गोवर्धनवासी सांवरे तुम बिन रह्यो न जाये । - हे गोवर्धनवासी श्री कृष्ण, अब मैं आपके बिना नही रह सकता बंकचिते मुसकाय के सुंदर वदन दिखाय । लोचन तलफें मीन ज्यों पलछिन कल्प विहाय ॥१॥ - आपकी इस सुन्दर छवि ने मेरा मन मोह लिया है अौर आपकी मुस्कान में मेरा चित्त अटक गया है । जैसे मछली बिना पानी के तडपती है वैसे ही मेरी आँखौ को आपसे बिछडने की तडपन हो रही है अौर मेरा एक एक पल कल्प के समान बीत रहा है । सप्तक स्वर बंधान सों मोहन वेणु बजाय । सुरत सुहाई बांधि के मधुरे मधुर गाय ॥२॥ - हे मोहन आपकी वंशी की धुन सेकडौ संगीत स्वरौ से अोतप्रोत मधुर गीत गा रही है। रसिक रसीली बोलनी गिरि चढ गाय बुलाय । गाय बुलाई धूमरी ऊंची टेर सुनाय ॥३॥ - आप जब पर्वत पर चढकर गायौं को बुलाते हो, अौर उस धूमल गाय को ऊचे स्वर से बुलाते हो, वह छवि मेरे हृदय में बस गयी है । दृष्टि परी जा दिवस तें तबतें रुचे नही आन । रजनी नींद न आवही विसर्यो भोजन पान ॥४॥ - अौर जिस दिन से मैंने आपकी इन छवियौं का दर्शन किया है, मुझे किसी भी अन्य वस्तु में रुचि नही रही अौर नाही मुझे रात को नीद आती है, यहाँ तक कि मैं खाना पीना भी भूल गया हूँ । दरसन को नयना तपे वचनन को सुन कान । मिलवे को हियरा तपे जिय के जीवन प्रान ॥५॥ - हे साँवरे, मेरे जीवनप्राण, तेरे नित्य दर्शन के लिये मेरे नयन, तेरी बोली के लिये मेरे कान एंव तुझसे मिलने के लिये मेरा हृदय तडपता रहता है । मन अभिलाखा यह रहे लगें ना नयन निमेष । इक टक देखौ आवतो नटवर नागर भेष ॥६॥ - अब मेरे मन की यही अभिलाषा है कि मेरे नयन एक क्षण के लिये भी बन्द न हौं अौर तुम्हारे नटवर नागर रूप का ही एकटक दर्शन करते रहैं । पूरण शशि मुख देिख के चित चोट्यो वाहि ओर । रूप सुधारस पान को जैसे चन्द चकोर ॥७॥ - जैसे चकोर पक्षी पूर्णमासी के चन्द्रमा को एकचित होकर देखता रहता है वैसे ही आपके दिव्य स्वरूप का अम्रतमयी पान करने को मेरा चित्त व्याकुल रहता है । लोक लाज कुळ वेद की छांड्यो सकल विवेक । कमल कली रवि ज्यों बढे छिन छिन प्रीति विशेष ॥८॥ - मैं समाज, परिवार अौर शास्त्र की लाज नही कर पा रहा हूँ अौर मेरा पूरा विवेक नष्ट ही हो गया है । हर क्षण मेरी व्याकुलता अापके प्रति विषेश प्रेम को एसे ही बढा रही है जैसे कि सूर्य के उगते ही कमल की कलियाँ बढने लगती हैं । मन्मथ कोटिक वारने निरखत डगमगी चाल । युवति जन मन फंदना अंबुज नयन विशाल ॥९॥ - जैसे युवतिया अपने विशाल नैनौ से साधारण जन के मन को फँसा देती हैं वैसे ही आपकी डगमगाती चाल को देखकर मेरा मन बंध गया है अौर इस चाल पर मैं करोडौं मन्मथ (कामदेव) न्यौछावर कर दू । कुंज भवन क्रीडा करो सुखनिधि मदन गोपाल । हम श्री वृंदावन मालती तुम भोगी भ्रमर भुवाल ॥११॥ - हे सुखौं के भण्डार, मदन गोपाल, अाप कुन्ज भवन में वैसी ही क्रीडा करो जैसे वृन्दावन की पुष्प लताअौ पर हर पुष्प का भोग करते हैं । यह रट लागी लाडिले जैसे चातक मोर । प्रेमनीर वरखा करो नव घन नंद किशोर ॥