ओडागाड गांव में आए(ग्राम - पैठाणी)से 🙏 घंडियाल देवता🌺 निसाण🏵️ राठ क्षेत्र पैठाणी❣️/पौड़ी गढ़वाल

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  • Опубліковано 9 лют 2025
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    श्री घंडियाल देवता को पांडवों का वंशज कहा जाता है और घण्टाकर्ण महादेव के रूप में पूजा जाता है ।।
    श्री घण्टाकर्ण देवता श्री बद्रीनाथ जी के क्षेत्रपाल के रूप में विराजमान हैं।।
    श्री घंडियाल देवता पर आधारित ग्रन्थ घण्टाकर्ण सार एवम घण्टाकर्णकल्प नामक ग्रंथ कोलकाता एवम पटना में अभी भी संग्रहालय में मौजूद हैं।।
    कैसे देवभूमि के जगह जगह घण्टाकर्ण का वास हुआ ???
    इंद्रप्रस्थ यानी दिल्ली में जब मुगलों ने आक्रमण कर गायों का वध किया एवम हिन्दू देवी देवताओं के मंदिरों संस्कृति को नष्ट करने का प्रयास किया तब सभी देवी देवताओं सहित घण्टाकर्ण देवता भी एक देवभूमि आ पहुंचे ।।
    नारायण के सर्वप्रथम पृथ्वी पर चरण स्पर्श स्थान हरिद्वार में गंगा स्नान के बाद घण्टाकर्ण देवता देवभूमि में किसी स्थान की तलाश में एक वृद्ध का रूप धारण कर ऋषिकेश में बैठ जाते हैं जहाँ से उस समय पहाड़ी लोग अपने सामान को बेच कर अपनी जरूरत का सामान नमक इत्यादि ले जाते थे जिन्हें ढाकरी कहा जाता था ।।
    रास्ते में बैठे भगवान सभी से उन्हें कंडी में बिठाकर अपने साथ ले जाने की बात करते हैं किंतु सभी अपने बोझ के साथ उन्हें ले जाने में असमर्थता जताते हैं।
    तब एक अधेड़ व्यक्ति सजवाण द्वारा उन्हें अपने सामान के साथ कंडी के ऊपर बिठाया जाता हैं घण्टाकर्ण कि कृपा से उस व्यक्ति का बोझ फूल के समान हो जाता हैं जब वह व्यक्ति अपने गांव के नजदीक बैठ कर तम्बाकू पीने के लिए अपना बोझ एवम देवता को उतरता है तब देवता उसी स्थान पर अंतरध्यान हो जाते हैं ।।
    बहुत ढूंढने के पश्चात देवता उस व्यक्ति को नही मिलते है । संध्या होने पर वह व्यक्ति अपने घर लौट आता है रात में स्वपन में आकर देवता अपना परिचय देते है और अपना मंदिर बनाने की बात कहते है ।
    देवता की कृपा से सजवाण का घर समृद्धि से भर जाता हैं और निसन्तान दंपति को संतान की प्राप्ति होती है।।
    वह स्थान जहाँ पर देवता अंतरध्यान हुए थे क्विलि पालकोट में है जहां देवता का मंदिर है।।
    जब देवता वहाँ लिंग रुप में विराजमान थे तब रोज एक गाय आकर अपने दूध से देवता का अभिषेक करती थी जब यह घटना एक दिन उस गाय के मालिक ने देखी तो क्रोध में आकर उसने लिंग पर अपनी कुल्हाड़ी से जोरदार प्रहार किया फलस्वरूप लिंग कई हिस्सों में बंट गया जो लिंग जिस दिशा में गिरा उसी दिशा में उन्ही स्थानों पर देवता अवतरित हुए औऱ वहाँ देवता के भव्य मंदिरों का निर्माण हुआ ।।।

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