तुमको ये विश्वास नहीं है, इसलिये कृपा से वंचित हो

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  • Опубліковано 29 вер 2024
  • रसमय उपदेश :
    जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की काव्य रचनाओं में जो रस सिक्त तत्त्वज्ञान भरा है, वह इस बात का द्योतक है कि उनका अपना व्यक्तित्व भक्ति के परमोज्ज्वल स्वरूप से ऊर्जस्वित, जीव कल्याण की करुणामयी भावना से द्रवित एवं श्रीराधा-कृष्ण के अलौकिक प्रेम रस से ओतप्रोत है। भक्तियोगरसावतार की उपाधि प्राप्त श्री कृपालु जी महाराज हमारे वर्तमान विश्व के पाँचवें मूल जगद्गुरु हैं। वेद-शास्त्रों के प्रमाणों पर आधारित उनके सारगर्भित प्रवचन तो वैदिक हिन्दू सनातन धर्म के वास्तविक सिद्धान्त को सरलता एवं स्पष्टता से समझने का प्रमुख आधार हैं ही, उनकी सरस संगीतमय संकीर्तन रचनाएँ भी सिद्धांत ज्ञान से परिपूरित हैं। श्री महाराज जी द्वारा रचित रसमय संगीतात्मक काव्य कृतियों में कितना गहन तत्त्व ज्ञान लबालब भरा है, इसका वास्तविक परिचय तब मिलता है जब वे स्वयं अपने स्वरचित संकीर्तनों की व्याख्या करते हैं। ये बहुत आकर्षक व्याख्याएँ हैं, जिनमें रस (भक्तियोगरसावतार) एवं उपदेश (जगद्गुरूत्तम) का कृपामय सामंजस्य है।
    यह वीडियो 'युगल रस' नामक काव्य संग्रह के एक रसमय संकीर्तन-
    'तू ही तो है मेरी गति राधे, राधे राधे राधे।'
    की व्याख्या
    (मनगढ़ साधना, दिनांक : 09.10.2000)
    पर आधारित है, जिसकी माधुरी का पान करते-करते सहज ही परमोत्कृष्ट उपदेश साधक के अंतर्मन में उतर जाता है।
    इस वीडियो के कुछ अंश हैं-
    "किशोरी जी सदा हमारे साथ हैं
    हम जहाँ भी जायें, ये फीलिंग क्यों नहीं होती?
    और नहीं होती तो वो नास्तिक है।
    धोखा दे रहा है कि मैं वैष्णव हूँ,
    शैव हूँ, शाक्त हूँ, भक्त हूँ।
    ******
    अब देखो एक पॉइंट।
    सब संतों ने कहा, शास्त्रों ने कहा
    किशोरी जी बिना कारण के कृपा करतीं हैं।
    यानी बिना दाम के सामान देतीं हैं।
    फ्री में।
    दूकान खोल रखा है चौबीस घण्टे।
    और, कुछ लेंगी नहीं, खाली देंगीं।
    क्योंकि तुम्हारे पास कोई चीज़ ऐसी है ही नहीं
    जो दाम बन सके किशोरी जी के दर्शन का,
    प्रेम का, आनन्द का, रस का।
    कोई मूल्य नहीं बन सकता।
    तो तुम दोगे क्या?
    शरीर गन्दा। मन और गन्दा।
    बुद्धि और माशे-अल्लाह।
    क्या दोगे उनको?
    किशोरी जी के काम की तो कोई चीज़ नहीं तुम्हारे पास। हाँ।
    लेकिन वो कृपा करने को तैयार हैं बिना कारण।
    तो फिर करतीं क्यों नहीं हैं कृपा।
    ये क्वेश्चन आया।
    अरे, जब वो कुछ नहीं चाहतीं और कृपा करतीं हैं,
    फिर क्यों नहीं किया, अनन्त जन्म बीत गये।
    उसका कारण है।
    क्या कारण है?
    तुमको ये विश्वास नहीं है
    कि बिना कारण के कृपा करतीं हैं।"
    -जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज
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