१०॥ - जैसे चातक अौर मोर वर्षा के लिये व्याकुल होकर रट लगाते रहते हैं वैसे ही लाडले मुझे ये रट लग गयी है तो हे नंद किशोर आप नये नये रूप में प्रेम रूपी जल की वर्षा करो । युग युग अविचल राखिये यह सुख शैल निवास । गोवर्धनधर रूप पर बलिहारी चतुर्भुज दास ॥१२॥ - हे गोवर्धन नाथ, अगर मुझे युगौं युगौं तक भी पृथ्वी पर जन्म मिले तो गोवर्धन पर्वत ही मेरा निवास हो क्यौंकि आपके गोवर्धनधारी रूप पर चतुर्भुजदास हमेशा बलिहारी है ।
Jai Jai Gurudev. You have sung this 'pad' not only from the core of your heart but soul. Very very touching. I could not prevent tears and the same continued to shed from eyes even after completion of the bhajan. I need you blessings to have same emotions towards that Almighty as can be felt from your most touching voice. Dandwat.........
चल रे जोगी नन्द भवन में सूरदास भजन ब्रज रस धारा Krishn janmastmi madhoor bhajan sunane ke liye link ko click karke suniye ua-cam.com/video/C8SEZRiw-fE/v-deo.html
श्री कृष्ण प्रेमियों के लिए बहुत ही काम की बात:-) तुम्हारे इस पद का कम से कम एक वर्ष तक भाव से नित्य पाठ व गायन करने वाले को मेरे दर्शन अवश्य होंगे ही :- हमारे प्यारे श्री कृष्ण का अष्ट छाप के कवियों मे चर्तुभुज दास जी को ये वचन दिया है ऐसा नाभा जी ने इनकी जीवनी मे लिखा है क्यों न लाभ लिया जाय ! "जय श्री राधे" गोवर्धनवासी सांवरे तुम बिन रह्यो न जाये । - हे गोवर्धनवासी श्री कृष्ण, अब मैं आपके बिना नही रह सकता बंकचिते मुसकाय के सुंदर वदन दिखाय । लोचन तलफें मीन ज्यों पलछिन कल्प विहाय ॥१॥ - आपकी इस सुन्दर छवि ने मेरा मन मोह लिया है अौर आपकी मुस्कान में मेरा चित्त अटक गया है । जैसे मछली बिना पानी के तडपती है वैसे ही मेरी आँखौ को आपसे बिछडने की तडपन हो रही है अौर मेरा एक एक पल कल्प के समान बीत रहा है । सप्तक स्वर बंधान सों मोहन वेणु बजाय । सुरत सुहाई बांधि के मधुरे मधुर गाय ॥२॥ - हे मोहन आपकी वंशी की धुन सेकडौ संगीत स्वरौ से अोतप्रोत मधुर गीत गा रही है। रसिक रसीली बोलनी गिरि चढ गाय बुलाय । गाय बुलाई धूमरी ऊंची टेर सुनाय ॥३॥ - आप जब पर्वत पर चढकर गायौं को बुलाते हो, अौर उस धूमल गाय को ऊचे स्वर से बुलाते हो, वह छवि मेरे हृदय में बस गयी है । दृष्टि परी जा दिवस तें तबतें रुचे नही आन । रजनी नींद न आवही विसर्यो भोजन पान ॥४।। - अौर जिस दिन से मैंने आपकी इन छवियौं का दर्शन किया है, मुझे किसी भी अन्य वस्तु में रुचि नही रही अौर नाही मुझे रात को नीद आती है, यहाँ तक कि मैं खाना पीना भी भूल गया हूँ । दरसन को नयना तपे वचनन को सुन कान । मिलवे को हियरा तपे जिय के जीवन प्रान ॥