मेरे सांवरिया सरकार तेरे करने को दीदार नजर मेरी तरफ गई सागर से तेरे गह रे नैना ले गई मेरे दिल काचैना

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  • Опубліковано 11 січ 2025

КОМЕНТАРІ • 13

  • @aloksingh8328
    @aloksingh8328 8 днів тому

    माताश्री प्रणाम चरण स्पर्श जय जय श्री सीताराम 🙏🙏🙏🙏🙏

  • @aloksingh8328
    @aloksingh8328 8 днів тому

    हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉
    हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉

  • @aloksingh8328
    @aloksingh8328 8 днів тому

    हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹 हर हर महादेव।।🌹🌹

  • @aloksingh8328
    @aloksingh8328 8 днів тому

    लै त्रिशूल धावत बलवाना, छांछी कुआँ एक स्थाना...🙏🙏🙏🙏🙏

  • @aloksingh8328
    @aloksingh8328 8 днів тому

    घर के संसार के कार्य तथा परोपकार भी उसी हद तक करना चाहिए जिसमें कि कुछ विश्राम और भगवच्चितन करने का समय मिले। धीरे-धीरे भगवच्चितन का समय बढ़ाना चाहिए। अभ्यास बढ़ जाने से दूसरे कायर्यों को करते समय भी भगवन्चितन होता रहता है। न विश्राम मिले और न प्रभु चितन के लिए समय मिले ऐसा कोई काम न अपनाये। यदि संत-भगवंत सेवा न बनी तो संसार के काम भी नहीं बनेंगे। विमुखों के कार्य की सिद्धि भी असिद्धि के समान है। श्रीजी कृपा करें। 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

  • @aloksingh8328
    @aloksingh8328 8 днів тому

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    नूतन किसलय अनल समाना । देहि अगिनि जनि करहि निदाना ॥
    देखि परम बिरहाकुल सीता। सो छन कपिहि कलप सम बीता ॥ ६ ॥
    भावार्थ:
    तेरे नये-नये कोमल पत्ते अग्नि के समान हैं। अग्नि दे, विरह-रोग का अन्त मत कर (अर्थात् विरह रोग को बढ़ा कर सीमा तक न पहुँचा)। सीता जी को विरह से परम व्याकुल देखकर वह क्षण हनुमान जी को कल्प के समान बीता ॥ ६ ॥
    ┈┉═❀जय श्रीराम❀═┉┈

  • @aloksingh8328
    @aloksingh8328 8 днів тому

    ┈┉═❀๑⁂❋⁂๑❀═┉┈
    पावकमय ससि स्त्रवत न आगी। मानहुँ मोहि जानि हतभागी ॥
    सुनहि बिनय मम बिटप असोका । सत्य नाम करु हरु मम सोका ॥ ५ ॥
    भावार्थ:
    चन्द्रमा अग्निमय है, किन्तु वह भी मानो मुझे हतभागिनी जानकर आग नहीं बरसाता। हे अशोकवृक्ष ! मेरी विनती सुन ! मेरा शोक हर ले और अपना [अशोक] नाम सत्य कर ॥ ५ ॥
    ┈┉═❀जय श्रीराम❀═┉┈

  • @aloksingh8328
    @aloksingh8328 8 днів тому

    ┈┉═❀๑⁂❋⁂๑❀═┉┈
    पावकमय ससि स्त्रवत न आगी। मानहुँ मोहि जानि हतभागी ॥
    सुनहि बिनय मम बिटप असोका । सत्य नाम करु हरु मम सोका ॥ ५ ॥
    भावार्थ:
    चन्द्रमा अग्निमय है, किन्तु वह भी मानो मुझे हतभागिनी जानकर आग नहीं बरसाता। हे अशोकवृक्ष ! मेरी विनती सुन ! मेरा शोक हर ले और अपना [अशोक] नाम सत्य कर ॥ ५ ॥
    ┈┉═❀जय श्रीराम❀═┉┈