विकट नृसिंह महाकवच | Vikat Narasimha Mahakavach
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- Опубліковано 16 вер 2024
- मंत्र तंत्र यंत्र चॅनेल मे आप सभी का स्वागत है आज मै आप सभी के लिए विकट नृसिंह कवच लेकर आया हु
विकट नृसिंह कवच प्रतिदिन सुनने के लाभ इस प्रकार है
भगवान विष्णु के सभी अवतारों में नृसिंह अवतार सबसे उग्र माना गया हैं। विकट नृसिंह कवच बहुत ही शक्तिशाली महाकवच हैं। इस कवच का पाठ करने से व्यक्ति की समस्त दुःख, कष्ट, पीड़ा, पितृ दोष, भूत-प्रेत, शत्रु बाधा आदि से रक्षा होने लगती हैं। यदि किसी व्यक्ति के शत्रु उसके ऊपर तंत्र-मंत्र, काले जादू का प्रयोग करके, उसे नुकसान पहुँचाने की कोशिश कर रहे हैं, उसके प्रत्येक कार्य में बाधा डाल रहे हैं, उसे सफल नही होने देना चाह रहे हैं, समाज में नीचा दिखाने की कोशिश कर रहे हैं, उसकी अच्छाई का फायदा उठा रहे हैं, तो ऐसे में, उस व्यक्ति को विकट नृसिंह कवच का पाठ अवश्य ही करना चाहिए।
इस पाठ को करने से भय दूर होने लगता हैं, समस्त शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है और उनके बनाये गये षड्यंत्र से रक्षा होती हैं। अगर कोई व्यक्ति धन, व्यापार, नौकरी आदि जैसी किसी आर्थिक परेशानी से जूझ रहा है, किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त नहीं कर पा रहा है, धन का भी बार-बार नुकसान हो रहा है, तो ऐसे में, उसे नृसिंह गुटिका धारण कर, विकट नृसिंह कवच का पाठ अवश्य ही करना चाहिए। इस गुटिका को धारण करने से जीवन से दुःख-दरिद्रता दूर होने लगती हैं, आर्थिक स्थिति ठीक होती हैं और धन में भी वृद्धि होती है। प्रत्येक व्यक्ति को नित्य पूजा में विकट नृसिंह कवच का पाठ अवश्य करना चाहिए, जिससे उसके जीवन से समस्त बाधाएँ दूर हो सके।
यह विकट नृसिंह कवच मै आप सभी के लिए पाठ करके दे रहा हु कृपया उसे प्रति दिन सुने और लाभले चॅनल को शेअर करे सबस्क्राईब करे इसी गुरुदक्षिणा के हम आपसे आशा करते है धन्यवाद
विकट नृसिंह कवच
श्री नृसिंहाय नमः।
विनियोगः
ॐ अस्य श्री नृसिंहमन्त्रस्य प्रहराऋषिः। शिरसि।
अनुष्टुभ् छन्दः मुखे।जीवो बीजं ह्रदि।
अनन्तशक्तिः नाभौ। परमात्मा कीलकम् गुह्ये।
श्रीनृसिंहदेवता प्रीत्यर्थे जप विनियोगः।
शत्रुहानिपरोमोक्षमर्थदिव्य न संशयः ।
अथदिग्बंधः ।
पूर्वेनृसिंह रक्षेश्च ईशान्ये उग्ररुपकम् ।
उत्तरे वज्रको रक्षेत् वायव्यांच महाबले ।
पश्चिमे विकटो रक्षेत् नैऋत्यां अग्निरुपकम् ।
उत्तरे वज्रको रक्षेत् वायव्यांच महाबले ।
पश्चिमे विकटो रक्षेत् नैऋत्यां अग्निरुपकम् ।
दक्षिणे रौद्र रक्षेच्च घोररुपंच अग्नेय्याम् ।
ऊर्ध्व रक्षेन्महाकाली अधस्ताद्दैत्यमर्दनः ।
एताभ्यो दशदिग्भ्यश्च सर्वं रक्षेत् नृसिंहकः ।
ॐ क्रीं छुं नृं नृं र्हींर र्हीं् रुं रुं स्वाहा ॥
ॐ नृसिंहाय नमः । ॐ वज्ररुपाय नमः ।