५॥ - हे साँवरे, मेरे जीवनप्राण, तेरे नित्य दर्शन के लिये मेरे नयन, तेरी बोली के लिये मेरे कान एंव तुझसे मिलने के लिये मेरा हृदय तडपता रहता है । मन अभिलाखा यह रहे लगें ना नयन निमेष । इक टक देखौ आवतो नटवर नागर भेष ॥६॥ - अब मेरे मन की यही अभिलाषा है कि मेरे नयन एक क्षण के लिये भी बन्द न हौं अौर तुम्हारे नटवर नागर रूप का ही एकटक दर्शन करते रहैं । पूरण शशि मुख देिख के चित चोट्यो वाहि ओर । रूप सुधारस पान को जैसे चन्द चकोर ॥७॥ - जैसे चकोर पक्षी पूर्णमासी के चन्द्रमा को एकचित होकर देखता रहता है वैसे ही आपके दिव्य स्वरूप का अम्रतमयी पान करने को मेरा चित्त व्याकुल रहता है । लोक लाज कुळ वेद की छांड्यो सकल विवेक । कमल कली रवि ज्यों बढे छिन छिन प्रीति विशेष ॥८॥ - मैं समाज, परिवार अौर शास्त्र की लाज नही कर पा रहा हूँ अौर मेरा पूरा विवेक नष्ट ही हो गया है । हर क्षण मेरी व्याकुलता अापके प्रति विषेश प्रेम को एसे ही बढा रही है जैसे कि सूर्य के उगते ही कमल की कलियाँ बढने लगती हैं । मन्मथ कोटिक वारने निरखत डगमगी चाल । युवति जन मन फंदना अंबुज नयन विशाल ॥९॥ - जैसे युवतिया अपने विशाल नैनौ से साधारण जन के मन को फँसा देती हैं वैसे ही आपकी डगमगाती चाल को देखकर मेरा मन बंध गया है अौर इस चाल पर मैं करोडौं मन्मथ (कामदेव) न्यौछावर कर दू । कुंज भवन क्रीडा करो सुखनिधि मदन गोपाल । हम श्री वृंदावन मालती तुम भोगी भ्रमर भुवाल ॥११॥ - हे सुखौं के भण्डार, मदन गोपाल, अाप कुन्ज भवन में वैसी ही क्रीडा करो जैसे वृन्दावन की पुष्प लताअौ पर हर पुष्प का भोग करते हैं । यह रट लागी लाडिले जैसे चातक मोर । प्रेमनीर वरखा करो नव घन नंद किशोर ॥१०॥ - जैसे चातक अौर मोर वर्षा के लिये व्याकुल होकर रट लगाते रहते हैं वैसे ही लाडले मुझे ये रट लग गयी है तो हे नंद किशोर आप नये नये रूप में प्रेम रूपी जल की वर्षा करो । युग युग अविचल राखिये यह सुख शैल निवास । गोवर्धनधर रूप पर बलिहारी चतुर्भुज दास ॥१२॥ - हे गोवर्धन नाथ, अगर मुझे युगौं युगौं तक भी पृथ्वी पर जन्म मिले तो गोवर्धन पर्वत ही मेरा निवास हो क्यौंकि आपके गोवर्धनधारी रूप पर चतुर्भुजदास हमेशा बलिहारी है ।🙏🙏🌹🙏🙏👣🌿
जय श्री कृष्ण जय हो गुरू देव भगवान की श्री नाथ जी का यह भजन सुनकर बहुत ही आतमा को शांति मिलती है जय हो गोवर्धन नाथ की जय जय श्री राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे
@@rakeshsingal1 kshma karna Maine ek aisi rachna mata meera ji dwara likhi gyi hai Mujhe lga wo hai Ya fir maharaj ji ne aise hi sangeet mein wo mata meera ka koi bhajan gaya hoga Bahut hi sundar hai bhajan
राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम
परमपूज्य गुरुदेव भगवान के श्री चरणों में साष्टांग दंडवत प्रणाम 🙏🙏💐💐🌹🌹🌿🌿🌿
