैसे ही.
samyak darshan ke stah janm stri paryay ka nhi hota h lekin janm ke bad samyak darshan stri pryay me hota h usi prakar swarg me janm huye devi ka uske bad samyak darshan huya isliye shahan devi samyak drushty h
Bhot shi kha h mhraj g
Namostu guruvar
Bilkul sahi bat namostu gurudev
Bohot hi satik aur uttam samadhan dia hai guru dev ne🙏
जितने भी शासन देवी देवता है सभी चौथे गुण स्थान में है और हम पांचवे गुण स्थान में हैव,जितने भी शासन देवी देवता है उन्हें अभिषेक की उपमा मत दो ओ भी हमारे स्वधर्मी भाई बहन है उनको सम्मान दो ,हम aashadhana नहीं करना ,उनका सम्मान करने में कोई बाधा नहीं ,उनकी पूजा अर्चना करोगे तो मिथ्या दृष्टि बन जाओगे
महाराज श्री सम्यक दृष्टि तो ग्रहस्थ पुरुष एवं महिला भी हो सकती है। ऐसे में तो देवी देवताओं के साथ फिर उनको भी अर्ध चढ़ाया जाएगा? तो फिर ग्रहस्थ देवी के वस्त्र उतार कर जल आदि से शुद्धि कैसे सकता है? सम्यक दृष्टि महिला की?
ये सब भरे पेट की बाते होती है इसे ज्यादा और भी बहुत जरुरी काम समाज मे देश मे है
एक काम हमें कर दिया है कि गिरनारजी के महेश गिरी को आज कुम्भ के दौरान सभी पदों से अलग कर दिया है अब आप गिरनारजी में जैन समाज के श्रद्धांलु जन को दर्शन पूजन प्राप्त हो उस काम में लग जाएं 🙏🙏
हमने
Ha bhai tum pehle woh nipta lo..
लोग पता नही पूजा शब्द के नाम पर भ्रमित क्यो है.
पूजा के कई अर्थ होते है.
जैन धर्म मे पूजा का मूल अर्थ अष्ट द्रव्य से पूजा लिया है
लेकिन लौकिक भाषा
मे पूजा के कई मतलब है
गुणगान करना भी पूजा
एक फूल चढ़ा देना भी पूजा
और किसी को सम्मान देने कुछ भेट करना ये भी पूजा.
हम बोलते है पेट पूजा
मतलब पेट की जो जरूरत है उसे पूरा करना मतलब भोजन देना.
तो मूल आगम मे शासन देवी देवता की पूजा करने का कोई उल्लेख नही
लेकिन बाद के आचार्यो ने मात्र जनता को यहाँ वहाँ भटकने से बचने के लिए इनकी पूजा मतलब सम्मान करने बोला.
Lekin कब जब ये सामने. ऐसा नही कि इनकी मूर्ति बना कर पूजा करो
और तीर्थंकर की pratimao के साथ जो इन देवी देवताओ की मूर्ति होती थी वो उनका वैभव दिखाने होती थी न कि इनको पूजने के लिए.
आकृत्रिम जिनालय मे भी एक देव और एक देवी की प्रतिमाओं का उल्लेख है लेकिन मात्र उनके vaibhav को दिखाने जैसे अष्ट प्रतिहार्य वैसे ही.
🙏🏼
सम्यग्दर्शन सहित स्त्री पर्याय में नही जाते।
samyak darshan ke stah janm stri paryay ka nhi hota h lekin janm ke bad samyak darshan stri pryay me hota h usi prakar swarg me janm huye devi ka uske bad samyak darshan huya isliye shahan devi samyak drushty h