"Nagda Nagdi Dama Mai"(नगदा नगदी) Haryanvi Ragni Dada Lakhmichand By Khushi Ram

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  • Опубліковано 2 жов 2024
  • पंडित लखमी चंद (जन्म: 1903, मृत्यु: 1945) हरियाणवी भाषा के एक प्रसिद्ध कवि व लोक कलाकार थे। हरियाणवी रागनी व सांग में उनके उल्लेखनीय योगदान के कारण उन्हें "सूर्य-कवि" कहा जाता है। उन्हें "हरियाणा का कालिदास" भी कहा जाता है।[1][2] उनके नाम पर साहित्य के क्षेत्र में कई पुरस्कार दिए जाते हैं। भले ही वे गरीबी एवं शिक्षा संसाधनों के अभावों के बीच वे स्कूल नहीं जा सके, लेकिन ज्ञान के मामले में वे पढ़े-लिखे लोगों को भी मात देते थे।
    उनका जन्म सोनीपत जिले के जाट्टी कलां गाँव में एक साधारण किसान गौड़ ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके दो भाई व तीन बहनें थीं। वे अपने पिता की दूसरी संतान थे। बाल्यवस्था में उन्हें पशु चराने के लिए खेतों में भेजा जाने लगा। उनको गाने में रुचि थी। वह हमेशा कुछ न कुछ गुनगुनाते रहते। सात-आठ वर्ष की आयु में ही उन्होंने अपनी मधुर व सुरीली आवाज से लोगों का मन मोह लिया। ग्रामीण उनसे नित गीत व भजन सुनाने की आग्रह करने लगे। ग्रामीणों की अपार प्रशंसा से उत्सा हित बालक लखमी चन्द ने अनेक गीत व भजन कंठस्थ कर लिए और गायकी के मार्ग पर अपने कदम तेजी से बढ़ा दिए। इसी दौरान उनके गाँव जांटीकलां के विवाह समारोह में बसौदी निवासी पंडित मानसिंह भजन-रागनी का कार्यक्रम करने के लिए पहुंचे। वे अन्धे थे। उन्होंने कई दिन तक गाँव में भजन व रागनियां सुनाईं। बालक लखमी चन्द भी उनके भजन सुनने के लिए प्रतिदिन जाते थे। लखमी चन्द के हृदय पटल पर पंडित मान सिंह का ऐसा जादू किया कि उन्होंने सीधे मान सिंह जी को अपना गुरु बनाने का निवेदन कर डाला। एक बालक के गायकी के प्रति इस अपार लगाव से प्रभावित होकर पंडित मान सिंह ने उनके पिता पंडित उदमी राम से इस बारे में बात की और उनकी सहमति के बाद उन्होंने बालक लखमी चन्द को अपना शिष्य बनाना स्वीकार कर लिया। इसके बाद बालक लखमी चन्द अपने गुरु से ज्ञान लेने में तल्लीन हो गए Life असीम लगन व कठिन परिश्रम से वे निखरते चले गए।
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