श्री वृंदावन बिहारी लाल की जय हो 🙏🙏💐💐🌹🌹🙏🙏🙏🙏
गोवर्धनवासी सांवरे तुम बिन रह्यो न जाये ।
- हे गोवर्धनवासी श्री कृष्ण, अब मैं आपके बिना नही रह सकता
बंकचिते मुसकाय के सुंदर वदन दिखाय ।
लोचन तलफें मीन ज्यों पलछिन कल्प विहाय ॥१॥
- आपकी इस सुन्दर छवि ने मेरा मन मोह लिया है अौर आपकी मुस्कान में मेरा चित्त अटक गया है । जैसे मछली बिना पानी के तडपती है वैसे ही मेरी आँखौ को आपसे बिछडने की तडपन हो रही है अौर मेरा एक एक पल कल्प के समान बीत रहा है ।
सप्तक स्वर बंधान सों मोहन वेणु बजाय ।
सुरत सुहाई बांधि के मधुरे मधुर गाय ॥२॥
- हे मोहन आपकी वंशी की धुन सेकडौ संगीत स्वरौ से अोतप्रोत मधुर गीत गा रही है।
रसिक रसीली बोलनी गिरि चढ गाय बुलाय ।
गाय बुलाई धूमरी ऊंची टेर सुनाय ॥३॥
- आप जब पर्वत पर चढकर गायौं को बुलाते हो, अौर उस धूमल गाय को ऊचे स्वर से बुलाते हो, वह छवि मेरे हृदय में बस गयी है ।
दृष्टि परी जा दिवस तें तबतें रुचे नही आन ।
रजनी नींद न आवही विसर्यो भोजन पान ॥४॥
- अौर जिस दिन से मैंने आपकी इन छवियौं का दर्शन किया है, मुझे किसी भी अन्य वस्तु में रुचि नही रही अौर नाही मुझे रात को नीद आती है, यहाँ तक कि मैं खाना पीना भी भूल गया हूँ ।
दरसन को नयना तपे वचनन को सुन कान ।
मिलवे को हियरा तपे जिय के जीवन प्रान ॥५॥
- हे साँवरे, मेरे जीवनप्राण, तेरे नित्य दर्शन के लिये मेरे नयन, तेरी बोली के लिये मेरे कान एंव तुझसे मिलने के लिये मेरा हृदय तडपता रहता है ।
मन अभिलाखा यह रहे लगें ना नयन निमेष ।
इक टक देखौ आवतो नटवर नागर भेष ॥६॥
- अब मेरे मन की यही अभिलाषा है कि मेरे नयन एक क्षण के लिये भी बन्द न हौं अौर तुम्हारे नटवर नागर रूप का ही एकटक दर्शन करते रहैं ।
पूरण शशि मुख देिख के चित चोट्यो वाहि ओर ।
रूप सुधारस पान को जैसे चन्द चकोर ॥७॥
- जैसे चकोर पक्षी पूर्णमासी के चन्द्रमा को एकचित होकर देखता रहता है वैसे ही आपके दिव्य स्वरूप का अम्रतमयी पान करने को मेरा चित्त व्याकुल रहता है ।
लोक लाज कुळ वेद की छांड्यो सकल विवेक ।
कमल कली रवि ज्यों बढे छिन छिन प्रीति विशेष ॥८॥
- मैं समाज, परिवार अौर शास्त्र की लाज नही कर पा रहा हूँ अौर मेरा पूरा विवेक नष्ट ही हो गया है । हर क्षण मेरी व्याकुलता अापके प्रति विषेश प्रेम को एसे ही बढा रही है जैसे कि सूर्य के उगते ही कमल की कलियाँ बढने लगती हैं ।
मन्मथ कोटिक वारने निरखत डगमगी चाल ।
युवति जन मन फंदना अंबुज नयन विशाल ॥९॥
- जैसे युवतिया अपने विशाल नैनौ से साधारण जन के मन को फँसा देती हैं वैसे ही आपकी डगमगाती चाल को देखकर मेरा मन बंध गया है अौर इस चाल पर मैं करोडौं मन्मथ (कामदेव) न्यौछावर कर दू ।
कुंज भवन क्रीडा करो सुखनिधि मदन गोपाल ।
हम श्री वृंदावन मालती तुम भोगी भ्रमर भुवाल ॥११॥
- हे सुखौं के भण्डार, मदन गोपाल, अाप कुन्ज भवन में वैसी ही क्रीडा करो जैसे वृन्दावन की पुष्प लताअौ पर हर पुष्प का भोग करते हैं ।
