हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹
घर के संसार के कार्य तथा परोपकार भी उसी हद तक करना चाहिए जिसमें कि कुछ विश्राम और भगवच्चितन करने का समय मिले। धीरे-धीरे भगवच्चितन का समय बढ़ाना चाहिए। अभ्यास बढ़ जाने से दूसरे कायर्यों को करते समय भी भगवन्चितन होता रहता है। न विश्राम मिले और न प्रभु चितन के लिए समय मिले ऐसा कोई काम न अपनाये। यदि संत-भगवंत सेवा न बनी तो संसार के काम भी नहीं बनेंगे। विमुखों के कार्य की सिद्धि भी असिद्धि के समान है। श्रीजी कृपा करें। 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
┈┉═❀๑⁂❋⁂๑❀═┉┈ नूतन किसलय अनल समाना । देहि अगिनि जनि करहि निदाना ॥ देखि परम बिरहाकुल सीता। सो छन कपिहि कलप सम बीता ॥ ६ ॥ भावार्थ: तेरे नये-नये कोमल पत्ते अग्नि के समान हैं। अग्नि दे, विरह-रोग का अन्त मत कर (अर्थात् विरह रोग को बढ़ा कर सीमा तक न पहुँचा)। सीता जी को विरह से परम व्याकुल देखकर वह क्षण हनुमान जी को कल्प के समान बीता ॥ ६ ॥ ┈┉═❀जय श्रीराम❀═┉┈
┈┉═❀๑⁂❋⁂๑❀═┉┈ पावकमय ससि स्त्रवत न आगी। मानहुँ मोहि जानि हतभागी ॥ सुनहि बिनय मम बिटप असोका । सत्य नाम करु हरु मम सोका ॥ ५ ॥ भावार्थ: चन्द्रमा अग्निमय है, किन्तु वह भी मानो मुझे हतभागिनी जानकर आग नहीं बरसाता। हे अशोकवृक्ष ! मेरी विनती सुन ! मेरा शोक हर ले और अपना [अशोक] नाम सत्य कर ॥ ५ ॥ ┈┉═❀जय श्रीराम❀═┉┈
┈┉═❀๑⁂❋⁂๑❀═┉┈ पावकमय ससि स्त्रवत न आगी। मानहुँ मोहि जानि हतभागी ॥ सुनहि बिनय मम बिटप असोका । सत्य नाम करु हरु मम सोका ॥ ५ ॥ भावार्थ: चन्द्रमा अग्निमय है, किन्तु वह भी मानो मुझे हतभागिनी जानकर आग नहीं बरसाता। हे अशोकवृक्ष ! मेरी विनती सुन ! मेरा शोक हर ले और अपना [अशोक] नाम सत्य कर ॥ ५ ॥ ┈┉═❀जय श्रीराम❀═┉┈
माताश्री प्रणाम चरण स्पर्श जय जय श्री सीताराम 🙏🙏🙏🙏🙏
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉
हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹
लै त्रिशूल धावत बलवाना, छांछी कुआँ एक स्थाना...🙏🙏🙏🙏🙏
घर के संसार के कार्य तथा परोपकार भी उसी हद तक करना चाहिए जिसमें कि कुछ विश्राम और भगवच्चितन करने का समय मिले। धीरे-धीरे भगवच्चितन का समय बढ़ाना चाहिए। अभ्यास बढ़ जाने से दूसरे कायर्यों को करते समय भी भगवन्चितन होता रहता है। न विश्राम मिले और न प्रभु चितन के लिए समय मिले ऐसा कोई काम न अपनाये। यदि संत-भगवंत सेवा न बनी तो संसार के काम भी नहीं बनेंगे। विमुखों के कार्य की सिद्धि भी असिद्धि के समान है। श्रीजी कृपा करें। 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
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नूतन किसलय अनल समाना । देहि अगिनि जनि करहि निदाना ॥
देखि परम बिरहाकुल सीता। सो छन कपिहि कलप सम बीता ॥ ६ ॥
भावार्थ:
तेरे नये-नये कोमल पत्ते अग्नि के समान हैं। अग्नि दे, विरह-रोग का अन्त मत कर (अर्थात् विरह रोग को बढ़ा कर सीमा तक न पहुँचा)। सीता जी को विरह से परम व्याकुल देखकर वह क्षण हनुमान जी को कल्प के समान बीता ॥ ६ ॥
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पावकमय ससि स्त्रवत न आगी। मानहुँ मोहि जानि हतभागी ॥
सुनहि बिनय मम बिटप असोका । सत्य नाम करु हरु मम सोका ॥ ५ ॥
भावार्थ:
चन्द्रमा अग्निमय है, किन्तु वह भी मानो मुझे हतभागिनी जानकर आग नहीं बरसाता। हे अशोकवृक्ष ! मेरी विनती सुन ! मेरा शोक हर ले और अपना [अशोक] नाम सत्य कर ॥ ५ ॥
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पावकमय ससि स्त्रवत न आगी। मानहुँ मोहि जानि हतभागी ॥
सुनहि बिनय मम बिटप असोका । सत्य नाम करु हरु मम सोका ॥ ५ ॥
भावार्थ:
चन्द्रमा अग्निमय है, किन्तु वह भी मानो मुझे हतभागिनी जानकर आग नहीं बरसाता। हे अशोकवृक्ष ! मेरी विनती सुन ! मेरा शोक हर ले और अपना [अशोक] नाम सत्य कर ॥ ५ ॥
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