आचार्य द्रोण के पूंछने पर धर्मराज युधिष्ठिर ने कहा-"अश्वत्थामा हत: इति,नरो वा कुंजरो वा "और उन्हें इस पाप के दण्ड स्वरूप दो घड़ी के नर्क दर्शन की सजा मिली | जब युधिष्ठिर सजा भोग रहे थे तब श्री कृष्ण वहाँ पहुँच गए | युधिष्ठिर ने कहा- प्रभू! मुझे आपने जैसा सिखाया था मैंने वैसा ही कहा, फिर मुझे पाप क्यों लगा? श्री कृष्ण जी ने कहा-मैने तुम्हे सिर्फ यह कहने के लिए कहा था कि " अश्वत्थामा मारा गया " लेकिन तुमने अपने मन से जोड़ दिया कि " न जाने नर या कुंजर "|जबकि तुम जानते थे कि मरने वाला कुंजर है नर नहीं | तुम्हारा यही कहना पाप की श्रेणी में आ गया | जितना मैंने सिखाया था यदि तुम उतना ही कहते तो कोई पाप नहीं लगता |
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आचार्य द्रोण के पूंछने पर धर्मराज युधिष्ठिर ने कहा-"अश्वत्थामा हत: इति,नरो वा कुंजरो वा "और उन्हें इस पाप के दण्ड स्वरूप दो घड़ी के नर्क दर्शन की सजा मिली |
जब युधिष्ठिर सजा भोग रहे थे तब श्री कृष्ण वहाँ पहुँच गए | युधिष्ठिर ने कहा- प्रभू! मुझे आपने जैसा सिखाया था मैंने वैसा ही कहा, फिर मुझे पाप क्यों लगा? श्री कृष्ण जी ने कहा-मैने तुम्हे सिर्फ यह कहने के लिए कहा था कि " अश्वत्थामा मारा गया " लेकिन तुमने अपने मन से जोड़ दिया कि " न जाने नर या कुंजर "|जबकि तुम जानते थे कि मरने वाला कुंजर है नर नहीं |
तुम्हारा यही कहना पाप की श्रेणी में आ गया | जितना मैंने सिखाया था यदि तुम उतना ही कहते तो कोई पाप नहीं लगता |