Gaumti Vidya

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  • Опубліковано 20 жов 2024
  • गौएँ सदा सुरभिरूपिणी हैं।
    वे गुग्गुलके समान गन्धसे संयुक्त हैं।
    गौएँ समस्त प्राणियोंकी प्रतिष्ठा हैं।
    गौएँ परम मङ्गलमयी हैं।
    गौएँ परम अन्न और देवताओंके लिये उत्तम हविष्य हैं।
    वे सम्पूर्ण प्राणियोंको पवित्र करनेवाले दुग्ध और गोमूत्रका वहन एवं क्षरण करती हैं और मन्त्रपूत हविष्यसे स्वर्गमें स्थित देवताओंको तृप्त करती हैं। ऋषियोंके अग्निहोत्रमें गौएँ होमकार्यमें प्रयुक्त होती हैं।
    गौएँ सम्पूर्ण मनुष्योंकी उत्तम शरण हैं।
    गौएँ परम पवित्र, महामङ्गलमयी, स्वर्गकी सोपानभूत, धन्य और सनातन (नित्य) हैं।
    श्रीमती सुरभिपुत्री गौओंको नमस्कार है।
    ब्रह्मसुताओंको नमस्कार है।
    पवित्र गौओंको बारंबार नमस्कार है।
    ब्राह्मण और गौएँ एक ही कुलकी दो शाखाएँ हैं।
    एकके आश्रयमें मन्त्रकी स्थिति है और दूसरीमें हविष्य प्रतिष्ठित है।
    देवता, ब्राह्मण, गौ, साधु और साध्वी स्त्रियोंके बलपर यह सारा संसार टिका हुआ है, इसीसे वे परम पूजनीय हैं।
    गौएँ जिस स्थानपर जल पीती हैं, वह स्थान तीर्थ है।
    गङ्गा आदि पवित्र नदियाँ गोस्वरूपा ही हैं।
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