श्रीसद्‌गुरु स्तुति

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  • Опубліковано 2 жов 2024
  • श्रीसद्‌गुरु-स्तुति
    रचयिता
    श्री श्री १०८ श्रीस्वामी सद्‌गुरुसरनानन्दजी महाराज परमहंस
    संतमत अनुयायी आश्रम मठ गड़वाघाट ट्रस्ट
    रमना-वाराणसी
    भूमिका
    श्रीसद्‌गुरु-स्तुति में परम पूज्यपाद श्रीसद्‌गुरुदेव के विविध रूपों के झलकियाँ हैं। प्रत्येक स्तुति अपने-आप में पूर्ण अर्थवान्‌ है और इसका प्रत्येक अक्षर अपने-आप में पुण्य प्रदायक है। श्रीसद्‌गुरु स्तुति का प्रत्येक शब्द महामंत्र है और गंगा की तरह पवित्र है। यह स्तुति इतनी महिमावान्‌ है कि जितनी बार भी हम सुस्वर से इसका पाठ करते हैं उतनी ही दिव्यता और पवित्रता हमारे शरीर में प्रवेश करती है। ऐसा लगता है कि संपूर्ण रूप से श्रीस्वामी जी हमारे रोम-रोम में उतर आये हैं। चेहरे की कान्ति बदल जाती है और प्रकाश का एक आभा-मंडल स्थापित हो जाता है। शरीर साहस, ओज और क्षमता से पूर्ण हो जाता है। यह स्तुति श्रीसद्‌गुरु महाराज की मंत्र साधना की उच्च-कोटिता, पूर्णता और दिव्यता का एहसास करवाने वाली है।
    इस स्तोत्र का पाठ गृहस्थ व विरक्त सभी के लिये अत्यन्त फलदायी है, इससे जीवन के पाप, ताप, शोक, दुःख, दरिद्रता और कष्ट आदि सभी मिट जाते हैं। इसके पाठन व श्रवण से अपने-आप में पूर्णता का एहसास होता है और मन गुरुभक्ति से आप्लावित हो जाता है। भक्तिरस से पूर्ण यह एक ऐसी स्तुति है कि इसके गायन से ऐसा अनुभव होता है मानो हम मान-सरोवर में डुबकी लगा रहे हों, संपूर्ण ब्रह्मांड में विचरण कर रहे हों। यह स्तोत्र परमपूज्य श्रीसद्‌गुरुजी की उच्चतम महिमा है। इसका प्रत्येक अक्षर अपने-आप में प्रामाणिक और चैतन्य है। यह स्तुति उच्च-कोटि की साधना व तपस्या से जागृत ब्रह्म-चेतना द्वारा स्वतः उद्‌घाटित हुई है। इससे बड़ा न तो कोई स्तोत्र है, न कोई भक्ति-काव्य, न कोई साधना और न ही कोई मंत्र है। यह स्तुति संपूर्ण मंत्रों का सार व आधार है। इस स्तुति के माध्यम से वह सब कुछ प्राप्त हो सकता है जो हजारों-हजार साधनाओं के करने से उपलब्ध होता है। यह स्तोत्र अनेकानेक सिद्धियों की रश्मियाँ अपने में समेटे हुए है। इस स्तोत्र-पाठ से बड़ी कोई साधना नहीं है, इस स्तोत्र से बड़ा कोई तत्त्व भी नहीं है और न ही कोई चिन्तन इसके तुल्य गहरा है। इस स्तुति के पाठन मात्र से ही सारा शरीर साधनामय होकर चैतन्य बन जाता है।
    साधक को चाहिए कि वह ब्राह्म-मुहूर्त में उठकर स्नान आदि नित्य क्रियाओं से निवृत्त होकर अपने पूजन स्थल को साफ-सुथरा करके श्रीसद्‌गुरु महाराज की ओर मुँह करके बैठ जाये। श्रीसद्‌गुरु महाराज को पुष्प माला, चंदन, धूप, दीप आदि अर्पित कर आरती-पूजन करे, तत्पश्चात्‌ स्तुति का नियमित रूप से सस्वर पाठ करे और प्रसाद रूप में चंदन तिलक अपने माथे पर धारण करे।
    इस स्तुति का नियमित पाठ करने वाले गुरुभक्तों के लिये इस संसार मे कुछ भी अप्राप्य नहीं है। हाँ, इस हेतु साधक के हृदय में श्रीसद्‌गुरुदेवजी के प्रति पूर्ण श्रद्धा विश्वास होना आवश्यक है, क्योंकि "श्रद्धावान्‌ लभते ज्ञानं", यदि हममें श्रद्धा और समर्पण है तो हमें इसका पूर्ण लाभ निश्चित ही मिलेगा। वास्तव में श्रीसद्‌गुरु-स्तुति की रचना मृत्युलोक के वासियों का सौभाग्य है, ताकि वे इसके पाठ के माध्यम से अपने परम पूज्य श्रीसद्‌गुरुदेवजी महाराज के श्रीचरणों में प्रणिपात कर सकें। अपने आँसुओं से श्रीसद्‌गुरु के चरण कमलों को धोकर अपने दिव्य चक्षुओं को खोल सकें। इन दिव्य चक्षुओं से श्रीसद्‌गुरु महाराज के विराट एवं दिव्य स्वरूप को पहचान कर अपने हृदय में सदा के लिए बैठा सकें। अपने प्राण-तत्त्व को जागृत कर जीवन को पूर्ण पवित्र बना सकें। यही तो जीवन की पूर्णता है। प्रातः स्मरणीय श्री श्री १००८ श्रीसद्‌गुरु महाराजजी के ये आशीर्वचन हैं कि जो गुरुभक्त श्रद्धापूर्वक इस स्तुति का पाठ करेंगे, वे निश्चित रूप से भक्ति-मुक्ति यानी मोक्ष को प्राप्त करेंगे।
    आतिशे इश्क में मिटा कर खुद को,
    देख गुमशूदगी का लुत्फ है क्या ।
    है आबाद मयखाना मेरे साकी का सदा,
    जन्नत में भी नसीब नहीं ये इश्के-मयकदा ।
    - सतगुरुसरनानंद

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