मोक्ष की कामना भी बंधन है,मुक्ति इसी क्षण में है आँखें खोलो और देखो ।

Поділитися
Вставка
  • Опубліковано 25 гру 2024

КОМЕНТАРІ • 25

  • @anishyadav7329
    @anishyadav7329 2 дні тому +2

    बहुत गहरी बात बताये हो ❤❤❤ thanks mam 🔥🔥🔥

  • @Sutikshansharma-86
    @Sutikshansharma-86 3 дні тому

    Madam app ki battain hoti bilkul straight forward hai
    Parnam 🙏🙏🙏🙏

  • @vijaydhawan3287
    @vijaydhawan3287 2 дні тому

    🙏🙏🙏🙏❤️❤️❤️💯

  • @akhileshkumarsaroj476
    @akhileshkumarsaroj476 2 дні тому +1

    वीडियो का टाइटल देखकर ही मैने subscribe कर दिया, नमन है आपको ऐसी सुंदर वीडियो बनाने के लिए..🙏🙏

  • @nachiketkanase3301
    @nachiketkanase3301 3 дні тому

    Thanks for sharing new insights..

  • @dilipvaitha558
    @dilipvaitha558 2 дні тому

    🎉

  • @rajeshsamsukha3425
    @rajeshsamsukha3425 3 дні тому

    प्रणाम दीदी 🙏🙏🙏

  • @Guddu-d4e
    @Guddu-d4e 5 годин тому

    100% सही है

  • @Matrix-rq1kh
    @Matrix-rq1kh День тому

    muze is kshan me jeena he bina sukh dukh ya bhoot or bhavishya ki parvah kiye, kya ye bhi ek icha nhi he?

  • @LearningwithEarning-q4d
    @LearningwithEarning-q4d День тому

    व्यक्तित्व को चुराने का प्रयत्न ना करना ना बुद्ध होने, ना महावीर होने ना शिव ना कुछ or जैसा hone का प्रयन्त करना भटक जाओगे l
    मोटरमा बिना इच्छा के जीवन नहीं हो सकता है इच्छा जीवन पैदा करती है फूल इसलिए खिलते है क्योंकि सौंदर्य फैला सके इसलिए की भाग दौड़ में है l
    मोक्ष भी इच्छा है ईश्वर भी इच्छा है जो जीवन पैदा करता वो तुम्हारा भाव है और कुछ नहीं.अराजकता कभी बार नहीं थे बल्की तुम्हारे भीतर थी l

  • @RajnishKumar000
    @RajnishKumar000 3 дні тому

    🙏🙏🙏🙏🙏

  • @LearningwithEarning-q4d
    @LearningwithEarning-q4d День тому

    जानवत भविष्य की नहीं सोचते उनका मोक्ष हो गया.

  • @rajvardhansingh132
    @rajvardhansingh132 3 дні тому

    Good night dear 😴
    Sleep well 💤

  • @LearningwithEarning-q4d
    @LearningwithEarning-q4d День тому

    भूख लगी हो भोजन चाइये प्यास पानी चाइये तुम्हे उसे जानना है है तो जिसे तुम ऊर्जा, परामत्मा जो कुछ और हैँ इसके liye साधना करनी पड़ेगी, तुम्हे समर्पण करना पड़ेगा क्योंकि बिना समर्पण के आज तक किसी को कुछ नहीं मिला.
    जिसे तुम वर्तमान होने की बात करते हो वो बिना सदना के संभव नहीं हैँ l क्योंकि तुम्हारा मन तुम्हारे विचारों से ज्यादा चालाक हैँ और सक्तिशाली भी l

  • @निष्कामसेवातन्त्र

    क्या आपके भीतर से वो इच्छा छूट गई क्या डिअर?
    या ओशो को सुनकर बोल रही हो..
    बाकि बोली एकदम अच्छा.

    • @LearningwithEarning-q4d
      @LearningwithEarning-q4d День тому

      इसने व्यक्तित्व चुराया है फूल फिर भी वैसे ही खिलेंगे जैसे वो थे उनमे कुछ नया पदर्पण नहीं हो जायेगा. कहानी तभी लिखी जाएगी जब तुम्हारा अहंकार का अंश होगा

  • @kalateet
    @kalateet 2 дні тому

    han moksha ki kamna hona mann ki baat ho gayi or mukti jaisi koi cheez he nahi hai mukti jai mann sharir buddi se aankh kholo samne tum he ho ye bilkul sahi kaha vo sehej hai virat hai or samne hai yahi hai abhi hai vo shunya hai ye anubhav mai 10 din pehle le chuka hu kuch video hai dekhke bataiyega k isske baad bhi kuch hao ya mai ghar phonch chuka hu

