Bahut acha vichaar lajabab javab nahin hain dhan nirankarji mahapurushji satgurumataji sudikcha sabindar hardeoji Maharaj ji ki jai bakes lea satgurumataji sudikcha ji dhan nirankarji
⬛क्या मूर्तिपूजा वेद-शास्त्र विरुद्ध है?⬛ ✔भारत में मूर्ति-पूजा जैनियों ने लगभग तीन हजार वर्ष पूर्व से चलाई। जिससे उस समय तो आदि शंकराचार्य ने निजात दिला दी परंतु उनके मरते ही उनको शिव का अवतार ठहरा कर उनकी भी मूर्ति पूजा करने लगी। ◼ सृष्टि के आरम्भ की सबसे पुरानी पुस्तक वेद में एक निराकार ईश्वर की उपासना का ही विधान है, चारों वेदों के ( 20589) मंत्रों में कोई ऐसा मंत्र-श्लोक नहीं है जो मूर्ति पूजा का पक्षधर हो। ✔महर्षि दयानन्द के शब्दों में मूर्ति-पूजा वैसे है जैसे एक चक्रवर्ती राजा को पूरे राज्य का स्वामी न मानकर एक छोटी सी झोपड़ी का स्वामी मानना। ✔वेदों में परमात्मा का स्वरूप यथा प्रमाण ?✔ ◼ न तस्य प्रतिमाsअस्ति यस्य नाम महद्यस:। - ( यजुर्वेद अध्याय 32, मंत्र 3 ) ✔उस ईश्वर की कोई मूर्ति अर्थात् प्रतिमा नहीं जिसका महान यश है। ◼ वेनस्त पश्यम् निहितम् गुहायाम। - ( यजुर्वेद अध्याय 32 , मंत्र 8 ) ✔ विद्वान पुरुष ईश्वर को अपने हृदय में देखते है। ◼ अन्धन्तम: प्र विशन्ति येsसम्भूति मुपासते। ततो भूयsइव ते तमो यs उसम्भूत्या-रता:।। - ( यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 9 ) ✔अर्थ - जो लोग ईश्वर के स्थान पर जड़ प्रकृति या उससे बनी मूर्तियों की पूजा उपासना करते हैं, वह लोग घोर अंधकार ( दुख ) को प्राप्त होते हैं। हालांकि वेदों के प्रमाण देने के बाद किसी और प्रमाण की जरूरत नहीं परंतु आदि शंकराचार्य, आचार्य चाणक्य से लेकर महर्षि दयानन्द और, ✔ निरंकारी बाबा बूटा सिंह से लेकर माता सुदीक्षा जी महाराज तक सब महान विद्वानों ने इस बुराई की हानियों को देखते हुए इसका सत्य आम जन को बताया। 🔲बाल्मीकि रामायण में आपको सत्य का पता चल जाएगा की श्रीराम जी ने शिवलिंग की पूजा की थी या संध्या करके सच्चे शिव निराकार परमात्मा की उपासना की थी। ◼यच्चक्षुषा न पश्यति येन चक्षूंषि पश्यन्ति। तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि नेदं यदिदमुपासते॥ - केनोपनि०॥ - सत्यार्थ प्र० २५४) ✔अर्थात जो आंख से नहीं दीख पड़ता और जिसमें से सब आंखें देखती है, उसी को तू ब्रह्म जान और उसी की उपासना कर । और जो उस से भिन्न सूर्य, विद्युत और अग्नि आदि जड़ पदार्थ है, उन की उपासना मत कर॥ ◼ अधमा प्रतिमा- पूजा। अर्थात् - मूर्ति-प्रतीक पूजा सबसे निकृष्ट है। ◼ यष्यात्म बुद्धि कुणपेत्रिधातुके स्वधि … स: एव गोखर: ll - ( ब्रह्मवैवर्त्त ) ✔अर्थात् - जो लोग धातु, पत्थर, मिट्टी आदि की मूर्तियों में परमात्मा को पाने का विश्वास तथा जल वाले स्थानों को तीर्थ समझते हैं, वे सभी मनुष्यों में बैलों का चारा ढोने वाले गधे के समान हैं। ◼ जो जन परमेश्वर को छोड़कर किसी अन्य की उपासना करता है वह विद्वानों की दृष्टि में पशु ही है। - ( शतपथ ब्राह्मण 14/4/2/22 ) मूर्ति-पूजा पर विद्वानों के विचार ◼ नास्तिको वेदनिन्दक:॥ - मनु० अ० १२ मनु जी कहते है कि जो वेदों की निन्दा अर्थात अपमान, त्याग, विरुद्धाचरण करता है वह नास्तिक (Atheist) कहाता है। ◼ प्रतिमा स्वअल्पबुद्धिनाम। - आचार्य चाणक्य ( चाणक्य नीति अध्याय 4 श्लोक 19 ) अर्थात् - मूर्ति-पूजा मूर्खो के लिए है। ◼मूर्ति पूजक कहते है मूर्ति पूजा एक माध्यम है l * मूर्ति-पूजा कोई सीढी या माध्यम नहीं बल्कि एक गहरी खाई है जिसमें गिरकर मनुष्य चकनाचूर हो जाता है जो पुन: उस खाई से निकल नहीं सकता। ◼ ( दयानन्द सरस्वती स.प्र. समु. 11 में ) वेदों में मूर्ति-पूजा निषिद्ध है अर्थात् जो मूर्ति पूजता है वह वेदों को नहीं मानता तथा “नास्तिको वेद निन्दक:” अर्थात् मूर्ति-पूजक नास्तिक हैं। ◼ संत कबीर जी ने मूर्ति पूजा का विरोध करते हुए कहते है l पत्थर पूजे हरि मिले मैं तो पूजूँ पहाड़। दुनिया ऐसे बावरी जो पत्थर पूजन जाये। घर का चक्कि कोई ना पूजे, जिसका पीसा खाये ll ✔यदि पत्थर कि मूर्ती कि पूजा करने से भगवान् मिल जाते तो मैं पहाड़ कि पूजा कर लेता हूँ । उसकी जगह घर की चक्की की पूजा कोई नहीं करता, जिस में अन्न पीस कर लोग अपना पेट भरते हैं l ◼कुछ लोग कहते है,भावना में भगवान होते है । यदि ऐसा है तो मिट्टी में चीनी की भावना करके खाये तो क्या मिट्टी में मिठास का स्वाद मिलेगा? ◼आज यही बात निरंकारी मिशन कह रहा है l ✔एक को जानो, एक को मनो और एक हो जाओ ✔ इसी निराकार परमात्मा की बात बता रहा है, लेकिन लोग भरम में हैं, जब की यह लोग वेद-शास्त्र पढ़ते नहीं और काल्पनिक बातो में कर्म कांडो में फसे रहते हैं और अपना जीवन ब्यर्थ कर रहे हैं l ✔अतः प्रार्थना है कि, समय का सतगुरू से परमात्मा की पहचान करके ज्ञानी बने और सच्चे भक्त बने आनंदित रहे और औरों को भी यह आनंद प्राप्त होने का कारण बने ll ✍ ll धन निरंकार जी ll
Dhan nirankarji mahapurushji ko dhan nirankarji satgurumataji sudikcha sabindar hardeoji Maharaj ji dhan nirankarji bakes lea satgurumataji sudikcha ji
Very good very nice Maney maney dhan nirankar ji.
पवित्र विचार धन निरंकार जी
Bahut acha vichaar lajabab javab nahin hain dhan nirankarji mahapurushji satgurumataji sudikcha sabindar hardeoji Maharaj ji ki jai bakes lea satgurumataji sudikcha ji dhan nirankarji
Dhan nirankar ji great man we are miss you
Mahan sant Niranjan singh Ji🦁💪🌹🙏
धन निरंकार जी महापुरुषों जी आप जी के 👣 में कोटि-कोटि आप जी के चरणों में आप जी के विचार को जीवन में धारण -कर्म
धन निरंकार जी! प्रभु जी!
DHAN NIRANKAR JI 🙏🙏
Dhan nirankar ji sant ji.we will always miss you
Tu hi nirankar 🙏🙏
धन निरंकार जी
dhan nirankar g
🙏🙏Dhan Nirankar Ji🙏🙏
Dhan nirnkar ji 💐🌹🙏💐
Dhan Nirankar Ji....🙏🙏🙏🙏
True Sandesh to US.
