एवं दत्त्वा वरं देवो देवानां विष्णुरात्मवान्॥३०॥ मानुष्ये चिन्तयामास जन्मभूमिमथात्मनः। देवताओं को ऐसा वर देकर मनस्वी भगवान् विष्णु ने मनुष्यलोक में पहले अपनी जन्मभूमि के सम्बन्ध में विचार किया॥ ३० १/२॥ ततः पद्मपलाशाक्षः कृत्वाऽऽत्मानं चतुर्विधम्॥३१॥ पितरं रोचयामास तदा दशरथं नृपम्। इसके बाद कमलनयन श्रीहरि ने अपने को चार स्वरूपों में प्रकट करके राजा दशरथ को पिता बनाने का निश्चय किया॥ ३१ १/२॥ ततो देवर्षिगन्धर्वाः सरुद्राः साप्सरोगणाः। स्तुतिभिर्दिव्यरूपाभिस्तुष्टवुर्मधुसूदनम्॥३२॥ तब देवता, ऋषि, गन्धर्व, रुद्र तथा अप्सराओंने दिव्य स्तुतियोंके द्वारा भगवान् मधुसूदनका स्तवन किया॥३२॥ तमुद्धतं रावणमुग्रतेजसं प्रवृद्धदएँ त्रिदशेश्वरद्विषम्। विरावणं साधुतपस्विकण्टकं तपस्विनामुद्धर तं भयावहम्॥३३॥ वे कहने लगे-’प्रभो! रावण बड़ा उद्दण्ड है। उसका तेज अत्यन्त उग्र और घमण्ड बहुत बढ़ा। चढ़ा है। वह देवराज इन्द्रसे सदा द्वेष रखता है। । तीनों लोकोंको रुलाता है, साधुओं और तपस्वी । जनोंके लिये तो वह बहुत बड़ा कण्टक है; अतः तापसों को भय देनेवाले उस भयानक राक्षस की आप जड़ उखाड़ डालिये॥ ३३॥ तमेव हत्वा सबलं सबान्धवं विरावणं रावणमुग्रपौरुषम्। स्वर्लोकमागच्छ गतज्वरश्चिरं सुरेन्द्रगुप्तं गतदोषकल्मषम्॥ ३४॥ ‘उपेन्द्र! सारे जगत् को रुलानेवाले उस उग्र पराक्रमी रावणको सेना और बन्धु-बान्धवोंसहित नष्ट करके अपनी स्वाभाविक निश्चिन्तताके साथ अपने ही द्वारा सुरक्षित उस चिरन्तन वैकुण्ठधाममें आ जाइये; जिसे राग-द्वेष आदि दोषोंका कलुष कभी छू नहीं पाता है’ ॥ ३४ ॥ इत्याचे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये बालकाण्डे पञ्चदशः सर्गः ॥१५ वाल्मीकि रामायण, बालकाण्ड सर्ग 15
वाल्मीकि रामायण के बालकाण्ड के सर्ग 15 व सर्ग 16 का अनुशीलन करें वहां स्पष्ट हैं की भगवान श्री नारायण विष्णु ने ही दशरथ सुत रामभद्र के रूप में अवतार लिया हैं
हमें रामचंद्र जी औरअनेक कृष्णा भगवान सदाशिव की पूजा करते हैं आप अनर्गल कथाएं क्यों सुनते हो माता सती किसी से भी भयभीत नहीं हुई भयभीत आप लोगहोते हो क्योंकि यह आपकीदुकान है भगवान श्री राम और माता सीता और लक्ष्मण भगवान हर जगह दिखाई देने लगे तो क्याहो गया आशागोभी तो भगवान है अनेक ब्रह्मा विष्णु और यानी आप भगवानों में भी भेदडालोगे मैं भगवान से हैं जिनके शरीर से हरे कृष्णा हरे राम उत्पन्न होते हैं आपने सही बात की थी हम लोग एक नहीं हैं भगवान सदाशिव के पंचमुखी मुख से मानव रूपी भगवान श्री राम की उत्पत्ति हुई है भगवान सदाशिव का पंचमुखी पांच महापुरुषों काप्रतीक है और पंच महाभूत से मनुष्य का निर्माणहुआ है और मनुष्य का प्रतिनिधि करता भगवान श्री राम है