ॐ कालरुपाय नमः । ॐ दुष्टमर्दनाय नमः ।
ॐ शत्रुचूर्णाय नमः । ॐ भवहारणाय नमः ।
ॐ शोकहराय नमः । ॐ नरकेसरी वुं हुं हं फट् स्वाहा ।
इति दिग्बंधन मन्त्रः
ॐ छुं छुं नृं नृं रुं रुं स्वाहा ।
ॐ वुं वुं वुं दिग्भ्यः स्वाहा । नृसिंहाय नमः ।
ॐ र्हंद र्हं। र्हंर नृसिंहांय नमः ।
अथ न्याः । ॐ अं ऊं अंगुष्ठाभ्यां नमः ।
ॐ नृं नृं नृं तर्जनीभ्यां नमः ।
ॐ रां रां रां मध्यमाभ्यां नमः ।
ॐ श्रां श्रां श्रां अनामिकाभ्यां नमः ।
ॐ ईं ईं कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
ॐ भ्रां भ्रां भ्रां करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।
ॐ व्रां व्रां व्रां ह्रदयाय नमः ।
र्हां् र्हां् र्हां् शिरसे स्वाहा ।
ॐ क्लीं क्लीं क्लीं शिखायै वौषट् ।
ॐ ज्रां ज्रां ज्रां कवचाय हुम् ।
ॐ श्रीं श्रीं श्रीं नेत्रत्रयायै वौषट् ।
ॐ आं आं आं अस्त्राय फट् ।
अथ नमस्कृत्य:
ॐ नृसिंहकालाय कालरुपघोराय च ।
नमो नृसिंहदेवाय कारुण्याय नमो नमः ।
ॐ रां उग्राय नमः ।
ॐ धारकाय उग्राय उग्ररुपाय ।
ॐ ऊं धारणाय नमः ।
ॐ बिभीषणभद्राय नमो नमः ।
करालाय नमः । ॐ वज्ररुपाय नमः ।
ॐ ॐ ॐ ॐ काररुपाय नमः ।
ॐ ज्वालारुपाय नमः ।
ॐ परब्रह्मतो नृं रां रां रां नृसिंहाय सिंहरुपाय नमो नमः ।
ॐ नरकेसरी रां रां खं भीं नृसिंहाय नमः ।
अकारः सर्व संराजतु विश्वेशी विश्वपूजितो ।
ॐ विश्वेश्वराय नमः ।
ॐ र्होंी स्त्रां स्त्रां स्त्रां सर्वदेवेश्वरी निरालम्बनिरंजननिर्गुणसर्वश्वैव तस्मै नमस्ते ।
ॐ रुं रुं रुं नृसिंहाय नमः ।
ॐ औं उग्राय उग्ररुपाय उग्रधराय ते नमः ।
ॐ भ्यां भ्यां विभीषणाय नमस्ते नमस्ते ।
भद्राय भद्र रुपाय भवकराय ते नमो नमः ।
ॐ व्रां व्रां व्रां वज्रदेहाय वज्रतुण्डाय नमो
भव वज्राय वज्रनखाय नमः ।
ॐ र्हां र्हां र्हां हरित क्लीं क्लीं
विष सर्वदुष्टानां च मर्दनं दैत्यापिशाचाय
अन्याश्च महाबलाय नमः ।
ॐ र्लीं र्लीं लृं कामनार्थं कलिकालाय नमस्ते कामरुपिणे ।
ॐ ज्रां ज्रां ज्रां ज्रां सर्वजगन्नाथ जगन्महीदाता जग्न्महिमा जगव्यापिने देव तस्मै नमो नमः ।
ॐ श्री श्री श्री श्रीधर सर्वेश्वर श्रीनिवासिने ।
ॐ आं आं आं अनन्ताय अनन्तरुपाय विश्वरुपाय नमः ।
नमस्ते विश्वव्यापिणे । इति स्तुतिः ।
ॐ विकटाय नमः । ॐ उग्ररुपाय नमः स्वाहा ।
ॐ श्रीनृसिंहाय उद्विघ्नाय विकटोग्रतपसे
लोभमोहविवर्जितं त्रिगुणरहितं
उच्चाटनभ्रमितं सर्वमायाविमुक्तं नृसिंह
रागविवर्जित विकटोग्र - नृसिंह नरकेसरी ॥
ॐ रां रां रां रां रां र्हं र्हंस क्षीं क्षीं धुं धुं फट् स्वाहा ॥
ॐ नमो भगवते श्री लक्ष्मीनृसिंहाय ज्वाला मालाय दीप्तदंष्ट्राकरालाय ज्वालाग्निनेत्रायसर्वक्षोघ्नाय सर्वभूतविनाशाय सर्व विषविनाशाय
सर्व व्याधिविनाशनाय हन हन दह दह पच पच वध वध बन्ध बन्ध रक्ष रक्ष मां हुं फट् स्वाहा ॥
इति श्री महानृसिंहमन्त्रकवच सम्पूर्णमस्तु । शुभमस्तु । नृसिंहार्पणमस्तु ॥