श्रद्धा=श्रेय+धा (चित्त वृत्ति निरोध=विधि अर्थात् ईश्वर ने जिन कर्मों को कर्तव्य बताया उन्हें करना और निषेध अर्थात् जिन कर्मों को करना अकर्तव्य बताया है उन्हें न करना हि व्यक्ति का लक्ष्य है। ) या जो कर्म अपने प्रतिकूल हैं अन्यों को उनसे गुजारने में अपनी भूमिका न हो ।। यही आपका उपदेश है जो वेद विहित होने से हमारे लिए बहुत ही कल्याणकारी उपदेश है। मेरी भी ऐसी ही जिज्ञासा है । ईश्वर मेरी यह जिज्ञासा शीघ्र पूर्ण करें। हे ईश्वर मुझे आर्य बनाकर अपनी शरण में ले लो।
धन्य है आर्यवीर आपको धन्य है करबद्ध
आचार्य जी को बहुत-बहुत धन्यवाद नमस्ते प्रणाम
पूज्य स्वामी जी को मेरा कोटि-कोटि नमन बहुत सुंदर उपदेश दिया धन्यवाद
ओ३म् सादर नमस्ते स्वामी जी।🙏
आचार्य जी नमस्ते
ओ३म् का झण्डा ऊंचा रहे
वेद की ज्योति जलती रहे
🙏🙏
o
🙏🙏
🙏
सादर नमस्ते जी ✅🚩🔥💥🌺☀️🙏🏼
Jai hind.
आचार्य श्री जी सादर नमस्ते जी
Jay ram ji ki🙏🙏🙏🙏🙏🙏
Ii
Iiiiii
आचर्य जी आपको नमस्कार
ગુરુ દેવ ને વંદન છે 🙏🙏🙏
आचार्य जी को बहुत बहुत धन्यवाद। बहुत ही सरल ढंग से समझाया जीवन में उन्नति के बारे में। 🙏
ओम
श्रद्धा=श्रेय+धा (चित्त वृत्ति निरोध=विधि अर्थात् ईश्वर ने जिन कर्मों को कर्तव्य बताया उन्हें करना और निषेध अर्थात् जिन कर्मों को करना अकर्तव्य बताया है उन्हें न करना हि व्यक्ति का लक्ष्य है। ) या जो कर्म अपने प्रतिकूल हैं अन्यों को उनसे गुजारने में अपनी भूमिका न हो ।। यही आपका उपदेश है जो वेद विहित होने से हमारे लिए बहुत ही कल्याणकारी उपदेश है। मेरी भी ऐसी ही जिज्ञासा है । ईश्वर मेरी यह जिज्ञासा शीघ्र पूर्ण करें। हे ईश्वर मुझे आर्य बनाकर अपनी शरण में ले लो।