श्रीमद भगवद्गीता अध्याय-5

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  • Опубліковано 11 лют 2025
  • श्रीमद भगवद्गीता अध्याय-5 ‎@TSeriesBhaktiSagar ‎@bhaktbhagwatofficial #bhagvadgita #facts
    श्रीमद्भगवद्गीता हिंदू धर्म का एक प्रमुख ग्रंथ है, जो महाभारत के भीष्म पर्व के अंतर्गत आता है। यह भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के मध्य हुए संवाद का संग्रह है, जिसमें जीवन, धर्म, कर्म, योग और मोक्ष से संबंधित गहन ज्ञान दिया गया है।
    श्रीमद्भगवद्गीता का संक्षिप्त परिचय:
    कुल अध्याय: 18
    श्लोकों की संख्या: 700
    मुख्य विषय: कर्मयोग, भक्तियोग, ज्ञानयोग, आत्मा-परमात्मा का संबंध, धर्म का सच्चा स्वरूप
    भगवद्गीता के कुछ महत्वपूर्ण श्लोक एवं अर्थ
    1️⃣ कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
    मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥ (अध्याय 2, श्लोक 47)
    अर्थ: केवल कर्म करने में तुम्हारा अधिकार है, फल की चिंता मत करो। कर्मफल की इच्छा से कर्म मत करो और न ही निष्क्रियता की ओर झुको।
    2️⃣ योगस्थः कुरु कर्माणि संगं त्यक्त्वा धनंजय।
    सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते॥ (अध्याय 2, श्लोक 48)
    अर्थ: योग में स्थिर होकर, आसक्ति को त्यागकर कर्म करो। सफलता और असफलता को समान मानो, यही समत्व ही योग कहलाता है।
    3️⃣ वसांसि जीर्णानि यथा विहाय, नवीनानि गृह्णाति नरोऽपराणि।
    तथा शरीराणि विहाय जीर्णा, न्यन्यानि संयाति नवानि देही॥ (अध्याय 2, श्लोक 22)
    अर्थ: जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर नए वस्त्र धारण करता है, वैसे ही आत्मा पुराने शरीर को त्यागकर नया शरीर धारण करती है।
    भगवद्गीता के प्रमुख उपदेश
    1️⃣ स्वधर्म पालन - अपने कर्तव्यों का ईमानदारी से पालन करना।
    2️⃣ कर्मयोग - निष्काम भाव से कर्म करना।
    3️⃣ ज्ञानयोग - आत्मा और परमात्मा के ज्ञान को समझना।
    4️⃣ भक्तियोग - प्रेम और श्रद्धा के साथ भगवान की भक्ति करना।
    5️⃣ अहंकार का त्याग - स्वयं को कर्ता न मानकर ईश्वर की इच्छा को स्वीकार करना।
    निष्कर्ष
    भगवद्गीता जीवन जीने की एक कला सिखाती है। यह बताती है कि हमें भय और संशय को छोड़कर अपने धर्म और कर्तव्य का पालन करना चाहिए। यह ग्रंथ हमें आत्मा और परमात्मा के वास्तविक स्वरूप को समझने में मदद करता है।
    यदि आप किसी विशेष अध्याय या श्लोक की व्याख्या चाहते हैं, तो बताइए!

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