  • @Gopalji1297
    @Gopalji1297 2 дні тому +2

    मोक्ष जबतक मुझमे नहीं होगा जीवंतता में वर्तमान में अभी क्षण क्षण में ,, तो इच्छा न करने की इच्छा भी एक इच्छा है । इच्छा है क्या ? किसी व्यक्ति की मांग , किसी वस्तु की मांग या अन्य मानसिक मांगें ,, तो इच्छा तो पूर्ण होगी ही परिश्रम से प्रयास से ' लेकिन जो मोक्ष केवल इच्छा से प्राप्त नही होता बल्कि कर्म से यहां उपस्थित होता है वह होते हैं हम यानी मेरा यहां होना एक वास्तविकता है तो ये मोक्ष है या परतंत्रता , इच्छा होने के साथ साथ आपमे श्रम भी करने की ताकत इच्छा भी तो चाहिए व्यवस्था भी तो करनी होगी 😂 इच्छा की ,, हालांकि क्या ये मूर्खतापूर्ण निर्णय नही होना चाहिए कि मैं शांत होकर सिर्फ बैठ रहूँ और पा जाऊँगा 😂 ,, आपकी इच्छा होगी तो ऐसे भी प्राप्त हो सकता है और आप ध्यान के अनुभव से भागोगे पूरा नही भोग पाओगे क्योंकि वहां तो आपके मानसिक स्व या मोक्ष का अंत हो रहा है ,, भीतर के ध्यान में आप स्व से भी मुक्त हो रहे होते हैं फिर आप स्व से ही उस अनुभव को रोककर बाहर भी आते हैं मैं आया हूँ क्योंकि वो है ही इतना अस्तित्वगत ,, खैर बिना इच्छा के मोक्ष भी सम्भव नही है क्योंकि मोक्ष अवस्था तो अत्यंत स्वतन्त्र है उसमें आपकी मानसिक स्वतन्त्रता एकदम विनाश होगी ,, आगे मानसिक मोक्ष से वास्तविक मोक्ष की तरफ उन्मुख होने के लिए इच्छा तो होनी आवश्यक है लेकिन वह जो अनुभव है वह आपकी समस्त इच्छा या अनिच्छा से परे अपनी एक आत्मवत्ता रखता होगा तो वो जब आयेगा ध्यान के माध्यम से आपमे तो मोक्ष का उत्तर जब आप होंगे तो वहां कोई आनन्द नही है वो कुछ न होना आनन्द भी नही है , तो पहले तो श्रम है फिर आशा है कि होगा मोक्ष और हो जायेगा फिर श्रम आपसे होगा आशा आपसे जन्म लेगी अभी तो आशा या श्रम बाहर से छूटने के लिए हो सकता है कोई बुराई नही है इसमें खैर । अगर ये मोक्ष की खोज करने वाले व्यक्तियों ने नाम न दिए होते तो कैसे ? किसी को समझ आता कि मोक्ष क्या है या वो व्यक्ति जो एक बेहतर अवस्था मे दिखाई दे रहा है उस अवस्था का नाम मोक्ष है । वास्तविकता में इच्छा और श्रम दोनों की जरूरत होगी ही इनके बिना पूर्व जीवन की आदत दुबारा शुरू हो जाएगी नया मन बनाना ही सन्यास है और मुक्ति का कोई सन्यास नही कोई साधना नही कोई पाना खोना नही वो तो है बस । अभी के लिए इच्छा एक याद बन रही है कि अभी मैं भोजन कर रहा हूँ तो ये एक आवश्यकता है इच्छा नही है ,, इच्छा शब्द मानसिक है तो उसकी मांग वास्तविक कैसे होगी ,, लेकिन कभी कभी वास्तविकता को याद दिलाने के लिये मोक्ष शब्द । 😅

    • @उर्वशी-0
      @उर्वशी-0  2 дні тому +2

      शब्दों को कैसे भी फैलाया जा सकता है ,पर शब्दों के सहारे निशब्द को समझाना ही शब्दों का प्रयोजन है ।

    • @vrawat
      @vrawat 2 дні тому +1

      Sahi baat kisi chij ki icha na karna bhi to icha he hai ..kuch chana or na chana bhi to icha he hai

