कुमाऊनी शादी की सबसे महत्वपूर्ण रस्म !! पिठ्या लगाना !!

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  • Опубліковано 30 вер 2024
  • कुमाऊनी शादी की सबसे महत्वपूर्ण रस्म, पिठ्या लगाना।।
    कुमाऊनी संस्कृति।।कब और क्यों बांधते हैं कंकण।।
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    इस विवाह में वर पक्ष के लोग बारात लेकर कन्या के घर जाते हैं। खास व दुल्हन के आंचल को जो कि पीले रंग का महीन व रेशम का कपड़ा होता है, में बांध कर शादी की जाती है। यह विवाह, वैदिक अनुष्ठान और स्थानीय रीति-रिवाजों के मिश्रण के साथ होता है।
    इस विवाह में कई संस्कारों की भूमिका होती है, जिसमें पाणिग्रहण जिसे कन्यादान भी कहा जाता है, सप्तपदी और फेरों का महत्व सबसे अधिक है। इसके अलावा कुछ छोटे-बच्चे संस्कार शादी से पहले और बाद में भी मिलते हैं। विवाह के सभी संस्कार वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ रियासतें होती हैं। आज हम बात करने वाले हैं कुमाऊं मंडल में सबसे ज्यादा प्रचलित वैवाहिक विवाह में जाने वाले अनुष्ठान, संस्कार और स्थानीय रीति-रिवाजों के बारे में।तो शुरू होती है शादी तय करने से। एक-दूसरे के घर में वर-वधु के ससुराल वाले मेल-मिलाप के बाद ही शादी तय हो जाती है। आम तौर पर सजातीय और समकक्ष परिवार के बीच वर-वधू की तलाश करने के बाद यह प्रक्रिया शुरू होती है। पहले तो वर-वधू की जन्म कुंडली का मिलान किया जाता है, मिल गया तो शादी तय हो जाती है। इसे कहते हैं 'ब्या ठरिगो।' इसके बाद पुरोहित शुभ पुरोहित में विवाह दिवस-तारीख तय कर देता है। जिसे 'लगन सूझी गो' कहते हैं। इसके बाद शुरू होती है शादी के लिए इष्ट-मित्रों को न्योता देना की। विवाह की तारीख तय हो जाने के बाद वर व कन्या की ओर से अपने बिरादरो, रिश्तेदारों और परिचितों को सूचित किया जाता है।
    कुमाऊं आंचल में अपने गांव और आसपास के इलाकों में निमंत्रण की परंपरा रही है, यहां न्यूत कहा जाता है। कुमाऊं आंचलिक के संस्कार शास्त्र में सुवा यानी तोते के माध्यम से लोगों को निमंत्रण का वर्णन है।
    बिना किसी बाधा के बिना किसी बाधा के इस कामना के साथ गणेश पूजा की जाती है। वधू पक्ष के लोग अपने-अपने घर में विवाह से एक-दो दिन पहले सिद्धिदाता भगवान गणेश की प्रतिमा का पूजन करते हैं।जिसे कुमाऊं आंचल में गणेश में दूब रखना कहा जाता है। आबदेव पूर्वांग, गणेश पूजन, मातृका पूजन, नंदीश्राद्ध, पुण्याहवा, कलश स्थापना, नवग्रह पूजन के बाद प्रधान दीपक जलाया जाता । अगला कार्यक्रम सुवाल पथाई है. विवाह से एक, तीन या पांच दिन पहले वर वधू दोनों के घर में सुवाल पथाई का संस्कार होता है। इस परंपरा में आटे से बने सूवाल शामिल हैं, जिनमें सुवाल के साथ आटे के साथ, चावल और तिल के लड्डू भी बनते हैं। सुवाल पथाई के लिए आटा गूंधने के दौरान मंगल गीत गाए जाते हैं।
    इन अनुष्ठानों के साथ ही वर और कन्या को उनके घनिष्ठ संबंधों द्वारा हल्दी लगाई जाती है और अपने हाथों से स्नान भी कराया जाता है। वर-कन्या के हाथों में कंकण यानी पीले कपड़े के एक टुकड़े में रखी सुपारी और मुद्रा की छोटी पोटली बांधी जाती है। इन विपदाओं की संपत्ति के बाद कन्या के माता-पिता उनकी विदाई तक व्रत रखते हैं।
    अब बारी आती है तिलक की।विवाह लग्न के एक दिन पहले या फिर बारात आने से कुछ समय पहले तिलक यानि पिठया लगाया जाता है।इसमें वर पक्ष की ओर से पांच या सात लोग कन्या पक्ष के घर वाले वधू को टीका लगाते हैं और उसे वस्त्र, फल, मिष्ठान और कैश वगैरा तोहफ़े में देते हैं। यहां कन्या पक्ष की ओर से भी रिटर्न्स में उपहार दिए जाते हैं। इस कार्यक्रम में भावी वर की उपस्थिति आवश्यक नहीं है। इस अनुष्ठान को मैदानी इलाके की सगाई की तरह माना जा सकता है।
    इसके बाद विवाह का अगला महत्वपूर्ण अनुष्ठान है धुलीअर्घ्य। गोधुली की बेला में जब कन्या के घर के द्वार पर बारात निकलती है तो कन्या जल से निकले हुए कलश के सर पर बारातियों का स्वागत किया जाता है।
    सौजन्य से-काफल ट्री डेस्क

КОМЕНТАРІ • 6

  • @kanchanabhakuni5161
    @kanchanabhakuni5161 Рік тому +1

    tika lagana mtlab sgaai

  • @sunitatiwari636
    @sunitatiwari636 Рік тому +1

    टीका लगाने का मुख्य उद्देश्य यह होता है, कि टीका लगने के बाद दुल्हन दूल्हा की हो जाती है इसे आधी शादी माना जाता है

  • @chandansinghmanral3506
    @chandansinghmanral3506 Рік тому +1

    लड़की सर पर लोटा लेकर नही आई पानी भरा हुआ उस पानी को बर पक्स के लोग पीते हैं ये हि मेन् है

    • @tiwarijihills
      @tiwarijihills  Рік тому +2

      जानकारी जोड़ने हेतु आभार।अपनी संस्कृति को लोगो तक पहुंचाने का प्रयास है,वीडियो आपने देखा,आपका आभारी हूं।