वो रूठी केकई को दशरथ मना ना पाये | रामवीर | भाग - 3 | जवाबी कीर्तन | क्रांति माला जवाबी कीर्तन
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- Опубліковано 14 жов 2024
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बहुत सुंदर गीत ❤❤
बहुत शानदार मुकाबला! विशेष आकर्षक लाइन क्रान्तिमाला जी की-
" वो रूठी अरे वो रूठी "
विशेष आकर्षक लाइन राजवीर जी की-
" या तो मैं जानती हूँ या राम जानता है "
कीर्तन सारांश-
सुनहु भरत भावी प्रबल, बिलख कहेउ मुनिनाथ |
हानि लाभ जीवन मरन, जस अपजस बिधि हाथ ||
रामवीर प्रधान जी की कलम का कोई तोड़ नही
बहन क्रांति जी कोई जोड़ नहीं
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुती अति सुन्दर रचना
🙏 सादर नमन 🙏
बहुत सुंदर प्रस्तुति आपको
जय हो
Jay Ho didi
Bahut sundar
कैकेयी ने भरत को राजा बनाना चाहा, क्या बना पाई? दशरथ ने भी कहा-
रिस परिहरि अब मंगल साजू | कछु दिन गए भरत युवराजू || क्या बना पाए?
माँ कौशिल्या और वशिष्ठ ने भी कहा कि भरत !तुम चौदह वर्ष गद्दी संभालो! लेकिन इनमें से कोई भरत को राजा नहीं बना पाया |
परन्तु राम जी ने भरत को राजा बना दिया और स्वयं भरत के एहसान तले दबकर और यह कहकर कि भरत! बुरे वक्त में भाई ही भाई के काम आता है, मेरा मन अवध को लेकर चिन्तित है और यदि तुम अयोध्या संभाल लोगे तो मैं निश्चिन्त होकर पिता के वचनों का पालन कर सकूँगा |
राम कीन्ह चाहहिं सोइ होई |करै अन्यथा असि नहिं कोई ||
Ok
Didi ji
Bahut sunder Kranti ji aapka koi jawab nahi
क्रांति माला जी आप आज गलत अखाड़े के सामने बैठ गई हो हर बात का जवाब होगा हाथरस की बात है यह जय हो चंदू लाल की
bahut jald karmo ka hisab hone lagega.
kitab kisee aur ki aur kalam kisee aur ki kabtak chalegi.
बहुत सुन्दर रचना
insan upar se jitna achchha dikhta.sayad kaheen usse jyada andar khatiya nikalta hai.
Bahut sundar