Tarkeshwar Mahadev ke darshan kr dhanyaeho gye || Kafal ke maje lete huae
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- Опубліковано 22 тра 2024
- Tarkeshwar Mahadev ke darshan kr dhanyaeho gye||Uttrakhan ka famous fruit Kafal kha kr mja he aa gya
देवभूमि उत्तराखंड को महादेव शिव की तपस्थली भी कहा जाता है। ताड़केश्वर महादेव मंदिर (Tarkeshwar Mahadev Temple), उत्तराखंड के पौड़ी जिले के ‘गढ़वाल राइफल’ के मुख्यालय लैंसडाउन (lansdowne) से 34 किलोमीटर दूर और समुद्रतल से लगभग 1800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। स्कंद पुराण के केदारखंड में वर्णित विष गंगा व मधु गंगा उत्तर वाहिनी नदियों का उद्गम स्थल भी ताड़केश्वर धाम में माना गया है। यह स्थान “भगवान शिव” को “श्री ताड़केश्वर मंदिर धाम” या “ताड़केश्वर महादेव मंदिर (Tarkeshwar Mahadev Temple)” के रूप में समर्पित है। इस मंदिर का नाम उत्तराखंड के प्राचीन मंदिरों में आता है, और इसे “महादेव के सिद्ध पीठों” में से एक के रूप में भी जाना जाता है।
देवदार, बुरांश और चीड़ के घने जंगलो से घिरा, यह उन लोगों के लिए आदर्श स्थान है, जो प्रकृति में सौन्दर्य की तलाश करते है। यहाँ पौराणिक महत्व है कि देवी पार्वती ने भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए ताड़केश्वर में प्रार्थना की थी, कई भक्तों का यह भी मानना है कि भगवान शिव अभी भी इस स्थान पर हैं और गहरी नींद में है। एक समय ताड़ के बड़े पेड़ो से गिरी छोटी टहनी और पत्तो को ही यहाँ के प्रसाद के रूप में दिया जाता था।
माता लक्ष्मी ने खोदा था कुंड
मंदिर परिसर में एक कुंड भी है। मान्यता है कि यह कुंड स्वयं माता लक्ष्मी ने खोदा था। इस कुंड के पवित्र जल का उपयोग शिवलिंग के जलाभिषेक के लिए होता है। जनश्रुति के अनुसार यहां पर सरसों का तेल और शाल के पत्तों का लाना वर्जित है। लेकिन इसकी वजह के बारे में लोग कुछ कह नहीं पाते।
ताड़कासुर ने यहीं की थी तपस्या
पौराणिक कथाओं के अनुसार, ताड़कासुर नामक राक्षस ने भगवान शिव से अमरता का वरदान प्राप्त करने के लिए इसी स्थान पर तपस्या की थी। शिवजी से वरदान पाकर ताड़कासुर अत्याचारी हो गया। परेशान होकर देवताओं और ऋषियों ने भगवान शिव से प्रार्थना की और ताड़कासुर का अंत करने के लिए कहा।
इसलिए पड़ा मंदिर का नाम 'ताड़केश्वर'
भोलेनाथ ने असुरराज ताड़कासुर को उसके अंत समय में क्षमा किया और वरदान दिया कि कलयुग में इस स्थान पर मेरी पूजा तुम्हारे नाम से होगी इसलिए असुरराज ताड़कासुर के नाम से यहां भगवान भोलेनाथ 'ताड़केश्वर' कहलाये।
एक अन्य दंतकथा भी यहां प्रसिद्ध है कि एक साधु यहां रहते थे जो आस-पास के पशु पक्षियों को सताने वाले को ताड़ते यानी दंड देते थे। इनके नाम से यह मंदिर ताड़केश्वर के नाम से जाना गया।
माता पार्वती हैं मौजूद छाया बनकर
ताड़कासुर के वध के पश्चात् भगवान शिव यहां विश्राम कर रहे थे, विश्राम के दौरान भगवान शिव पर सूर्य की तेज किरणें पड़ रही थीं। भगवान शिव पर छाया करने के लिए स्वयं माता पार्वती सात देवदार के वृक्षों का रूप धारण कर वहां प्रकट हुईं और भगवान शिव को छाया प्रदान की। इसलिए आज भी मंदिर के पास स्थित सात देवदार के वृक्षों को देवी पार्वती का स्वरूप मानकर पूजा जाता है।
त्रिशूल रूपी वृक्ष
मंदिर परिसर में मौजूद त्रिशूलनुमा देवदार का पेड़ है, जो दिखने में सचमुच बेहद अदभुत है। यह वृक्ष इसे देखने वाले श्रद्धालुओं की आस्था को प्रबल करता है।
मनोकामना पूरी होने पर भक्त भेंट करते हैं घंटी
ऐसी मान्यता है कि जब किसी भक्त की मनोकामना पूरी होती है तो वह यहां मंदिर में घंटी चढ़ाते हैं। यहां दूर दूर से लोग अपनी मुरादें लेकर आते हैं, और भगवान शिव जी अपने भक्तों को कभी निराश नहीं करते। यहां मंदिर में चढ़ाई गई हजारों घंटियां इस बात का प्रमाण हैं कि यहां बाबा की शरण में आने वाले भक्तों का कल्याण हुआ है।
महाशिवरात्रि में विशेष पूजा का आयोजन
महाशिवरात्रि पर यहां का नजारा अद्भुत होता है। इस अवसर पर यहां विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है।
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