⬛क्या मूर्तिपूजा वेद-शास्त्र विरुद्ध है?⬛
✔भारत में मूर्ति-पूजा जैनियों ने लगभग तीन हजार वर्ष पूर्व से चलाई। जिससे उस समय तो आदि शंकराचार्य ने निजात दिला दी परंतु उनके मरते ही उनको शिव का अवतार ठहरा कर उनकी भी मूर्ति पूजा करने लगी।
◼ सृष्टि के आरम्भ की सबसे पुरानी पुस्तक वेद में एक निराकार ईश्वर की उपासना का ही विधान है, चारों वेदों के ( 20589) मंत्रों में कोई ऐसा मंत्र-श्लोक नहीं है जो मूर्ति पूजा का पक्षधर हो।
✔महर्षि दयानन्द के शब्दों में मूर्ति-पूजा वैसे है जैसे एक चक्रवर्ती राजा को पूरे राज्य का स्वामी न मानकर एक छोटी सी झोपड़ी का स्वामी मानना।
✔वेदों में परमात्मा का स्वरूप यथा प्रमाण ?✔
◼ न तस्य प्रतिमाsअस्ति यस्य नाम महद्यस:।
- ( यजुर्वेद अध्याय 32, मंत्र 3 )
✔उस ईश्वर की कोई मूर्ति अर्थात् प्रतिमा नहीं जिसका महान यश है।
◼ वेनस्त पश्यम् निहितम् गुहायाम।
- ( यजुर्वेद अध्याय 32 , मंत्र 8 )
✔ विद्वान पुरुष ईश्वर को अपने हृदय में देखते है।
◼ अन्धन्तम: प्र विशन्ति येsसम्भूति मुपासते।
ततो भूयsइव ते तमो यs उसम्भूत्या-रता:।। - ( यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 9 )
✔अर्थ - जो लोग ईश्वर के स्थान पर जड़ प्रकृति या उससे बनी मूर्तियों की पूजा उपासना करते हैं, वह लोग घोर अंधकार ( दुख ) को प्राप्त होते हैं।
हालांकि वेदों के प्रमाण देने के बाद किसी और प्रमाण की जरूरत नहीं परंतु आदि शंकराचार्य, आचार्य चाणक्य से लेकर महर्षि दयानन्द और,
✔ निरंकारी बाबा बूटा सिंह से लेकर माता सुदीक्षा जी महाराज तक सब महान विद्वानों ने इस बुराई की हानियों को देखते हुए इसका सत्य आम जन को बताया।
🔲बाल्मीकि रामायण में आपको सत्य का पता चल जाएगा की श्रीराम जी ने शिवलिंग की पूजा की थी या संध्या करके सच्चे शिव निराकार परमात्मा की उपासना की थी।
◼यच्चक्षुषा न पश्यति येन चक्षूंषि पश्यन्ति।
तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि नेदं यदिदमुपासते॥ - केनोपनि०॥ - सत्यार्थ प्र० २५४)
✔अर्थात जो आंख से नहीं दीख पड़ता और जिसमें से सब आंखें देखती है, उसी को तू ब्रह्म जान और उसी की उपासना कर । और जो उस से भिन्न सूर्य, विद्युत और अग्नि आदि जड़ पदार्थ है, उन की उपासना मत कर॥
◼ अधमा प्रतिमा- पूजा।
अर्थात् - मूर्ति-प्रतीक पूजा सबसे निकृष्ट है।
◼ यष्यात्म बुद्धि कुणपेत्रिधातुके
स्वधि … स: एव गोखर: ll - ( ब्रह्मवैवर्त्त )
✔अर्थात् - जो लोग धातु, पत्थर, मिट्टी आदि की मूर्तियों में परमात्मा को पाने का विश्वास तथा जल वाले स्थानों को तीर्थ समझते हैं, वे सभी मनुष्यों में बैलों का चारा ढोने वाले गधे के समान हैं।
◼ जो जन परमेश्वर को छोड़कर किसी अन्य की उपासना करता है वह विद्वानों की दृष्टि में पशु ही है। - ( शतपथ ब्राह्मण 14/4/2/22 )
