पितृपक्ष रविवार सूर्य देव को जल चढ़ाने वाले लोटे में डाल दे ये 1 चीज पितृदोष से मुक्ति Pitru Paksha
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- Опубліковано 10 лис 2024
- पितृपक्ष में रोज सूर्य देव को जल चढ़ाने वाले लोटे में डाल दे ये 1 चीज पितृदोष से मुक्ति Pitru Paksha
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पितृपक्ष 16 दिन रोज रात घर में यहां जलाए 1 दीपक पूर्वजों को मिलेगी मुक्ति पितृदोष होगे दूर / श्राद्ध
पितृ पक्ष सितंबर महीने में प्रारंभ होंगे। हिंदू पंचांग के अनुसार, अश्विन मास की पूर्णिमा तिथि से पितृपक्ष आरंभ होंगे। पितृ पक्ष अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि से कुल 16 दिनों तक मनाए जाते हैं। इस साल पितृ पक्ष 17 सितंबर से शुरू होकर 2 अक्टूबर तक रहेंगे। मान्यता है कि पितृ पक्ष में पितरों से संबंधित कार्य करने पर उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। हिंदू धर्म में पितृ गण देवतुल्य होते हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पितृपक्ष में पूर्वजों का तर्पण नहीं करने पर पितृ दोष लगता है। पितृ पक्ष में श्राद्ध अमावस्या तिथि पर की जाती है। पितृ पक्ष में मृत्यु की तिथि के अनुसार श्राद्ध किया जाता है। अगर किसी मृत व्यक्ति की तिथि ज्ञात न हो तो ऐसी स्थिति में अमावस्या तिथि पर श्राद्ध किया जाता है। इस दिन सर्वपितृ श्राद्ध योग माना जाता है।
पितृ पक्ष की महत्वपूर्ण तिथियां-
हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल पितृ पक्ष 17 सितंबर से शुरू होंगे, जो कि 2 अक्टूबर को समाप्त होंगे। इस साल 28 सितंबर को पितृ पक्ष की कोई तिथि नहीं है।
पितृ पक्ष 2024 की तिथियां
पूर्णिमा श्राद्ध - 17 सितंबर
प्रतिपदा श्राद्ध - 18 सितंबर
द्वितीया श्राद्ध - 19 सितंबर
तृतीया श्राद्ध - 20 सितंबर
चतुर्थी श्राद्ध - 21 सितंबर
पंचमी श्राद्ध - 22 सितंबर
षष्ठी श्राद्ध - 23 सितंबर
सप्तमी श्राद्ध - 23 सितंबर
अष्टमी श्राद्ध- 24 सितंबर
नवमी श्राद्ध - 25 सितंबर
दशमी श्राद्ध - 26 सितंबर
एकादशी श्राद्ध - 27 सितंबर
द्वादशी श्राद्ध- 29 सितंबर
त्रयोदशी श्राद्ध - 30 सितंबर
चतुर्दशी श्राद्ध- 1 अक्टूबर
सर्वपितृ अमावस्या - 2 अक्टूबर
श्राद्ध विधि
किसी सुयोग्य विद्वान ब्राह्मण के जरिए ही श्राद्ध कर्म (पिंडदान, तर्पण) करवाना चाहिए।
श्राद्ध कर्म में पूरी श्रद्धा से ब्राह्मणों को तो दान दिया ही जाता है साथ ही यदि किसी गरीब, जरूरतमंद की सहायता भी आप कर सकें तो बहुत पुण्य मिलता है।
इसके साथ-साथ गाय, कुत्ते, कौवे आदि पशु-पक्षियों के लिए भी भोजन का एक अंश जरूर डालना चाहिए।
यदि संभव हो तो गंगा नदी के किनारे पर श्राद्ध कर्म करवाना चाहिए। यदि यह संभव न हो तो घर पर भी इसे किया जा सकता है। जिस दिन श्राद्ध हो उस दिन ब्राह्मणों को भोज करवाना चाहिए। भोजन के बाद दान दक्षिणा देकर भी उन्हें संतुष्ट करें।
श्राद्ध पूजा दोपहर के समय शुरू करनी चाहिए. योग्य ब्राह्मण की सहायता से मंत्रोच्चारण करें और पूजा के पश्चात जल से तर्पण करें। इसके बाद जो भोग लगाया जा रहा है उसमें से गाय, कुत्ते, कौवे आदि का हिस्सा अलग कर देना चाहिए। इन्हें भोजन डालते समय अपने पितरों का स्मरण करना चाहिए. मन ही मन उनसे श्राद्ध ग्रहण करने का निवेदन करना चाहिए।
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श्राद्ध के दिन गए पितरों को उसी दिन तर्पण दिया जाता है. उस दिन तस्वीर सामने रखें. उन्हें चन्दन की माला पहना कर, सफेद चंदन का तिलक लगाएं. पूर्णिमा श्राद्ध के दिन पितरों को खीर अर्पित करें. खीर बनाते समय ध्यान रखें कि उसमें इलायची, केसर, शक्कर, शहद मिलाकर बनाएं. इसके बाद गाय के गोबर के उपले में अग्नि जला कर पितरों के निमित तीन पिंड बना कर आहुति दी जाती है. इसके बाद पंचबली भोग लगाया जाता है. गाय, कौआ, कुत्ता, चीटी और देवों के लिए प्रसाद निकालें और फिर ब्राह्मण को भोजन कराएं. इसके बाद स्वंय भोजन करें. ध्यान रखें कि श्राद्ध वाले दिन भोजन में प्याज और लहसुन का इस्तेमाल न करें.