आदिवासियों के बाद देवासी समाज ने बढ़ाई CM Bhajanlal Sharma की मुश्किल, राई का बाग नाम को लेकर विवाद
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- Опубліковано 30 чер 2024
- आदिवासियों के बाद देवासी समाज ने बढ़ाई CM Bhajanlal Sharma की मुश्किल, राई का बाग नाम को लेकर विवाद
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देवासी समाज के इतिहास के साथ खिलवाड़ हमें बर्दाश्त नहीं
बहुत अच्छा संघर्ष कर रहे हो अपनी संस्कृति पहचान को बचाना रखना प्रयास जारी रखो रायका समाज को हमारी ओर से जोहार🏑🏑🏑🏑🏑🏑🏑
सभी देवासी समाज को जोहार जय भीम
आभार मीडिया
आभार लाल सिंह जी
Dewasi samaj ke itihas ke sath chhedchhad bardasht nahi ki jayegi
MBC Ekta jindabad ❤️
Jai bhaichara
Jai devasi samaj❤❤❤❤❤
Bahut bahut dhanyawad ji
Aap ne hamari bat suni
Raika samaj ko mudha uthane per bahut bahut selyut johar
सही बात❤❤
हर समाज का नाम और इतिहास है पर बीजेपी और rss कुछ नेता लोग नाम चलाना चाहते है
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इनका अधिकार है
इस माँग के पीछे की कहानी का कोई ऐतिहासिक आधार नहीं है।
जो इतिहासिक सत्य है वो इस प्रकार है आज का जो यह राई का बाग़ रेलवे स्टेशन है किसी वक्त में इस जगह पर जोधपुर रियासत का शुथलखाना था यानि रियासत के ऊंट इस जगह पर रहते थे और ऊंट की देखभाल राईके करते थे, चूंकि जगह दरबार की थी परन्तु राईका लोग रहते थे।
इस जगह पर महाराजा जसवंत सिंह जी की महारानी शेखावतजी की बडारण "राई" ने जोधपुर का " राई का बाग पैलेस" शुरू में बनाया था(सिर्फ एक छोटा मकान),
यह बडारण, महाराजा जसवंत सिंहजी की रानी की दासी थी। राजस्थान की सभी रियासतों में कई बडारणो का व्यक्तित्व महत्वपूर्ण रहा है , जयपुर महाराजा का महल "रामबाग" भी किसी जमाने में एक बडारण का मकान था,
ये इतिहासिक सत्य है जो पद्म श्री लक्ष्मी कुमारी चुण्डावत नें भी "गिर ऊंचा ऊंचा गढ़ा" में लिखा है परन्तु अब ये कुछ भी कहा जा सकता है..
अब बात आसारानाडा की है तो दुर्गादासजी राठौड़ के पिता आसकरणजी जिनके जागीर का मुख्य गाँव सालवा जिसके पास में उन्होंने नाडा खुदवाया जिसका नाम आसा रा नाडा रखा ( जो करणोंतों के प्रमाणित इतिहास में लिखा है ) और राईकाबाग पैलेस महाराजा जसवंतसिंहजी द्वितीय नें बनवाया जहाँ उनसे लेकर महाराजा उम्मेदसिंहजी तक की चार पीढ़ियों का निवास रहा है तत्पश्चात उम्मेद भवन के बाद तीन पीढ़ियों से वहाँ रह रहे है ये सब प्रमाणित और मेहरानगढ़ स्थित पुस्तक प्रकाश में समकालीन ग्रंथों में दर्ज है बाकी जो लोग कहते है वो सब काल्पनिक है जिसका कोई इतिहासिक आधार नहीं है।
Jalan barkarar rakhe ..gulabo bai ke ladlo...😊
मारवाड़ में राईका समाज प्राचीन समय से ही निवास कर रहा है, यह घटना है वि.सं 735 की जब वहा प्रतिहारो का शासन आया उसमे शूर सिंह पीडियार का कालक्रम आया, शूतर सेना राजपूत सेना की जान मानी जाती है।उस समय उनके जो सैन्य ऊंट थे। उनमें बीमारी चली और उस समय वर्तमान जोधपुर नगर की स्थापना नहीं हुई थी वहा पर आशुजी की ढाणी थी तो राजा के सैनिकों ने उन बीमार ऊंटो को वहा छोड़ दिया ढाणी के पास ताकि यह बीमारी महामारी न बन जाए क्योंकि बहुत से ऊंटो के जानकारों से भी इसकी बीमारी का हल नहीं निकला था। जब आसूजी ने उन ऊंटो को देखा तो उनके मन में उनके प्रति दया आई और रबारी कभी भी ऊंटो के दुख को नही देख सकते हैं।वे उम्र मे थोड़े छोटे थे, सैनिकों के द्वारा उन्हें समझाया गया की ये आम ऊंट नही है इनसे दूर रहो लेकिन आशु जी बिना डरे उनकी सेवा करते हैं उसके कुछ समय बाद वे ऊंट स्वस्थ हो गए । इसकी बात राजा को पता चली ओर उन्हें राजदरबार मैं बुलाया और उन्हें राजदरबार में रहने व राजपद देने की बात कही उस समय आशूजी ने मना कर दिया की जब तक मेरे समाज का आम व्यक्ति इतने ऐशो आराम में रहेगा तभी में यहां रहूंगा अन्यथा नहीं उसके बाद उन्होंने रबारी समाज को कई गांवों में जागिरी दिलवाई,ओर बाद में जैसलमेर से विस्थापित राईका ओ को भी जागीरिया दिलवाई, पीड़ियारो के शासन में 38 गांवों की जागिरी रबारी समाज को मिली हुई थी, व आशुराम जी बाद में सेनापति के पद पर भी रहे । ओर उन्होंने ऊंट सैनिकों के लिए उम्दा शूतरखाने बनवाए। ओर बाद में उन्होंने उनकी ढाणी में नाडा खुदवाया ओर उसका नाम उन्ही से आशानाडा पड़ा। इस तरह वे राजा के खास बन गए थे। लेकिन जब रानी उनकी ढाणी से निकली तो उन्होंने देखा की ऐसी जमीन तो पूरे क्षेत्र में नही है और उनके मन में बाग बनाने का ख्याल आया ।ओर राजा से इस विषय में बात की लेकिन उन्होंने आसुरामजी से यह जगह सीधे लेना उचित नहीं समझा और उन्होंने रानी को तरकीब बताई की आप उन्हे धर्मभाई बना लो तो वो आपको चुंदड़ी ओढ़ाई में कुछ देनें की बात कहे तब यह ढाणी ही मांग लेना ओर इस तरह वे तुम्हे मना नही केरेंगे,इस तरह यह जमीन रानी के पास आई और उन्होंने इस जमीन पर बाग लगाया लेकिन इस इतिहास को अमर करने के लिए इसका नाम अपनी प्रिय जाति राईका के नाम पर राईका बाग बनवाया। उनके बाद राठोडो का शासन आया और यहां पर राजा जसवंत सिंह की रानी ने इस बाग में एक पैलेस बनवाया जिसका नाम भी पूर्व नाम पर ही रहा राईका बाग पैलेस, और फिर यहां रेलवे जंक्शन आया,उसका नाम भी इसी पर था लेकिन जब इसका नवीनीकरण हुआ तो इसका नाम राई का कर दिया जिससे इसका अर्थ ही बदल गया।
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