मम नाम शतेनैव राधा नाम सकृत समम। य: स्मरते सर्वदा राधा न जाने तस्य किं फलम॥ भाव- श्री कृष्ण कहते हैं कि जिस भक्त ने मेरे 100 नाम का स्मरण किया और श्री राधा रानी का एक बार नाम लिया दोनों का फल एक समान होगा। लेकिन जो भक्त सदा सर्वदा राधा नाम का जाप करते है उनको क्या फल मिलता है मैं भी नहीं जानता। चक्रं चक्री शूलमादाय शूलिपाशं पाशी वज्रमादय वज्री । धावन्त्यग्रे पृष्ठतो ब्राह्मतश्व राधा राधा वादिनो रक्षणाय ॥ - ब्रह्म वैवर्त पुराण एवं श्री हरि लीलामृत तंत्र जो कोई निरंतर राधा नाम लेता है, उस जीव की रक्षा हेतु भगवान विष्णु चक्र धारण करके, इन्द्र वज्र लेकर, शंकरजी त्रिशूल लेकर उसके रक्षक बने रहते हैं। राशब्दोच्चारणादेव स्फीतो भवति माधवः । धाशब्दोच्चारतः पश्चाद्धावत्येव ससंभ्रमः ।। - ब्रह्मवैवर्तपुराण -4.52.38 (खण्डः 4 [श्रीकृष्णजन्मखण्डः]/अध्यायः 52 / छंद 38) राधा नाम की महिमा इस प्रकार है: जब कोई व्यक्ति 'रा' का उच्चारण करता है तब श्री कृष्ण का रोम रोम हर्ष से प्रफुल्लित होजाता है, पुनः 'धा' का उच्चारण होते ही वह बड़े सत्कार के साथ उसके पीछे-पीछे दौड़ने लगते हैं। राधेत्येवं च संसिद्धा राकारो दानवाचकः ॥ स्वयं निर्वाणदात्री या सा राधा परिकीर्तिता ॥ - ब्रह्मवैवर्तपुराण, खण्डः 4 [श्रीकृष्णजन्मखण्डः]/अध्यायः 17 / छंद 223 'राधा' नाम यह स्वयं सिद्ध है जिसमें 'रा' कार दान वाचक है। स्वयं निर्वाणदात्री होने से वह 'राधा' कहलाती हैं । रा इत्यादानवचनो धा च निर्वाणवाचकः। ततोऽवाप्नोति मुक्तिं च तेन राधा प्रकीर्तिता॥४॥ - ब्रह्मवैवर्त पुराण खण्डः २ (प्रकृति खण्ड) अध्याय ४८ तदालापं कुरुष्वैव जपस्व मंत्रमुत्तमम् । अहर्निश महाभाग कुरु राधेति कीर्त्तनम् ॥ - पद्म पुराण, उत्तर खंड (163.3) भगवान शिवजी कहते हैं: हे महाभाग! श्री राधा का भजन करो, उनका मन्त्र (राधा) जो अति उत्तम है उसका जप करो और हर क्षण राधा-राधा बोलते हुए उनका नाम-कीर्तन करो राधाराधेति कुर्य्यात्तु राधाराधेति पूजयेत् । राधाराधेति यन्निष्ठा राधाराधेति जल्पति । वृन्दारण्ये महाभागा राधासहचरी भवेत् ॥ - पद्म पुराण, उत्तर खंड (163.2) शिवजी पार्वती माता से कहते हैं कि जो राधा-राधा कहता है, राधा-राधा कहकर पूजा करता है, राधा-राधा में जिसकी निष्ठा है, जो राधा-राधा नाम उच्चारण करता रहता है, वह महाभाग श्रीवृन्दावन में श्रीराधा की सहचरी होता है। राधाराधेति यो ब्रूयात् स्मरणं कुरुते नरः । सर्व्वतीर्थेषु संस्कारात् सर्व्वविद्याप्रयत्नवान् ॥ - पद्म पुराण, उत्तर खंड (163.1) श्री शिव जी देवर्षि नारद से कहते हैं- जो मनुष्य 'राधा-राधा' कहता है तथा उनका स्मरण करता है, वह सब तीर्थों के संस्कार से युक्त होकर सब प्रकार की विद्या की प्राप्ति में प्रयत्नवान् बनता है। In Bramha Vaivarta Purana, Chapter 15, Verse 72,73,74 it is described: राशब्दं कुर्वतस्त्रस्तो ददामि भक्तिमुत्तमाम्। धाशब्दं कुर्वतः पश्चाद्यामि श्रवणलोभतः ।।॥72॥ ये सेवन्ते च दत्त्वा मामुपचाराश्च षोडश। यावज्जीवनपर्यन्तं या प्रीतिर्जायते मम।।73।। सा प्रीतिर्मम जायते राधाशब्दात्ततोऽधिका। प्रिया न मे तथा राधे राधावक्ता ततोऽधिकः ।।74।। The one who recites रा bestow the best of devotion on him and the one who recites the word धा is followed by me because I am always desirous of hearing the word of Radha. Such of the people who adore me throughout their life with sixteen types of offering, I like them very much and from that liking emanates the word of Rādhā. O Rādhā, I love you as much as I love a person who recites the name of Rādhā.
