शहीद Caption Deepak Singh के पिता ने Uttarakhand Police की नौकरी से VRS क्यों लिया?| Doda Encounter
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- Опубліковано 29 жов 2024
- देश जब 15 अगस्त के जश्न की तैयारियों में डूब रहा था तभी जम्मू कश्मीर के डोडा से आयी एक खबर ने सभी को झकझोर कर दिया, आतंकवादी हमले में उत्तराखंड के रहने वाले कैप्टन दीपक सिंह ने महज 25 साल की उम्र में देश के लिए शहादत दे दी.
मूलरूप से उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के रानीखेत और हाल निवासी देहरादून, कैप्टन दीपक सिंह 13 जून 2020 को वह सेना के 48 राष्ट्रीय रायफल में बतौर लेफ्टिनेंट कमीशन पोस्टेड हुए. लिहाजा पिता उत्तराखंड पुलिस में थे तो दीपक हर साल 15 अगस्त को पिता के साथ परेड देखने जाया करते थे, पर किसको पता था वह 15 अगस्त को ही तिरंगे में लिपटकर आएंगे।
कैप्टन दीपक सिंह सेना में जितने जांबाज थे उतने ही वह खेल के मैदान में योद्धा भी थे, उनके कमरे में भरे पड़े मेडल हमेशा इस बात की तस्दीक करते हैं, ये मेडल उन्हें पढ़ाई-लिखाई के साथ-साथ खेल-कूद में मिले हैं. सर्च ऑपरेशन में एक कंपनी का नेतृत्व करने के लिए दीपक को फील्ड मेजर बनाया गया था. उन्होंने अपने कंपनी का फ्रंट से नेतृत्व करते हुए युद्ध क्षेत्र में शहीद होने से पहले आतंकी को मार गिराया था.
शहीद के पिता महेश सिंह उत्तराखंड पुलिस के PHQ डिपार्टमेंट में CA के पद पर तैनात थे, उन्होंने इसी साल 2024 की शुरुआत में पुलिस से VRS लेकर चार साल की बची नौकरी को त्याग दिया था. लिहाजा अब सवाल उठने लगे हैं की शहीद के पिता के सामने आख़िर कौन सी परेशानी थी जो उन्होंने रिटायरमेंट से चार साल पहले उत्तराखंड पुलिस की नौकरी छोड़ दी. बताया जाता है शहीद के पिता महेश सिंह को विभाग में अनुशासन और संयम लिए जाना जाता था.
वरिष्ठ पत्रकार अजित राठी ने एक सवाल खड़ा किया है ------ उन्होंने लिखा, कश्मीर में शहीद हुए उत्तराखंड के कैप्टन दीपक सिंह को मेरी श्रद्धांजलि, चाहता तो नहीं था कि बलिदान के अवसर पर उनके पिता महेश बाबू की पृष्ठभूमि का ज़िक्र करूँ। लेकिन विवश हूँ, पता चलना चाहिए कि शहीद के पिता के सामने आख़िर कौन सी परेशानी थी जो उन्होंने रिटायरमेंट से चार साल पहले उत्तराखंड पुलिस की नौकरी छोड़ दी ? अब शहीद दीपक के पिता महेश सिंह की न तो नौकरी रही और न ही बेटा.
उन्होंने आगे लिखा, पुलिस की नौकरी से वीआरएस लिया तो उस समय की चर्चाएँ कुछ और ही बताई जाती हैं। सच जानने लिये जाँच आवश्यक है, अन्यथा सैनिक परिवारो के कल्याण की बातों का कोई फ़ायदा नहीं। जाँबाज़ पुत्र का पिता भी जाँबाज़ ही होता है, छोटी मोटी परेशानी उसे डिगा नहीं सकती।
अब एक वरिष्ठ पत्रकार के ट्वीट ने इस बात को और बल दे दिया है, क्या वाकई शहीद दीपक सिंह के पिता को नौकरी छोड़ने के लिए विवश तो नहीं किया गया था, क्या उन्हें भी एक ईमानदार अधिकारी होने के लिए पड़ताडित तो नहीं किया गया था , यह कुछ बड़े सवाल हैं. जिनकी परतें स्वतंत्र जाँच के बाद ही खुल सकती हैं.
दोस्तों शहीद दीपक सिंह को नमन और उनके पिता के साथ अगर ऐसा हुआ है तो आप क्या सोचते हैं, हमें कमैंट्स कर जरूर बताएं।
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न नौकरी और न पुत्र सब तरफ से दु:खों का पहाड़ टूट पड़ा ।पुत्र की अकाल मृत्यु सबसे भारी।
Jai Hind 🇮🇳
Jai Hind sahab
Jai hind
Des.ne.aak.ho
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.ko.kho.diya.hay.❤.akhir.des.ki.govt.bar.bar.ho.rahi.esi.dukhad
Aantanki.ghatnao.ko.rok.qu.nahi.pa.rahi.hay❤
Please let them live in peace
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Immandar hi honge pakka
Kuch ni retirement ho gye the. Faltu views k chakkar m galat photo lgya
Jai Hind