यह रट लागी लाडिले जैसे चातक मोर ।
प्रेमनीर वरखा करो नव घन नंद किशोर ॥१०॥
- जैसे चातक अौर मोर वर्षा के लिये व्याकुल होकर रट लगाते रहते हैं वैसे ही लाडले मुझे ये रट लग गयी है तो हे नंद किशोर आप नये नये रूप में प्रेम रूपी जल की वर्षा करो ।
युग युग अविचल राखिये यह सुख शैल निवास ।
गोवर्धनधर रूप पर बलिहारी चतुर्भुज दास ॥१२॥
- हे गोवर्धन नाथ, अगर मुझे युगौं युगौं तक भी पृथ्वी पर जन्म मिले तो गोवर्धन पर्वत ही मेरा निवास हो क्यौंकि आपके गोवर्धनधारी रूप पर चतुर्भुजदास हमेशा बलिहारी है ।
bahot aabhar is ka arth samjaya hai
ultimate.......thank u so much......HARE KRISHNA...!!
rakesh singal
rakesh singal very nice
राधे राधे राधे श्री राधे राधे राधे
Ati ati ati sunder pad. Full of emotions. You cannot just listen, have to feel it. Ruh se mehsus karoge to Anand hi Anand 🙏🙏🙏
Jai Shri Krishna guru g 🙏🏻🙏🏻
Jai Jai Gurudev.
You have sung this 'pad' not only from the core of your heart but soul. Very very touching. I could not prevent tears and the same continued to shed from eyes even after completion of the bhajan. I need you blessings to have same emotions towards that Almighty as can be felt from your most touching voice. Dandwat.........
चल रे जोगी नन्द भवन में सूरदास भजन
ब्रज रस धारा
Krishn janmastmi madhoor bhajan sunane ke liye link ko click karke suniye
ua-cam.com/video/C8SEZRiw-fE/v-deo.html
Govradhan vashi . 👌👌🙏🙏🙏nice pad. Chatrabhoaj dash..
He goverdhan waale bhaiya mujhe v apne sharan me le lo aap..Jai Gobardhan; Jai Gopal
श्री कृष्ण प्रेमियों के लिए बहुत ही काम की बात:-)
तुम्हारे इस पद का कम से कम एक वर्ष तक भाव से नित्य पाठ व गायन करने वाले को मेरे दर्शन अवश्य होंगे ही :- हमारे प्यारे श्री कृष्ण का अष्ट छाप के कवियों मे चर्तुभुज दास जी को ये वचन दिया है ऐसा नाभा जी ने इनकी जीवनी मे लिखा है क्यों न लाभ लिया जाय ! "जय श्री राधे"
गोवर्धनवासी सांवरे तुम बिन रह्यो न जाये ।
- हे गोवर्धनवासी श्री कृष्ण, अब मैं आपके बिना नही रह सकता
बंकचिते मुसकाय के सुंदर वदन दिखाय ।
लोचन तलफें मीन ज्यों पलछिन कल्प विहाय ॥१॥
- आपकी इस सुन्दर छवि ने मेरा मन मोह लिया है अौर आपकी मुस्कान में मेरा चित्त अटक गया है । जैसे मछली बिना पानी के तडपती है वैसे ही मेरी आँखौ को आपसे बिछडने की तडपन हो रही है अौर मेरा एक एक पल कल्प के समान बीत रहा है ।
सप्तक स्वर बंधान सों मोहन वेणु बजाय ।
सुरत सुहाई बांधि के मधुरे मधुर गाय ॥२॥
- हे मोहन आपकी वंशी की धुन सेकडौ संगीत स्वरौ से अोतप्रोत मधुर गीत गा रही है।
रसिक रसीली बोलनी गिरि चढ गाय बुलाय ।