रामानंद परंपरा वेद विहीन परंपराहै क्योंकि वेदों में भगवान श्री राम का नाम नाम का उल्लेख ही नहीं है वेदों में रुद्र प्रजापति और सूर्यदेवताओं का उल्लेख वेदों के लिखे जाने के लाखों वर्ष बाद भगवान श्री राम का जन्महुआ और वेदों में तो ईश्वर का जन्म ही नहीं हुआ था वरना ईश्वर का कोई अवतार होता आप भगवान शिव को काम क्यों आंख रहेहैं तुम्हारे उपासना एक नंबर की dhoorta छल कपट कीउपासना है ना मुझे आपके राम में इंटरेस्ट है ना आपके नारायण मेंइंटरेस्ट है आप लड़ो झगड़ों कुछ भी करो लेकिन भगवान शिव को नीचा मत दिखाने कीकोशिश मत करो प्रीतम रामानंदी हो चाहे कोई भी नदी हो आप नारायण पर भगवान राम पर भी उंगली क्यों उठाते हैं दोनों को एक मन कर चलिएना अखंड अखंड और सेकंड यह सब फालतू की चीज है आप सब साधारण जनता को भ्रमित कर देंगे कोई नारायण और राम को एक मन कर चल रहा है तो चलने दीजिए ना हरि अखंडशब्द भी है Narayan akhand nahin hai to hari shabd to akhand hai अंबे भगवान श्री राम और माता सीता का हम भी दिल से आधारकरते हैं लेकिन गलत कहानी क्योंसुनते हैं आप व्याकरण को छोड़िए वेदों में धुंधिया आप भी चकाचक हो जाएंगे वह तो भगवान श्री राम को हम भी अखंड अनाdiमानते हैं शंभू वीरांची और विष्णु भगवान इन तीनों के अंश भगवान श्री राम है यह निश्चित हो जाता है कि भगवान सदाशिव तत्व हीसर्वोपरि है ऐतिहासिक शिक्षा यह लिया जा सकता है कि आप लोगों के चक्कर में देश फिर से गुलाम हो जाएगा क्योंकि आप ही भगवान के और भगवानों के बीच में भेद डालते हैं शंकर जी की धनुष इसलिए तोड़ा क्योंकि भगवान शंकर खुद ही चाहते हैं कि मेरे धनुष को तोड़ दे और भगवान विष्णु भी चाहते थे कि मेरे धनुष को utha le
Rambhadracharya ji 4 vedas,18 puran ka pura gyaan hai.. Unhen bharat sarkar se padam vibhushan jo bharat ka 2 nd highest civilian award hai voh bhi mila hai.. .unhe sare vedas puran yaad hai..apni aukat me rehkar tipni kiya karo vedas,shastra ka gyaan nhi muh itake chal diye.bas 2,4 slok pad.liye jadne lage gyaan..hamare guruji ka apman na kar..ramanand sampraday mahan hai..ham bhi vedas ,puran padte hai..