गुरुदेव श्री श्री प्रेमानंद जी महाराज के चरणों की धुली के बराबर भी नहीं है कोई वो कलयुग के ब्रह्मज्ञानी संत हैं कलयुग में स्वयं श्री हरि ने स्वामी जी की ड्यूटी लगाई है पापियों के पार उतारे के लिए राधे राधे राधे राधे राधे राधे
Bhautik shichha jab tak insaan ka bindas nahi kar deti tab pichha nahi chhodti, kya ye saheb batayenge ki 100-300 salo me likhi kisi kitabi gyan , niyam se insaan koi pukhta intjaam kiya life ka
Jai ho shree premanand maharaj je❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤
मम नाम शतेनैव राधा नाम सकृत समम।
य: स्मरते सर्वदा राधा न जाने तस्य किं फलम॥
भाव- श्री कृष्ण कहते हैं कि जिस भक्त ने मेरे 100 नाम का स्मरण किया और श्री राधा रानी का एक बार नाम लिया दोनों का फल एक समान होगा। लेकिन जो भक्त सदा सर्वदा राधा नाम का जाप करते है उनको क्या फल मिलता है मैं भी नहीं जानता।
चक्रं चक्री शूलमादाय शूलिपाशं पाशी वज्रमादय वज्री ।
धावन्त्यग्रे पृष्ठतो ब्राह्मतश्व राधा राधा वादिनो रक्षणाय ॥
- ब्रह्म वैवर्त पुराण एवं श्री हरि लीलामृत तंत्र
जो कोई निरंतर राधा नाम लेता है, उस जीव की रक्षा हेतु भगवान विष्णु चक्र धारण करके, इन्द्र वज्र लेकर, शंकरजी त्रिशूल लेकर उसके रक्षक बने रहते हैं।
राशब्दोच्चारणादेव स्फीतो भवति माधवः ।
धाशब्दोच्चारतः पश्चाद्धावत्येव ससंभ्रमः ।।
- ब्रह्मवैवर्तपुराण -4.52.38 (खण्डः 4 [श्रीकृष्णजन्मखण्डः]/अध्यायः 52 / छंद 38)
राधा नाम की महिमा इस प्रकार है: जब कोई व्यक्ति 'रा' का उच्चारण करता है तब श्री कृष्ण का रोम रोम हर्ष से प्रफुल्लित होजाता है, पुनः 'धा' का उच्चारण होते ही वह बड़े सत्कार के साथ उसके पीछे-पीछे दौड़ने लगते हैं।
राधेत्येवं च संसिद्धा राकारो दानवाचकः ॥
स्वयं निर्वाणदात्री या सा राधा परिकीर्तिता ॥
- ब्रह्मवैवर्तपुराण, खण्डः 4 [श्रीकृष्णजन्मखण्डः]/अध्यायः 17 / छंद 223
'राधा' नाम यह स्वयं सिद्ध है जिसमें 'रा' कार दान वाचक है। स्वयं निर्वाणदात्री होने से वह 'राधा' कहलाती हैं ।
रा इत्यादानवचनो धा च निर्वाणवाचकः।
ततोऽवाप्नोति मुक्तिं च तेन राधा प्रकीर्तिता॥४॥
- ब्रह्मवैवर्त पुराण खण्डः २ (प्रकृति खण्ड) अध्याय ४८
तदालापं कुरुष्वैव जपस्व मंत्रमुत्तमम् ।
अहर्निश महाभाग कुरु राधेति कीर्त्तनम् ॥
- पद्म पुराण, उत्तर खंड (163.3)
भगवान शिवजी कहते हैं: हे महाभाग! श्री राधा का भजन करो, उनका मन्त्र (राधा) जो अति उत्तम है उसका जप करो और हर क्षण राधा-राधा बोलते हुए उनका नाम-कीर्तन करो
राधाराधेति कुर्य्यात्तु राधाराधेति पूजयेत् ।
राधाराधेति यन्निष्ठा राधाराधेति जल्पति ।
वृन्दारण्ये महाभागा राधासहचरी भवेत् ॥
