बजैण देवता || समाल गांव || भनार || कपकोट || बागेश्वर

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  • Опубліковано 8 лют 2025
  • श्री १००८ बजैण देवता की पौराणिक कथा
    श्री १००८ मूलनारायण और माता सारिंगा के बड़े पुत्र जिनका जन्म शिखर में हुआ था, इनके जन्म के बाद जब मूलनारायण जी ज्योतिषी के पास इनकी कुंडली लेके नक्शत्र देखने गए तो जोशी जी ने कहा "जो बालक शिखर में बांज वृक्ष की सुन्दर छाया में पैदा हुआ है उसका नाम बजैण पड़ेगा”। और कहा " हे भगवन आपका पुत्र अवतारी है ये अपने कुल का नाम रोशन करेगा। ये संसार की सभी विधाओं में पारंगत होगा और धर्म की रक्षा कर अधर्म करने वालो का नाश करेगा।
    धीरे धीरे बालक ने अपनी रंगसार की शिक्षा पूरी की तब उन्हें आगे की विद्या के लिए काशी भेजने का प्रबंध किया गया। उनके पिता ने उन्हें बताया की काशी में वहा दो गुरु एक काशीराम जो राम विद्या पढ़ाते है और एक शुक्राचार्य जी जो राक्षस विद्या का ज्ञान देते है। बालक फिर काशी को प्रस्थान करता है और वहा गुरु काशीराम के आश्रम में बारह विद्याओ में पारंगत हासिल करता है जो इस प्रकार से है-
    चार वेद || चौदह शास्त्र || अट्ठारह पुराण || दस कर्म || सोलह सौ खड्ग विद्या || नौ व्याकरण || बारह भागवत || बुकसान की विद्या || सभा मोहिनी || त्रिया मोहिनी || संगीत और अभिनय कला || नृत्य कला
    अपनी विद्या पूरी कर जब ओ रातीघाट गरमपानी खैरना होते हुए आलम शहर की और बढ़ते है जिसे आज हम अल्मोड़ा भी कहते है, वहा नंदा माई का भव्य मंदिर है जहा नतमस्तक होके वे बागेश्वर की तरफ बड़े। यहाँ भगवान् बागनाथ जी के दर्शन के बाद प्रातः सरयू में स्नान कर वापस शिखर की तरफ चल दिए।
    अब बजैण जी शिखर से भनार की तरफ प्रस्थान करते है, उस समय वहा के लोग पंडित चनौला के शोषण से परेशान थे और यह देखकर बजैण जी पंडित को सबक सिखाने का सोचते है और उन्हें सताने लगते है। कुछ समय बाद पंडित को भान हो जाता है की कोई तो है जो मेरी रोजी रोटी पर लात मारने में तुला है तब उनसे बचने के लिए बजैण जी जंगल में ही एक कुए में छिप जाते है। जब पंडित चनौला को यह पता चलता है तो ओ उस कुए में विस् मिला देता है। धीरे धीरे विस् बजैण जी के शरीर में लगने लगता है तो ओ कछुए का रूप धारण कर लेते है लेकिन विस् तो शरीर में अपना असर करने लगता है। ऐसी अवस्था में बजैण जी अपनी बूबू (पापा की बुआ हिवालनन्दा) को स्वपन देते है की में यहाँ विस् की चपेट में आ गया हूँ कृपया मेरी रक्षा करे। जब माता ये स्वपन देखती है तो ओ तुरंत महाराज ह्यूल से आज्ञा लेके धर्मिया दास (विस् झाड़ने में पारंगत) के साथ बजैण जी की रक्षा को पहुँच जाती है।
    बजैण जी के पूरी तरह ठीक हो जाने के बाद माता हिवालनन्दा हिमालय वापस लौट जाती है और बाद में पंडित चनौला के घर में जानलेवा बीमारी हो जाती है और पूरा परिवार नस्ट हो जाता है। इस घटना के बाद भगवान बजैण समाल गांव, भनार में अवतार लेते है और लोगो का कल्याण करते है।
    वहा के लोग ख़ुशी से उत्सव मनाने लगे और आज तक वहा हर कार्तिक पूर्णिमा में मेला लगता है जिसे कौथिक भी कहते है।
    इस मंदिर का पुनर्निर्माण महंत बद्री नारायण दास जी की देख रेख में हुआ और गांव वालो ने भी बड़ चढ़ कर चंदा जमा किया जिनका नाम मंदिर के चारो ओर ऊपरी हिस्से में लिखा गया है। उनमे से एक मेरे दादा जी भी थे स्वर्गीय श्री बहादुर सिंह कोरंगा जी।
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    WAY TO REACH FROM DISTRICT:
    Bageshwar - Kapkot - Khaldekh, Bhanar - Samaal Gaon : 65 KM Travel
    Samaal Gaon - Bajen Devta Temple Trek : 1.5 - 2 KM
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