🌼🚩🪔🕉️जयः📿🐚श्रीः❤️💐💐🌹
❤लक्ष्मीनारायणः🚩भगवानः 🌼👣🌺🙏
🌺🪔सादर:⛳🌞जय:🚩📿🐚श्री:🚩🏹🚩
❤सीताराम:❤जी:🌸🌺👣🌼🌸🙏💐💐
🪔🕉️जय:🚩श्री:🚩बालाजी:❤️ महाराज:🙏
🚩जय:❤️श्री:📿गौमाता:🚩जय:🌾किसान:❤️
🚩भारत:❤️हिन्दूराष्ट्र:🔥की:🚩जय:⚔️हो:🦁
OM SHREE JAGADGURU SHREE RAMBHADRACHARYA JI KE CHARAN ME ANANT KOTI PRANAM 🙏🌺🙏
Guruji ko guru poornima ki koti koti Charan sparsh nomo ragaya Jay jay shree sitaram human 🕉️🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹🌹❤❤❤❤❤
Namo raghvaye guru ji 🌹❤🙏💐🌺🌷🌻🌼🌸❤❤🙏🙏
Anant koti ram krishna ji ke janak
Bhagwan mahavishnu shriman narayan ki Jay
Satakoti Pranam to Honorable Gurudev ji. Jay Sri Ram Jay SitaRam Jay Hanuman Om Shanti
Jay shree sitaram🙏🌹🙏🚩🚩
Mahavishnu=Sadashiv=Ram=Krishna
Jai Gurdev.jai siyaRam guruji
Jay Shri Ram Jay Hanuman
Radhey radhey
kotikoti naman guruji
जय सीता राम
Jay Shri Ram
एवं दत्त्वा वरं देवो देवानां विष्णुरात्मवान्॥३०॥
मानुष्ये चिन्तयामास जन्मभूमिमथात्मनः।
देवताओं को ऐसा वर देकर मनस्वी भगवान् विष्णु ने मनुष्यलोक में पहले अपनी जन्मभूमि के सम्बन्ध में विचार किया॥ ३० १/२॥
ततः पद्मपलाशाक्षः कृत्वाऽऽत्मानं चतुर्विधम्॥३१॥
पितरं रोचयामास तदा दशरथं नृपम्।
इसके बाद कमलनयन श्रीहरि ने अपने को चार स्वरूपों में प्रकट करके राजा दशरथ को पिता बनाने का निश्चय किया॥ ३१ १/२॥
ततो देवर्षिगन्धर्वाः सरुद्राः साप्सरोगणाः।
स्तुतिभिर्दिव्यरूपाभिस्तुष्टवुर्मधुसूदनम्॥३२॥
तब देवता, ऋषि, गन्धर्व, रुद्र तथा अप्सराओंने दिव्य स्तुतियोंके द्वारा भगवान् मधुसूदनका स्तवन किया॥३२॥
तमुद्धतं रावणमुग्रतेजसं प्रवृद्धदएँ त्रिदशेश्वरद्विषम्।
विरावणं साधुतपस्विकण्टकं तपस्विनामुद्धर तं भयावहम्॥३३॥
वे कहने लगे-’प्रभो! रावण बड़ा उद्दण्ड है। उसका तेज अत्यन्त उग्र और घमण्ड बहुत बढ़ा। चढ़ा है। वह देवराज इन्द्रसे सदा द्वेष रखता है। । तीनों लोकोंको रुलाता है, साधुओं और तपस्वी । जनोंके लिये तो वह बहुत बड़ा कण्टक है; अतः तापसों को भय देनेवाले उस भयानक राक्षस की आप जड़ उखाड़ डालिये॥ ३३॥
तमेव हत्वा सबलं सबान्धवं विरावणं रावणमुग्रपौरुषम्।
स्वर्लोकमागच्छ गतज्वरश्चिरं सुरेन्द्रगुप्तं गतदोषकल्मषम्॥ ३४॥
‘उपेन्द्र! सारे जगत् को रुलानेवाले उस उग्र पराक्रमी रावणको सेना और बन्धु-बान्धवोंसहित नष्ट करके अपनी स्वाभाविक निश्चिन्तताके साथ अपने ही द्वारा सुरक्षित उस चिरन्तन वैकुण्ठधाममें आ जाइये; जिसे राग-द्वेष आदि दोषोंका कलुष कभी छू नहीं पाता है’ ॥ ३४ ॥
इत्याचे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये बालकाण्डे पञ्चदशः सर्गः ॥१५
वाल्मीकि रामायण, बालकाण्ड सर्ग 15
जय गुरुदेव भगवान
🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🙏🙏
विष्णु जी ने ही राम लक्ष्मण भरत शत्रुघ्न के 4 रूपों में दशरथ जी के यहाँ अवतार लिया हैं
वाल्मीकि रामायण, बालकाण्ड सर्ग 15 व सर्ग 16
To ram ji iss bramhand ke shankar ji ke piche kyi pade hai bole ?
