पानी मिट्टी को गला देता हैं, बहा देता हैं लेकिन वही मिट्टी जब मंगल कलश के रूप में परिवर्तित हो जाती हैं, आंच में पककर के घड़े का रूप ले लेती हैं तो उसी पानी को अपने में समाने में समर्थ हो जाती हैं। जो पानी कल तक बहा-गला कर ले गया, उसी पानी को उसने अपने में समा लिया। तपस्या मनुष्य की ऐसी शक्ति हैं, जिसके बल पर वह साधारण से असाधारण बन जाता हैं।
। जैसे वृक्ष की शोभा पत्तों से नहीं फलों से होती है। मंदिर की शोभा पत्थरों से नहीं मूर्ति से होती है। मकान की शोभा दरवाजे से नहीं मनुष्य से होती है उसी प्रकार मनुष्य की शोभा शृंगार से नहीं तपस्या से होती है। 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
बहुत बहुत अनुमोदना जिन शासन की सेवा करने वालों को बहुत-बहुत अनुमोदना
पानी मिट्टी को गला देता हैं, बहा देता हैं लेकिन वही मिट्टी जब मंगल कलश के रूप में परिवर्तित हो जाती हैं, आंच में पककर के घड़े का रूप ले लेती हैं तो उसी पानी को अपने में समाने में समर्थ हो जाती हैं। जो पानी कल तक बहा-गला कर ले गया, उसी पानी को उसने अपने में समा लिया। तपस्या मनुष्य की ऐसी शक्ति हैं, जिसके बल पर वह साधारण से असाधारण बन जाता हैं।
। जैसे वृक्ष की शोभा पत्तों से नहीं फलों से होती है। मंदिर की शोभा पत्थरों से नहीं मूर्ति से होती है। मकान की शोभा दरवाजे से नहीं मनुष्य से होती है उसी प्रकार मनुष्य की शोभा शृंगार से नहीं तपस्या से होती है। 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