- पद्म पुराण, उत्तर खंड (163.2)
शिवजी पार्वती माता से कहते हैं कि जो राधा-राधा कहता है, राधा-राधा कहकर पूजा करता है, राधा-राधा में जिसकी निष्ठा है, जो राधा-राधा नाम उच्चारण करता रहता है, वह महाभाग श्रीवृन्दावन में श्रीराधा की सहचरी होता है।
राधाराधेति यो ब्रूयात् स्मरणं कुरुते नरः ।
सर्व्वतीर्थेषु संस्कारात् सर्व्वविद्याप्रयत्नवान् ॥
- पद्म पुराण, उत्तर खंड (163.1)
श्री शिव जी देवर्षि नारद से कहते हैं- जो मनुष्य 'राधा-राधा' कहता है तथा उनका स्मरण करता है, वह सब तीर्थों के संस्कार से युक्त होकर सब प्रकार की विद्या की प्राप्ति में प्रयत्नवान् बनता है।
In Bramha Vaivarta Purana, Chapter 15, Verse 72,73,74 it is described:
राशब्दं कुर्वतस्त्रस्तो ददामि भक्तिमुत्तमाम्। धाशब्दं कुर्वतः पश्चाद्यामि श्रवणलोभतः ।।॥72॥
ये सेवन्ते च दत्त्वा मामुपचाराश्च षोडश। यावज्जीवनपर्यन्तं या प्रीतिर्जायते मम।।73।।
सा प्रीतिर्मम जायते राधाशब्दात्ततोऽधिका। प्रिया न मे तथा राधे राधावक्ता ततोऽधिकः ।।74।।
The one who recites रा bestow the best of devotion on him and the one who recites the word धा is followed by me because I am always desirous of hearing the word of Radha. Such of the people who adore me throughout their life with sixteen types of offering, I like them very much and from that liking emanates the word of Rādhā. O Rādhā, I love you as much as I love a person who recites the name of Rādhā.
अति सुंदर शास्त्र प्रमाण प्रस्तुत किए 😊।
गुरुदेव श्री श्री प्रेमानंद जी महाराज के चरणों की धुली के बराबर भी नहीं है कोई वो कलयुग के ब्रह्मज्ञानी संत हैं कलयुग में स्वयं श्री हरि ने स्वामी जी की ड्यूटी लगाई है पापियों के पार उतारे के लिए राधे राधे राधे राधे राधे राधे
News नेशन जी कृपया भ्रामक टाइटल मत लगाए।
Abe kaise log sant ban jate .....amogh leela ko jarurt hai budhi ki premanand guru Ji bikkul alag ❤
Shri amogh lila prabhu satya aur sapat bolte hai aap sanatan ka jhanda hamesha unchaa rakho aap ki jai❤❤❤🎉🎉🎉,,
Iski ek bhi bat words me spirituality ki perfume bhi nehi
Duniya bale ko spirituality ki meaning bhi nehi pata
फेमस होना का सबसे सस्ता तरीका सोशल मीडिया पर उलटी सीधी बातें बोलो।
Dhanya ho guruvar
Inki banto me spring lagi h
Ye baba h ya English man
Bhautik shichha jab tak insaan ka bindas nahi kar deti tab pichha nahi chhodti, kya ye saheb batayenge ki 100-300 salo me likhi kisi kitabi gyan , niyam se insaan koi pukhta intjaam kiya life ka