कृष्ण की चेतावनी | Rashmirathi | Rashmirathi by Dileep Kumar | Dileep Kumar Poem |

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  • Опубліковано 16 вер 2024
  • Hi,
    I am Dileep Kumar. Welcome to my youtube channel Hindi Ganga Official.
    Hindi language and literature-related videos. Very useful for 9th and 10th CBSE, ICSE, and UP Board students also.
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    रामधारी सिंह दिनकर (Ramdhari Singh Dinkar)
    वर्षों तक वन में घूम-घूम, बाधा-विघ्नों को चूम-चूम,
    सह धूप-घाम, पानी-पत्थर, पांडव आये कुछ और निखर।
    सौभाग्य न सब दिन सोता है,
    देखें, आगे क्या होता है।
    मैत्री की राह बताने को, सबको सुमार्ग पर लाने को,
    दुर्योधन को समझाने को, भीषण विध्वंस बचाने को,
    भगवान् हस्तिनापुर आये,
    पांडव का संदेशा लाये।
    'दो न्याय अगर तो आधा दो, पर, इसमें भी यदि बाधा हो,
    तो दे दो केवल पाँच ग्राम, रखो अपनी धरती तमाम।
    हम वहीं खुशी से खायेंगे,
    परिजन पर असि न उठायेंगे!
    दुर्योधन वह भी दे ना सका, आशीष समाज की ले न सका,
    उलटे हरि को बाँधने चला, जो था असाध्य साधने चला।
    जब नाश मनुज पर छाता है,
    पहले विवेक मर जाता है।
    हरि ने भीषण हुंकार किया, अपना स्वरूप-विस्तार किया,
    डगमग-डगमग दिग्गज डोले, भगवान् कुपित होकर बोले-
    'जंजीर बढ़ा कर साध मुझे,
    हाँ, हाँ दुर्योधन! बाँध मुझे।
    यह देख, गगन मुझमें लय है, यह देख, पवन मुझमें लय है,
    मुझमें विलीन झंकार सकल, मुझमें लय है संसार सकल।
    अमरत्व फूलता है मुझमें,
    संहार झूलता है मुझमें।
    बाँधने मुझे तो आया है, जंजीर बड़ी क्या लाया है?
    यदि मुझे बाँधना चाहे मन, पहले तो बाँध अनन्त गगन।
    सूने को साध न सकता है,
    वह मुझे बाँध कब सकता है?
    हित-वचन नहीं तूने माना, मैत्री का मूल्य न पहचाना,
    तो ले, मैं भी अब जाता हूँ, अन्तिम संकल्प सुनाता हूँ।
    याचना नहीं, अब रण होगा,
    जीवन-जय या कि मरण होगा।
    टकरायेंगे नक्षत्र-निकर, बरसेगी भू पर वह्नि प्रखर,
    फण शेषनाग का डोलेगा, विकराल काल मुँह खोलेगा।
    दुर्योधन! रण ऐसा होगा।
    फिर कभी नहीं जैसा होगा।
    भाई पर भाई टूटेंगे, विष-बाण बूँद-से छूटेंगे,
    वायस-श्रृगाल सुख लूटेंगे, सौभाग्य मनुज के फूटेंगे।
    आखिर तू भूशायी होगा,
    हिंसा का पर, दायी होगा।'
    थी सभा सन्न, सब लोग डरे, चुप थे या थे बेहोश पड़े।
    केवल दो नर ना अघाते थे, धृतराष्ट्र-विदुर सुख पाते थे।
    कर जोड़ खड़े प्रमुदित, निर्भय,
    दोनों पुकारते थे 'जय-जय'!

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