राधे नाम का पूरा लाभ न मिलने के दो कारण हैं

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  • Опубліковано 5 жов 2024
  • रसमय उपदेश :
    जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की काव्य रचनाओं में जो रस सिक्त तत्त्वज्ञान भरा है, वह इस बात का द्योतक है कि उनका अपना व्यक्तित्व भक्ति के परमोज्ज्वल स्वरूप से ऊर्जस्वित, जीव कल्याण की करुणामयी भावना से द्रवित एवं श्रीराधा-कृष्ण के अलौकिक प्रेम रस से ओतप्रोत है। भक्तियोगरसावतार की उपाधि प्राप्त श्री कृपालु जी महाराज हमारे वर्तमान विश्व के पाँचवें मूल जगद्गुरु हैं। वेद-शास्त्रों के प्रमाणों पर आधारित उनके सारगर्भित प्रवचन तो वैदिक हिन्दू सनातन धर्म के वास्तविक सिद्धान्त को सरलता एवं स्पष्टता से समझने का प्रमुख आधार हैं ही, उनकी सरस संगीतमय संकीर्तन रचनाएँ भी सिद्धांत ज्ञान से परिपूरित हैं। श्री महाराज जी द्वारा रचित रसमय संगीतात्मक काव्य कृतियों में कितना गहन तत्त्व ज्ञान लबालब भरा है, इसका वास्तविक परिचय तब मिलता है जब वे स्वयं अपने स्वरचित संकीर्तनों की व्याख्या करते हैं। ये बहुत आकर्षक व्याख्याएँ हैं, जिनमें रस (भक्तियोगरसावतार) एवं उपदेश (जगद्गुरूत्तम) का कृपामय सामंजस्य है।
    यह वीडियो
    'युगल शतक' नामक काव्य संग्रह
    के एक रसमय संकीर्तन-
    'जिया नहिं जाय अब राधे, राधे राधे राधे।'
    पर आधारित है, जिसकी सुन्दर व्याख्या
    श्री महाराज जी ने दिनांक : 05.09.2000 को
    रँगीली महल, बरसाना धाम में की थी।
    इसमें श्रीमुख की माधुरी का पान करते-करते सहज ही परमोत्कृष्ट उपदेश साधक के अंतर्मन में उतर जाता है।
    इस वीडियो के कुछ अंश हैं-
    "किशोरी जी हैं कहाँ?
    कैसे मिलें?
    गुरुजी ये तो बताइये।
    तो गुरुजी ने कहा, अरे! देख।
    अगर श्रीजी के मन्दिर जाने पर
    किशोरी जी मिलतीं
    तब तो जितने पंगुले थे,
    जिनके पैर खराब हैं, नहीं चल सकते,
    वो कहते भई हमको फ्री में भगवत्प्राप्ति कराई जाये। क्योंकि हम तो चढ़ नहीं सकते इतनी ऊँचाई पर।
    तो किशोरी जी ने कृपा करके
    सबके पास एक अपनी चीज़ छोड़ दी।
    क्या?
    किशोरी जी का नाम।
    राधे।
    अजी नाम तो बहुत ले चुके।
    अँ…नाम ले चुके।
    लेकिन नाम में किशोरी जी हैं,
    सेंट-परसेंट ये बात realize नहीं किया।"
    -जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज
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