गाय बुलाई धूमरी ऊंची टेर सुनाय ॥३॥
- आप जब पर्वत पर चढकर गायौं को बुलाते हो, अौर उस धूमल गाय को ऊचे स्वर से बुलाते हो, वह छवि मेरे हृदय में बस गयी है ।
दृष्टि परी जा दिवस तें तबतें रुचे नही आन ।
रजनी नींद न आवही विसर्यो भोजन पान ॥४।।
- अौर जिस दिन से मैंने आपकी इन छवियौं का दर्शन किया है, मुझे किसी भी अन्य वस्तु में रुचि नही रही अौर नाही मुझे रात को नीद आती है, यहाँ तक कि मैं खाना पीना भी भूल गया हूँ ।
दरसन को नयना तपे वचनन को सुन कान ।
मिलवे को हियरा तपे जिय के जीवन प्रान ॥५॥
- हे साँवरे, मेरे जीवनप्राण, तेरे नित्य दर्शन के लिये मेरे नयन, तेरी बोली के लिये मेरे कान एंव तुझसे मिलने के लिये मेरा हृदय तडपता रहता है ।
मन अभिलाखा यह रहे लगें ना नयन निमेष ।
इक टक देखौ आवतो नटवर नागर भेष ॥६॥
- अब मेरे मन की यही अभिलाषा है कि मेरे नयन एक क्षण के लिये भी बन्द न हौं अौर तुम्हारे नटवर नागर रूप का ही एकटक दर्शन करते रहैं ।
पूरण शशि मुख देिख के चित चोट्यो वाहि ओर ।
रूप सुधारस पान को जैसे चन्द चकोर ॥७॥
- जैसे चकोर पक्षी पूर्णमासी के चन्द्रमा को एकचित होकर देखता रहता है वैसे ही आपके दिव्य स्वरूप का अम्रतमयी पान करने को मेरा चित्त व्याकुल रहता है ।
लोक लाज कुळ वेद की छांड्यो सकल विवेक ।
कमल कली रवि ज्यों बढे छिन छिन प्रीति विशेष ॥८॥
- मैं समाज, परिवार अौर शास्त्र की लाज नही कर पा रहा हूँ अौर मेरा पूरा विवेक नष्ट ही हो गया है । हर क्षण मेरी व्याकुलता अापके प्रति विषेश प्रेम को एसे ही बढा रही है जैसे कि सूर्य के उगते ही कमल की कलियाँ बढने लगती हैं ।
मन्मथ कोटिक वारने निरखत डगमगी चाल ।
युवति जन मन फंदना अंबुज नयन विशाल ॥९॥
- जैसे युवतिया अपने विशाल नैनौ से साधारण जन के मन को फँसा देती हैं वैसे ही आपकी डगमगाती चाल को देखकर मेरा मन बंध गया है अौर इस चाल पर मैं करोडौं मन्मथ (कामदेव) न्यौछावर कर दू ।
कुंज भवन क्रीडा करो सुखनिधि मदन गोपाल ।
हम श्री वृंदावन मालती तुम भोगी भ्रमर भुवाल ॥११॥
- हे सुखौं के भण्डार, मदन गोपाल, अाप कुन्ज भवन में वैसी ही क्रीडा करो जैसे वृन्दावन की पुष्प लताअौ पर हर पुष्प का भोग करते हैं ।
यह रट लागी लाडिले जैसे चातक मोर ।
प्रेमनीर वरखा करो नव घन नंद किशोर ॥१०॥
- जैसे चातक अौर मोर वर्षा के लिये व्याकुल होकर रट लगाते रहते हैं वैसे ही लाडले मुझे ये रट लग गयी है तो हे नंद किशोर आप नये नये रूप में प्रेम रूपी जल की वर्षा करो ।
युग युग अविचल राखिये यह सुख शैल निवास ।
गोवर्धनधर रूप पर बलिहारी चतुर्भुज दास ॥१२॥
- हे गोवर्धन नाथ, अगर मुझे युगौं युगौं तक भी पृथ्वी पर जन्म मिले तो गोवर्धन पर्वत ही मेरा निवास हो क्यौंकि आपके गोवर्धनधारी रूप पर चतुर्भुजदास हमेशा बलिहारी है ।🙏🙏🌹🙏🙏👣🌿
yogesh sharma archanadevipadabali
yogesh sharma
.
