99% लोग नहीं जानते भगवान कृष्ण की ये सच्चाई, किसने कलयुग में अपने हाथ से कृष्ण को खिचड़ी खिलाई ?- 4k

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  • Опубліковано 7 лют 2025
  • 99% लोग नहीं जानते भगवान कृष्ण की ये सच्चाई, किसने कलयुग में अपने हाथ से कृष्ण को खिचड़ी खिलाई ?- 4k
    आपने भगवान कृष्ण के बहुत से धाम और मंदिर तथा तीर्थ स्थल देखे होंगे जैसे मथुरा- वृंदावन (उत्तर प्रदेश), गोकुल, गोवेर्धन पर्वत, बरसाना, द्वारका, श्रीनाथ जी , श्री कृष्ण मठ मंदिर, अरुलमिगु श्री पार्थसारथी मंदिर , जगन्नाथपुरी और जो नहीं सुना वो है कर्माबाई का मंदिर I
    करमा बाई (Karma Bai)
    करमा बाई (Karma Bai) को मारवाड़ की मीरा भी कहा जाता है। जब-जब भगवान कृष्ण का उल्लेख आता है, करमा का नाम भी आ ही जाता है। वे भगवान की महान भक्त थीं और भगवान श्री कृष्ण उनके हाथ से प्रतिदिन भोग ग्रहण कर, भोग की थाली रिक्त कर देते थे। राजस्थान के नागौर जिले की मकराना तहसील में एक गांव है- कालवा। इस गांव में जीवनराम डूडी के घर 1017(1615) ईस्वी में एक पुत्री का जन्म हुआ। और 1064 (1634) ईस्वी में कर्माबाई ने अपना शरीर छोड़ मृत्यु हो गई थी I ऐसा कर्माबाई विकिपीडिया में लिखा है जिसका स्क्रीनशोर्ट हम दिखा रहे है I भगवान की बहुत मन्नतें मांगने के बाद इसका जन्म हुआ था, नाम रखा गया करमा। करमा के चेहरे पर एक अनोखी आभा रहती थी।
    और इसी दिन (18 सितंबर 1615) को सर थॉमस रो भारत में मुगल दरबार में पहले अंग्रेजी राजदूत के रूप में सूरत पहुंचे। जो की भारत में व्यापार करने की आज्ञा लेने पहुंचते है I मतलब 1615 में भारत में अंग्रेज थे जब कर्मा बाई ने जन्म लिया था और कलयुग ही चल रहा था कलयुग के लोगो ने ऐसी भक्त को देखा था जिनसे भगवान कृष्ण को अपने घर में ही बुला लिया था और अपने हाथो से भोग खिलाती थी I
    कृष्ण भक्त जीवनराम
    जीवनराम स्वयं धार्मिक पुरुष एवं अनन्य कृष्ण भक्त थे। उन्होंने भगवान के नाम, ‘मदन मोहन‘ से अपने घर में कृष्ण भगवान का मंदिर बना रखा था। वे प्रतिदिन भगवान कृष्ण की पूजा करते, और भोग लगाते तथा भगवान को भोग लगाने के बाद ही भोजन ग्रहण करते। यह उनके घर का नित्य का नियम था। इसी प्रकार समय बीतता गया। करमा बाई प्रतिदिन अपने पिता को श्री कृष्ण भगवान की पूजा करते देखती, उनको भोग लगाते देखती। यही सब देखते सीखते करमा बाई का बचपन बीत रहा था। अतः बचपन से ही उस नन्ही करमा में भक्तिभाव के संस्कार थे। इन्ही संस्कारों के बीच पलते बढ़ते करमा 13 वर्ष की हो गई। जन्म की तारीख को देखे तो 1034 में कर्माबाई जब 13 साल की थी तब उन्होने कृष्ण जी को पहली बार खिचड़ी का भोग लगाया था I
    करमा का खिचड़ा
    एक बार जीवनराम को कार्तिक पूर्णिमा स्नान के लिए, पुष्कर जाना था। उनकी पत्नी भी उनके साथ जा रही थी। नागौर राजस्थान से 138 किलोमीटर पुष्कर अजमेर था नागौर राजस्थान में दोनों जगह राजस्थान में ही आती है I पुष्कर में एक तालाब (सरोवर) है जो आज भी है जो ब्रम्हा भगवान जी का एक हिन्दू तीर्थ स्थल है और आज भी मौजूद है यहाँ लोग दूर-दूर से इस सरोवर में नहाने आते है जैसे हरिद्वार में जाते है I वे करमा को भी साथ ले जाना चाहते थे, लेकिन एक समस्या आ गई। उनकी अनुपस्थिति में भगवान को भोग कौन लगाता? इसलिए उन्होंने करमा को यह जिम्मेदारी सौंपी और बोले- पुत्री! हम दोनों पुष्कर स्नान के लिए जा रहे हैं। तुम सुबह भगवान को भोग लगाना और उसके बाद ही भोजन करना। करमा ने यह जिम्मेदारी सहर्ष स्वीकार कर ली। मां-पिता के तीर्थ यात्रा के लिए जाने पर, करमा ने सुबह स्नान आदि कर बाजरे का खिचड़ा बनाया और पूजा के लिए अपने घर मे बने भगवान के मंदिर के समीप आ गयी। भोग की थाल भगवान के सामने रख कर, हाथ जोड़कर बोली, हे प्रभु, भूख लगे तो भोग लगा हुआ है आप भोग ग्रहण कर लेना, तब तक मैं घर के और काम कर लेती हूं।
    करमा बाई (Karma Bai) का खिचड़ा चढ़ेगा
    यह बात महाराज तक जा पहुंची। महाराज अति शीघ्र मंदिर पहुंचे और वे पुजारी जी से विचार विमर्श करने लगे, फिर उन दोनों ने भगवान के पास हाथ जोड़कर विनती की, कि ‘प्रभु! कृपया हमें बताएं के इस बात का क्या संदेश है? रात्रि पहर जब वह सो रहे थे, तब भगवान, राजा के सपने में आए और उन्होंने कहा कि मेरी एक अनन्य भक्त थी, करमा बाई जो प्रतिदिन मुझे खिचड़े का भोग लगाती थी। और मैं, प्रतिदिन उनके यहां बालक रूप में जाकर खाया करता था। परंतु, आज उन्होंने अपने अंतिम स्वास लिए और मुझ में सदैव के लिए लीन हो गई। अब मुझे बालक की तरह प्रेम कर, कौन खिचड़ा खिलाएगा?
    यह सुन, महाराज ने सपने में ही, भगवान से कहा कि “प्रभु! आज से प्रतिदिन, आपके भोग में करमा बाई (Karma Bai) का खिचड़ा भी चढ़ेगा“। यही सपना उन्होंने अपने दरबार में सुनाया और उसी दिन से भगवान जगन्नाथ के भोग में, करमा बाई का खिचड़ा भी चढ़ने लगा। यह थी भक्त करमा बाई की कथा और उनके खिचड़े से जुड़ी प्रभु की लीला।
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