Qurbat ke Virane Mein | Azm Bahzad | Arohi Inayat
Вставка
- Опубліковано 15 вер 2024
- कितने मौसम सरगर्दां थे मुझ से हाथ मिलाने में
मैं ने शायद देर लगा दी ख़ुद से बाहर आने में
एक निगाह का सन्नाटा है इक आवाज़ का बंजर-पन
मैं कितना तन्हा बैठा हूँ क़ुर्बत के वीराने में
आज उस फूल की ख़ुशबू मुझ में पैहम शोर मचाती है
जिस ने बे-हद उजलत बरती खिलने और मुरझाने में
एक मलाल की गर्द समेटे मैं ने ख़ुद को पार किया
कैसे कैसे वस्ल गुज़ारे हिज्र का ज़ख़्म छुपाने में
जितने दुख थे जितनी उमीदें सब से बराबर काम लिया
मैं ने अपने आइंदा की इक तस्वीर बनाने में
एक वज़ाहत के लम्हे में मुझ पर ये अहवाल खुला
कितनी मुश्किल पेश आती है अपना हाल बताने में
पहले दिल को आस दिला कर बे-परवा हो जाता था
अब तो 'अज़्म' बिखर जाता हूँ मैं ख़ुद को बहलाने में
अज़्म बहज़ाद
👌👌👌