yogesh sharma ĺ
Thanks
Jai Shree Krishna
Radhey Radhey
RadheRadhe 🧡❤
जय श्री कृष्ण जय हो गुरू देव भगवान की श्री नाथ जी का यह भजन सुनकर बहुत ही आतमा को शांति मिलती है जय हो गोवर्धन नाथ की जय जय श्री राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे राधे
Mann ki shanti aur Chinta se mukti Ka bahut hi pyara source..dhnyawad gurudev
G
Jai shree Krishna gurudev ❤️
Dandavat pranam
Jai gau mata jai gopal
Jay guru dev app ki jay ho
Koti koti pranaam Sri Maharaj ji ke charno mein. . .
DASANUDASANUDAS
I was looking for this bhajan .......since ages!!! Thank you and bless you!!
Jai shree Krishna Devi ❤️
Jay sree krishna
🙏🙏Jai Govardhan ji 🙏🙏
Jai Jai Shree Krishna
Goverdhan Vashi sanware kripa karo
Sawariya Sethji aur Radha Sethaniji ki Jai Jai Jai
radhe radhe prabhu ji
clear n simple way with devotion
thanx4siddha-bhajan---sanvere has promised2appear before singer who sings daily
Jai Ho hari vansh
Jai Goverdhan Vashi sanware
He Goverdhan Vashi sanware Kanya Ho aap
bahut hi sunder bhajan
DAYA SHANKER Agarwal pranaam Guru ji aapke pravachan sun k jeevan dhaneye ho jata h
Amazing
Radhe Radhe 🙏🙏
He prabo app ko pane ke leye aise tadap kab hogi...
Jai Ho Goverdhan vasi
He Goverdhan vasi sanware kab kripa hogi
Ati ati ati sunder bhajan
he sant gurudev yeh jeevan aapke naam
Ati madhur bhajan
Mata meera je k dwara likha gya hai shyd ye
Chaturbhuj Das ji ne is pad ki rachna ki hai
@@rakeshsingal1 kshma karna
Maine ek aisi rachna mata meera ji dwara likhi gyi hai
Mujhe lga wo hai
Ya fir maharaj ji ne aise hi sangeet mein wo mata meera ka koi bhajan gaya hoga
Bahut hi sundar hai bhajan
@@rakeshsingal1 chaturbuj das ji ashtchap kaviyo wale hai na?
Jo vitthal gosai ji ke paas thein
@@shrisitaramjikijaiho7141 Yes
@@rakeshsingal1 ap rajender das ji maharaj ji ke aur bhi bhajan upload kijiye na
Bahut kripa hogi apki
हृदय आल्हादित हो जाता है।
Bahut hi pyara bhajan ;,hai Shree radhey
Sorry, 'I need your blessings....
very devotional song
Jai ho
Very nice pad.
गोवर्धन वासी साँवरे ,तुम बिन रहयो न जाय मन को शकुन देने वाला सुदँर भजन है
bahut sundar
Radhe radhe
Ram
जब जब में ये पद कानो में पड़ता है मैं ठाकुरजी क़े चरणों में kitcha चला जाता हूं, ओर गोवर्धन में अपने आप को महसूस करता हूं
radhe radhe
Jai jirrrraaj
goverdhen vasi sham k samay nity gany sy radhya aarood ho ga ta hai
Love from #versatilebrains
Please agar ye audio me bhi available ho?
Aa kirtan Malta Aa Tuchh jiv "Dhany"thayo
Shree sitaram shree sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram Sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram sitaram
Please pahle wala Govardhan vasi Sanware Achcha tha
Who can give full English translation please so that I may teach to English speakers? Radhe Radhe
Anupam anupam
Mil Mil l Bayko Naina tab Bacchan sunane ko isko bhejen
it shud b recited by classical singer--better2store n enjoy---thanx guruji
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Ati,ati, Sunder bhajan, hriday ko cho lene wala. Aankhon mein aasu aa jaay to koi aaschry nai...ye to natural response hai. 🙏🙏🙏
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