Agar wo hazaro shankar ji ke janak
वाल्मीकि रामायण के बालकाण्ड के सर्ग 15 व सर्ग 16 का अनुशीलन करें वहां स्पष्ट हैं की भगवान श्री नारायण विष्णु ने ही दशरथ सुत रामभद्र के रूप में अवतार लिया हैं
हमें रामचंद्र जी औरअनेक कृष्णा भगवान सदाशिव की पूजा करते हैं आप अनर्गल कथाएं क्यों सुनते हो माता सती किसी से भी भयभीत नहीं हुई भयभीत आप लोगहोते हो क्योंकि यह आपकीदुकान है भगवान श्री राम और माता सीता और लक्ष्मण भगवान हर जगह दिखाई देने लगे तो क्याहो गया आशागोभी तो भगवान है अनेक ब्रह्मा विष्णु और यानी आप भगवानों में भी भेदडालोगे मैं भगवान से हैं जिनके शरीर से हरे कृष्णा हरे राम उत्पन्न होते हैं आपने सही बात की थी हम लोग एक नहीं हैं भगवान सदाशिव के पंचमुखी मुख से मानव रूपी भगवान श्री राम की उत्पत्ति हुई है भगवान सदाशिव का पंचमुखी पांच महापुरुषों काप्रतीक है और पंच महाभूत से मनुष्य का निर्माणहुआ है और मनुष्य का प्रतिनिधि करता भगवान श्री राम है
Bhiny bhiny pirti lok bidhata bhiny bisnu
रामानंद परंपरा वेद विहीन परंपराहै क्योंकि वेदों में भगवान श्री राम का नाम नाम का उल्लेख ही नहीं है वेदों में रुद्र प्रजापति और सूर्यदेवताओं का उल्लेख वेदों के लिखे जाने के लाखों वर्ष बाद भगवान श्री राम का जन्महुआ और वेदों में तो ईश्वर का जन्म ही नहीं हुआ था वरना ईश्वर का कोई अवतार होता आप भगवान शिव को काम क्यों आंख रहेहैं तुम्हारे उपासना एक नंबर की dhoorta छल कपट कीउपासना है ना मुझे आपके राम में इंटरेस्ट है ना आपके नारायण मेंइंटरेस्ट है आप लड़ो झगड़ों कुछ भी करो लेकिन भगवान शिव को नीचा मत दिखाने कीकोशिश मत करो प्रीतम रामानंदी हो चाहे कोई भी नदी हो आप नारायण पर भगवान राम पर भी उंगली क्यों उठाते हैं दोनों को एक मन कर चलिएना अखंड अखंड और सेकंड यह सब फालतू की चीज है आप सब साधारण जनता को भ्रमित कर देंगे कोई नारायण और राम को एक मन कर चल रहा है तो चलने दीजिए ना हरि अखंडशब्द भी है Narayan akhand nahin hai to hari shabd to akhand hai अंबे भगवान श्री राम और माता सीता का हम भी दिल से आधारकरते हैं लेकिन गलत कहानी क्योंसुनते हैं आप व्याकरण को छोड़िए वेदों में धुंधिया आप भी चकाचक हो जाएंगे वह तो भगवान श्री राम को हम भी अखंड अनाdiमानते हैं शंभू वीरांची और विष्णु भगवान इन तीनों के अंश भगवान श्री राम है यह निश्चित हो जाता है कि भगवान सदाशिव तत्व हीसर्वोपरि है ऐतिहासिक शिक्षा यह लिया जा सकता है कि आप लोगों के चक्कर में देश फिर से गुलाम हो जाएगा क्योंकि आप ही भगवान के और भगवानों के बीच में भेद डालते हैं शंकर जी की धनुष इसलिए तोड़ा क्योंकि भगवान शंकर खुद ही चाहते हैं कि मेरे धनुष को तोड़ दे और भगवान विष्णु भी चाहते थे कि मेरे धनुष को utha le
Rambhadracharya ji 4 vedas,18 puran ka pura gyaan hai..
Unhen bharat sarkar se padam vibhushan jo bharat ka 2 nd highest civilian award hai voh bhi mila hai..
.unhe sare vedas puran yaad hai..apni aukat me rehkar tipni kiya karo vedas,shastra ka gyaan nhi muh itake chal diye.bas 2,4 slok pad.liye jadne lage gyaan..hamare guruji ka apman na kar..ramanand sampraday mahan hai..ham bhi vedas ,puran padte hai..
Jay Shri Ram Jai Hanuman
जय सीता राम
Jay Shri Ram Jai Hanuman