सात चक्रों का विज्ञान ही ज्योतिष का आधार| |
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- Опубліковано 13 вер 2024
- हमारे मेरु दंड मे 7 चक्र होते है, इनमे 3 प्रमुख है| गले मे विशुद्वि हृदय मे अनाहट और नाभि पर मणिपुर| इन सभी चक्रों से लगातार हमारे विचार के समरूप तंरगे निकलती रहती है और ये तरंगे दुसरे व्यक्तिओ के उन्ही चक्रो से संपर्क मे रहती है जैसे www (world wide web) से एक निष्कर्ष निकलता है उसी तरह इन तरंगो के आपसी संपर्क से एक निष्कर्ष निकलता है| इस निष्कर्ष को ही हम देवता बोलते है | अत: गले से निकलने वाली तरंगो के अधिष्टाता ब्रह्मा हुए हृदय से निकलने वाली तरंगो के अधिष्टाता शिव भगवान हुए, नाभि से निकलने वाली तरंगो के अधिष्टाता विष्णु भगवान हुए|
जन्म के समय ये सातों चक्र प्राय: शुन्य या खाली होते है , जन्म के बाद पहली श्वास लेते ही ये सक्रिय हो जाते है| उस समय जो सात प्रमुख ग्रहों की सोरमंडल की स्तिथि होती है उससे ये चक्र प्रभावित होते है और यही ज्योतिष का आधार है|
ज्योतिष मे जन्म के समय चक्रों की स्तिथि इस लिए देखि जाती है की व्यक्ति कों जन्म के समय इन ग्रहों ने किस प्रकार प्रभावित किया|
सात चक्रों के सात रंग है, आकार है इनके संभंध विशेष पोधो से है, इनकी गंध अलग अलग है इस प्रकार हमारें तन्त्र मे अपने चक्रों कों प्रभावित करने के लिए एक विशेष विधियां बताई गई है| जैसे पीपल को पानी चढाने से किसी विशेष ग्रह पर प्रभाव पड़ता है
हमारी ज्योतिष विद्या प्राय: वैज्ञानिक है और इसे समझने के लिए हमे अपने सात चक्रों के विज्ञान का संज्ञान लेना होगा |
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Pranaam
बहुत गहरा ज्ञान दिया धन्यवाद धन्यवाद धन्यवाद