    • @Gopalji1297
      @Gopalji1297 День тому

      @@उर्वशी-0 हाँ लेकिन ये भी निशब्द कबतक रहेगा ये निर्भर किसपर है आखिर निशब्द सर्वत्र क्यों होगा ,, तो मुख्य स्रोत का पता करना बाह्य ज्ञान या बाहरी शब्द से बाधित तो नही होना चाहिए वरना विरोध या स्वीकार में आप साक्षी से च्युत हो जाएंगे अभी इसी क्षण ,, शब्द का सत्य यानी निशब्द में इर्द गिर्द प्रकट होते रहते हैं शब्द का सत्य साकार से है निशब्द का सत्य निराकार से है ,, तो स्रोत तक कैसे जाएँगे जहां ये दोनों ही नही है और तीसरी अवस्था है ,, निशब्द और शब्द दोनों ही एक के ही साक्षी है । पर साक्षी में भेद नही है और भेद है तो साक्षी है नही । बहुत रोचक है यह तर्क वितर्क । साधना के बिना तो यह गुत्थी सुलझने से रही नही । और हाँथ में वही लगना है जो हमेशा से ही है और रहेगा ,, मोक्ष का ख्याल मेरा हो सकता है पर अस्तित्व या परम् मेरे नियम से नही चलते तो जन्म या मृत्यु दोनों जीवन के स्वभाव में नही है शरीर और मन दोनों बनते नष्ट होते हैं प्रतिपल लेकिन मोह की वजह से शरीर और मन निंदित अवस्था मे है वरना साधना इसी से होगी और फिर ओशो जैसा व्यक्ति भी जन्म लेता है फिर भक्ति में चले जाओ तो अनन्त कारण है ,, पर उस अवस्था मे साकार को नकार दिया जाए शुरू से ही तो निशब्द की जरूरत कुछ भी तो नही होगी , निशब्द को तो जानना बेहद जटिल है असम्भव है शब्द का न होना निशब्द है पर मेरा होना निशब्द और शब्द इन दो शब्दों से तय नही होता , सारे शब्द प्यारे हैं जब चित्त बच्चे जैसा हो जाये अत्यंत आनन्दित ,, मैं आपको गलत कैसे कह सकता हूँ आपकी बात एकदम ठीक है 😊🙋

    • @Gopalji1297
      @Gopalji1297 День тому +1

      @@vrawat न चाहना इतना सरल है कि चाहत का ख्याल तक नही है । और इच्छा का न होना इतना कठिन है कि इच्छा नही करनी है इसको 😅 संभालते हुए हम वर्तमान के क्षण से तुरन्त इच्छा को इच्छा नही करने में busy रहेंगे । माता पिता की सेवा आपके सामने है जो है अभी है मिला है उसमें आनन्द लो क्यों कहा ओशो ने ,, भागने वाले साधु वर्तमान स्थिति से हटकर कोई सन्त या ज्ञानी बनने को उतारू है । पर ज्ञानी जन जो हुए हैं मैं तो नही हूँ पर जो हैं वो वर्तमान में कर्म को पूरे सद्भाव से कर रहे हैं और मुक्त अवस्था मे कुछ भी कर रहे हैं तो ये क्यों है क्या है कोई नही जान पायेगा ,, आशीर्वाद भी कुछ है समर्पण का फल क्या है तो कोई सोचता है फल के बारे सोचना बेकार है क्यों बेकार है भई ,, उससे हमे पश्चाताप तो नही होता न कि हमने सेवा जैसे शब्द को सार्थक नही किया ,, विपरीत में एक आनन्द की स्मृति कि जब उसकी जरूरत थी या है तो हमने सेवा की और कर रहे हैं तो ये साधना बाधा कहाँ है ,, और इससे हमारी साधना में भी सुख के साथ प्रवेश होता है क्योंकि कर्तव्य यानी बाह्य जीवन व्यवस्थित है वहां कोई टकराव नही । तो जो सब काम काज छोड़कर घर मे पड़ा रहे और साधना करे तो वो मूर्ख ही हुआ न अज्ञानी क्यों होगा ,, क्योंकि साधना प्रत्येक अवस्था मे है यही उसकी महानता है वरना क्यों करेंगे हम ,, भाड़ में जाये ऐसी साधना जो जन्म देने वाले परमात्मा और उसकी सुंदर श्रष्टि में उदास उदास घूमना पड़े अकड़े अकड़े चलना पड़े । खुले मन से ही आनन्द झरता है । संकुचित अवस्था मानसिक है शारीरिक नही है । लेकिन शरीर पर उसका दुष्प्रभाव पढ़ेगा । तो शब्द का ज्ञान बेहद आनन्दपूर्ण है और निशब्द का आनन्द इस आनन्द शब्द से बेहद विपरीत है ।

    • @Gopalji1297
      @Gopalji1297 День тому

      चाहत के सार्थक रूप को प्रयोग करना हमेशा बेहतर है - बाह्य जीवन में ,, भीतर तो कोई भी चाहत नही जा सकती और जरूरत नही है क्योंकि आप पूर्ण हो बस आप पहुँचो किसी रोज दर्शन करो खुद का शरीर को देखो साफ सफाई कर दो किसी ने दिया है इतना प्यार शरीर तो उसमें श्रद्धा पूर्वक होकर शरीर का सम्मान करो स्नान करो ऐसे भाव मे ,, तमाम विधि हैं करो और बाह्य जीवन वैसा ही रहने दो किसी को दर्शाने में न लगो कि हम कुछ विशेष करने जा रहे हैं ,, लाओ आरती की थाली सजाओ उतारो हमारी 🤣🤣