Maa Chandrabadani Full Story || Stop Bali Partha || सिद्धपीठ चंद्रबदनी मंदिर की कहानी || UTTARAKHAND

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  • Опубліковано 26 сер 2024
  • सिद्धपीठ चंद्रबदनी मंदिर की कहानी ||
    इस शक्तिपीठ के सम्बन्ध में कहा जाता है कि एक बार राजा दक्ष ने हरिद्वार(कनखल) में यज्ञ किया। दक्ष की पुत्री सती ने भगवान शंकर से यज्ञ में जाने की इच्छा व्यक्त की लेकिन भगवान शंकर ने उन्हें वहां न जाने का परामर्श दिया। मोहवश सती ने उनकी बात को न समझकर वहां चली गयी। वहां सती और उनके पति शिवजी का अपमान किया गया। पिता के घर में अपना और अपने पति का अपमान देखकर भावावेश में आकर सती ने अग्नि कुंड में गिरकर प्राण दे दिये। जब भगवान शिव को इस बात की सूचना प्राप्त हुई तो वे स्वयं दक्ष की यज्ञशाला में गए और सती के शरीर को उठाकर आकाश मार्ग से हिमालय की ओर चल पड़े। वे सती के वियोग से दुखी और क्रोधित हो गये जिससे पृथ्वी कांपने लगी थी। कहा जाता है कि अनिष्ट की आशंका से भगवान विष्णु ने अपने चक्र से सती के अंगों को छिन्न-भिन्न कर दिया। भगवान विष्णु के चक्र से कटकर सती के अंग जहां-जहां गिरे वहां शक्तिपीठ स्थापित हुए। जैसे जहां सिर गिरा वहां का नाम सुरकण्डा पड़ा। कुच(स्तन) जहां गिरे वहां का नाम कुंजापुरी पड़ा। इसी प्रकार चन्द्रकूट पर्वत पर सती का धड़(बदन) पड़ा इसलिये यहां का नाम चन्द्रबदनी पड़ा। यहां के पुजारी बताते हैं कि इस मंदिर में मूर्ति नहीं बल्कि श्रीयंत्र है। यहां के पुजारी आंखें बंद करके या फिर नज़रें झुकाकर श्रीयन्त्र पर कपड़ा डालते हैं। कहां जाता है कि यहां पूजा करने से और सच्चे मन से मां का ध्यान करने से जीवन में बहुत कुछ मिलता है।

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