हनुमान जी क्यों हार गए थे इन महातपस्वी से???🤜🤛

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  • Опубліковано 6 лип 2024
  • कौन थे वो महातपस्वी जिन्होंने हनुमान जी को हराया।🤜🤛
    "चारों युग परताप तुम्हारा,
    है प्रसिद्ध जगत उजियारा”
    अर्थात जिनका चारों युगों में प्रताप है यश है,जो चारों युगों में प्रसिद्ध हैं उन्हें भला कोई कैसे पराजित कर सकता है।
    लेकिन ऐसा हुआ है और वो घटना इस जगत इस संसार को सीख देने के लिए हुई थी।
    स्कंद पुराण और पद्म पुराण में लिखी कथा के अनुसार प्राचीन काल में
    मच्छिंद्रनाथ नाम के एक बहुत बड़े तपस्वी हुआ करते थें, एक बार जब वो रामेश्वरम में आए तो भगवान राम द्वारा निर्मित
    सेतु देख कर वे भावविभोर हो गए और प्रभु राम की भक्ति में लीन होकर वे समुद्र में
    स्नान करने लगे। तभी वहां वानर वेश में उपस्थित हनुमान जी की नज़र उन पर पड़ी वोजानते थे की मचींद्रनाथ जी कितने बड़े तपस्वी हैं फिर भी उन्होंने मच्छिंद्रनाथ जी
    के शक्ति की परीक्षा लेनी चाही। इसलिए हनुमान जी ने अपनी लीला आरंभ की, जिससे वहां जोरों की बारिश होने लगी, ऐसे में बानर रूपी हनुमान जी उस बारिश से बचने के लिए एक
    पहाड़ पर वार कर गुफा बनाने की कोशिश का स्वांग करने लगे। दरअसल उनका उद्देश्य था
    कि मच्छिंद्रनाथ जी का ध्यान टूटे और उन पर नज़र पड़े और वहीं हुआ मच्छिंद्रनाथ जी ने
    तुरंत सामने पत्थर को तोड़ने की चेष्टा करते हुए उस वानर से कहा, ‘हे वानर तुम क्यों ऐसी मूर्खता कर रहे हो, जब प्यास लगती है तब कुआं नहीं खोदा जाता, इससे पहले ही तुम्हें अपने घर का प्रबंध कर लेना चाहिए था।
    ये सुनते ही वानर रूपी हनुमान जी ने
    मच्छिंद्रनाथ जी से पूछा, आप कौन हैं?
    जिस पर मच्छिंद्रनाथ जी ने स्वयं
    का परिचय दिया ‘मैं एक सिद्ध योगी हूं
    और मुझे मंत्र शक्ति प्राप्त है।
    जिस पर हनुमान जी ने
    मच्छिंद्रनाथ जी की शक्ति की परीक्षा लेने के उद्देश्य से कहा, वैसे तो प्रभु श्रीराम और महाबली हनुमान से श्रेष्ठ योद्धा
    इस संसार में कोई नहीं है, पर कुछ समय उनकी सेवा करने के कारण, उन्होंनेप्रसन्न होकर अपनी शक्ति का कुछ प्रतिशत हिस्सा मुझे भी दिया है, ऐसे में अगर आप में इतनी शक्ति है और आप पहुंचे हुए सिद्धयोगी है तो मुझे युद्ध में हरा कर दिखाएं, तभी मैं आपके तपोबल को सार्थक मानूंगा, अन्यथा स्वयं को सिद्ध योगी न कहें।
    यह सब सुनकर मच्छिंद्रनाथ जी ने उस वानर की चुनौती स्वीकार कर ली और युद्ध की शुरुआत हो गई। जिसमें वानर रुपी
    हनुमान जी ने मच्छिंद्रनाथ जी पर एक-एक करके कई बड़े पर्वत फेंके, पर इन पर्वतों को अपनी तरफ आते देख मच्छिंद्रनाथ ने अपनीमंत्र शक्ति का प्रयोग किया और उन सभी पर्वतों को हवा में स्थिर कर उन्हें उनके मूल स्थान पर वापस भेज दिया। इतना देखते ही महाबली को क्रोध आया उन्होनें मच्छिंद्रनाथ पर फेंकने के लिए वहांउपस्थित सबसे बड़ा पर्वत अपने हाथ में उठा लिया। जिसे देखकर मच्छिंद्रनाथ ने समुंद्र के पानी की कुछ बूंदों को अपने हाथ में लेकर उसे मंत्र से सिद्ध कर उन पानी की बूंदों को हनुमान जी के ऊपर फेंक दिया।इन पानी की बूंदों का स्पर्श होते ही हनुमान के शरीर मे अजीब सी हलचल हुई और एकदम से स्थिर हो गया, साथ ही उस मंत्र की शक्ति से कुछ क्षणों के लिए हनुमान जी की शक्ति छिन्न गई और ऐसे में वे उस पर्वत का भार न उठा पाने के कारण तड़पने लगे।तभी हनुमान जी का कष्ट देख उनके पिता वायुदेव वहां प्रगट हुए और मच्छिंद्रनाथ से हनुमान जी को क्षमा करने की प्रार्थना की। वायुदेव की प्रार्थना सुन मच्छिंद्रनाथ जी ने हनुमान जी को मुक्त कर दिया और हनुमान जी अपने वास्तविक रुप में आ गए। इसके बाद हनुमान जी ने मच्छिंद्रनाथ जी से कहा - हे
    मच्छिंद्रनाथ, मैं आपकोभलीभांति जानता
    था,फिर भी मैं आपकी शक्ति की परीक्षा लेने की प्रयास कर बैठा, इसलिए आप मेरी इस भूल को माफ करें। ये सुनकर और स्थिति को समझते हुए मच्छिंद्रनाथ जी ने हनुमान जी को क्षमा कर दिया।यह कहानी हमे सीख भी देती हैं कि कभी किसी को स्वयं से कम नहीं आंकना चाहिए।
    कहानी अच्छी लगी हो तो लाईक और कमेंट करके मुझे प्रोत्साहित करें ताकि मैं इस तरह की रोचक और ज्ञानवर्धक कहानी आपके लिए लाता रहूं। बहुत जल्द एक नए विषय पर नई वीडियो के साथ आपसे फिर मिलता हूं,तब तक के लिए नमस्कार🙏
    जय सियाराम
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