वाक, तदेक से उपजा प्रथम आघोष or Devine Music of Pythagoras -Rati Saxena
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- Опубліковано 7 лют 2025
- कहा जाता है कि पाइथोगोरस ने चार लौहारों को लोहे पर एक साथ हथोड़ा मारते देखा, उनके हाथ एक साथ चल रहे थे, और उससे एक संगीत का उत्पन्न हो रहा था।
इसी तरह जब उन्होंने संगीतकार को वाद्ययन्त्र बजाते हुए देखा तो पाया कि जब वह लम्बे तार पर आघात करता है तो मन्दिम ध्वनि उपजती है, लेकिन छोटे तार पर आघात से तीव्र गति उत्पन्न होती है। ध्वनि में एक तरह का संगीत होता है, चाहे वह लोहे से निकले या फिर महीन तार से। और इस संगीत में एक लय या ताल होती है, जिसे गणितीय अंकों में मापा जा सकता है।
अनेक वैश्विक रहस्यों को समझने के लिए देखना एक बहुत महत्वपूर्ण क्रिया है, और यही पुरातन चिन्तकों का आधार रहा है। पाइथोगोरिस ने संगीत और गणित में अन्तर्सम्बध है?
पाइथोगोरस ने इस आधार पर यह चिन्तन किया कि ब्रह्माण्ड के समस्त उपग्रहों के मध्य एक संगीतीय तालमेल है, हम मनुष्य उस डिवाइन संगीत को सुन नहीं पाते, लेकिन वहसंगीत अपने लय को बनाये रखता है।
तभी पाइथोगोरिस ने कहा कि Every thing is number
पाइथोगोरस से पूर्व सम्भव है, अनेकों ने उस संगीत को सुना या समझा हो, चाहे वे पिरामिड के निर्माता थे, या माया सभ्यता के प्रणेता। या इस सिन्धु प्रदेश के आदि चिन्तक।
हम अब सीधे ऋग्वेद पर आते हैं, हमने पिछले वीडियों में ऋग्वेद के नासदीय सूक्त के बारे में जाना है, जिसमें उस स्थिति का वर्णन है, जब गहन गभीर सलिन भी अनिवर्चनीय था, मृत्यु , अमृत, दिन रात की स्थिति नहीं थी। उस समय केवल तदेक था, उसने अपने भीतर काम, अर्थात इच्छा शक्ति को जगाया, और सलिल को व्याकृत किया, उसी से वाक् उत्पन्न हुई, वाक् प्रथम शब्द घोष या जीवन शक्ति थी, वही ब्रह्माण्ड की प्रथम चेतना थी, जिसने ब्रह्माण्ड के पसरते हुए उपग्रहों के मध्य एक संगीतात्मक सम्बन्ध स्थापित कर दिया था।
नासदासीन्नो सदासीत्तदानीं नासीद्रजो नो व्योमा परोयत।
किमावरीवः कुहु कस्य शर्मन्नम्भः किमासीद् गहनं गंभीरम्।।
न मृत्युरासीदमृतं न तर्हि न रात्र्या अह्न आसीत्प्रकेतः ।
आनीदवातं स्वधया तदेकं तस्मद्धान्यन्न परः किं चनास।
तम आसीत्तमसा गूळहमग्रेच्प्रकेतं सलिलं सर्वमा इदम्।। ऋक् 10.129.1,2,3
इसी लिये उसे विश्व की निर्माता शक्ति मान लिया गया।
सा विश्वायुः सा विश्वकर्मा सा विश्वघायाः -यजुः 1/4
सामवेद में भी कुछ इस तरह से कहा गया है
अप्सु रेतः शित्रियै विश्वरूपं तेजः पृथिव्यामधि यत्संबभूव । साम 18/44
अथर्ववेद में वाक अर्थात् इस अध्यात्मिक डिवाइन लयात्मक वाक को विस्तार दिया गया है,
ऋषि कहते हैं कि वह तदेक के मन के चेतन से उपजी प्रथम गौ, अर्थात् गतिशील शक्ति वाक है, जिसे कवि विराज भी कहते हैं , गौ का अर्थ है, गमनशील . - गच्छति इति गौः उ को 2-64
उणादि कोष में वाक को गौ भी कहा गया है, यानि कि जो गतिशील है, वह वाक है
अथर्ववेद में कहा गया है,
सा ते काम दुहिता धेनुरुच्यते यामाहुर्वाचं कवयो विराजमा अवे 9/2/5
वाक ध्वनि सतत विस्तरित होती है, इसलिए कहा गया है कि गतिशील उस अप्रकेत सलिल से उत्पन्न होकर एक पदी होती है, फिर द्वी पदि होती है, त्रि पदि होतती है, अर्थात् विस्तृत होती हुई सहस्र अक्षर होती हुई इस सलिल के उपर विचरण करती है।
गौरिन्मिमाय सलिलानि तक्षत्येकपदी द्विपदी सा चतुष्पदी।
अष्टापदी नव पदी बभूवुषी सहस्राक्षरा भुवनस्य पंक्तिस्तस्याः समुद्रा अधि वि क्षरन्ति।। 9/10/(15)/21
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वेद में कहा गया है कि व्याकृत हुई वाक का केवल चतुरांश ही मनुष्य द्वारा प्रयुक्त होता है, अन्य तीन गुप्त रहते हैं,
चत्वारि वाक् परिमिता पदानि तानि विदुब्राह्मणा ये मनीषिणः।
गुहा त्रीणि निहिता नेंगयन्ति तुरीयं वाचो मनुष्या वदन्ति।। अवे9/10/6
Every thing is numbers, छन्दों में मात्रा गणना एक गणित है 🙏
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