मूर्ति-पूजा पर विद्वानों के विचार
◼ नास्तिको वेदनिन्दक:॥ - मनु० अ० १२
मनु जी कहते है कि जो वेदों की निन्दा अर्थात अपमान, त्याग, विरुद्धाचरण करता है वह नास्तिक (Atheist) कहाता है।
◼ प्रतिमा स्वअल्पबुद्धिनाम। - आचार्य चाणक्य
( चाणक्य नीति अध्याय 4 श्लोक 19 )
अर्थात् - मूर्ति-पूजा मूर्खो के लिए है।
◼मूर्ति पूजक कहते है मूर्ति पूजा एक माध्यम है l
* मूर्ति-पूजा कोई सीढी या माध्यम नहीं बल्कि एक गहरी खाई है जिसमें गिरकर मनुष्य चकनाचूर हो जाता है जो पुन: उस खाई से निकल नहीं सकता।
◼ ( दयानन्द सरस्वती स.प्र. समु. 11 में )
वेदों में मूर्ति-पूजा निषिद्ध है अर्थात् जो मूर्ति पूजता है वह वेदों को नहीं मानता तथा “नास्तिको वेद निन्दक:” अर्थात् मूर्ति-पूजक नास्तिक हैं।
◼ संत कबीर जी ने मूर्ति पूजा का विरोध करते हुए कहते है l
पत्थर पूजे हरि मिले मैं तो पूजूँ पहाड़।
दुनिया ऐसे बावरी जो पत्थर पूजन जाये।
घर का चक्कि कोई ना पूजे,
जिसका पीसा खाये ll
✔यदि पत्थर कि मूर्ती कि पूजा करने से भगवान् मिल जाते तो मैं पहाड़ कि पूजा कर लेता हूँ । उसकी जगह घर की चक्की की पूजा कोई नहीं करता, जिस में अन्न पीस कर लोग अपना पेट भरते हैं l
◼कुछ लोग कहते है,भावना में भगवान होते है । यदि ऐसा है तो मिट्टी में चीनी की भावना करके खाये तो क्या मिट्टी में मिठास का स्वाद मिलेगा?
◼आज यही बात निरंकारी मिशन कह रहा है l
✔एक को जानो, एक को मनो और एक हो जाओ ✔
इसी निराकार परमात्मा की बात बता रहा है, लेकिन लोग भरम में हैं, जब की यह लोग वेद-शास्त्र पढ़ते नहीं और काल्पनिक बातो में कर्म कांडो में फसे रहते हैं और अपना जीवन ब्यर्थ कर रहे हैं l
✔अतः प्रार्थना है कि, समय का सतगुरू से परमात्मा की पहचान करके ज्ञानी बने और सच्चे भक्त बने आनंदित रहे और औरों को भी यह आनंद प्राप्त होने का कारण बने ll
✍ ll धन निरंकार जी ll
Great speech dhannirankar ji
Great speech by great man
Dhan nirankar ji kirpa karo das pe satguru 🙏🙏🙏🙏🙏🙏
Dhan Nirankarji
koe mahpursh das sakde niranjan singh mahpursh kithe rehnde aa??
Das do plzz
@@zindgizindabaad315 brother was lives in chandigarh 34 secter
@@zindgizindabaad315 but today he dies
@@zindgizindabaad315 Chandigarh 😭😭
Dhan Nirankar g
Dhan nirankarji
🙏🙏Dhan Nirankar ji🙏🙏
gurumat
Dhan nirankar ji 🙏🙏
Dhan nirankar Mata ji 🙏🙏
Dhan Nirankar ji
Dhan nirankar ji 🙏🙏
Dhan Nirankar ji
Very good speech
Dhan nirankar ji 🙏🙏🙏🙏
Dhan nirankar ji
Dhan nirankar Ji🙏🙏
Dhan nirankar ji 🙏🙏🙏🌷🌷🙏🙏💐🌺🥀🌹🤍🌺🙏🙏🌷
Dhan nirankar jee 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
Dhan nirankar ji
Dhan nirankar ji mahapurso ji
Dhan nirankar ji
Dhan nirankar ji 🙏🙏🙏🙏🙏