वन को चले दोनो भाई "सीतामाई / van ko chale dono bhai / वन गमन लौकगीत vanvas geet ताल- दीपचन्दी
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- Опубліковано 6 жов 2024
- श्री राम की प्रिय माता कैकयी यथार्थ जानती थी।
जो नारी युद्ध भूमि में दशरथ के प्राण बचाने के लिए अपना हाथ रथ के धुरे में लगा सकती है, रथ संचालन की कला में दक्ष है, वह राजनैतिक परिस्थितियों से अनजान कैसे रह सकती है? कैकेयी चाहती थी कि मेरे राम का पावन यश चौदहों भुवनों में फैल जाए और यह बिना तप और विन रावण वध के संभव नहीं था।
कैकेयी जानती थीं कि अगर राम अयोध्या के राजा बन जाते तो रावण का वध नहीं कर पाएंगे, इसके लिए वन में तप जरूरी थी। कैकयी चाहती थीं कि राम केवल अयोध्या के ही सम्राट न बनकर रह जाएं, वह विश्व के समस्त प्राणियों के हृदयों के सम्राट भी बनें। उसके लिए राम को अपनी साधित शोधित इन्द्रियों तथा अन्तःकरण को तप के द्वारा तदर्थ सिद्ध करना हो,
इसलिए अगर राम वन ना जाते तो हम दशरथ पुत्र राम को भगवान श्री राम के रूप में ना पूज पाते ना ही प्रत्येक परिस्थितियों में एक समान रहने वाले माता पिता की आज्ञा वचन का पालन करने वाले सबके दुलारे राम मर्यादा के पर्याय बन पाते।
श्री राम लक्ष्मन व माता सीता के वन जाने से दु:खी समस्त आयोध्या की पीड़ा को दर्शाता यह गीत वन को चले दोउ भाई सीतामाई। आप भी भाव से सुने😊🙏
गायन/ हारमोनियम - पं. कुलदीप दुबे ( #kuldeepdubey )
तबला- श्री जयेन्द्र रावल
ढोलक- " ब्रजेश अंजान
कीबोर्ड- " महंत दीपक गिरी
ऑक्टोपड- " सोनू ललावत
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Art World Kuldeep Dubey
Supar bhiya
😊😊😊😊🤗
Shandar prastuti😊🙏
Bahut sundarata se prastut Kiya!!!!!
धन्यवाद😊
Bahut sunder 🙂🙏
Dhanywaad 😊🙏
🙏🙏🙏🎉
👍