परमहंस योगानंद की सात क्रियाएं || VIJAY KRISHNA || HINDI

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  • Опубліковано 11 чер 2019
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    क्रिया योग दो शब्दों से मिलकर बना है क्रिया और योग, क्रिया का अर्थ होता है कोई ऐसा आध्यात्मिक या योग कर्म जिसके द्वारा मनुष्य अपने मन को अपने अंतर्निहित आत्मा की अनंत शक्ति, अनंत ज्ञान, अनंत आनंद, और रोग नाशक शक्ति के साथ संबंध स्थापित कर सके।
    क्रिया योग का अभ्यास हमें हमारी आत्मा से जोड़कर उन सभी शक्तियों को प्राप्त करने का मार्ग सिखाता है जिससे हम अपने जीवन में आने वाली हर समस्या से लड़ सकते हैं, परमात्मा के ज्ञान से आने वाली हर उलझन को सुलझा सकते हैं और शरीर मन या आत्मा में व्याप्त किसी भी प्रकार की व्याधि को नष्ट कर सकते हैं।
    जो हम अपने शरीर और बुद्धि की शक्ति से ज्ञान या धन का संचय करते हैं वह तो समुद्र से बूंद बूंद इकट्ठा करने के समान है, क्रिया योग वह विज्ञान है जो हमें सीधे आनंद, ज्ञान, शांति और रोग नाशक शक्ति के सागर से, समंदर से सीधे जोड़कर हमें जीवन में सभी दुखों से बचाता है।
    निकोलस टेस्ला नाम के महान वैज्ञानिक
    जिन्हें आधुनिक विज्ञान का पिता कहा जाता है वह कहा करते थे कि मनुष्य मस्तिष्क तो बस एक तरह का यंत्र है जो ब्रह्मांड के गहरे ज्ञान, शक्ति, को ग्रहण करता है।
    दुनिया के महान वैज्ञानिक, चिंतक, लेखक तथा कलाकार जिस ज्ञान को ब्रह्मांड से बिना विशेष विधि के प्रयोग के अचेतन रूप से प्राप्त करते हैं, वही ज्ञान, वही आनंद, वही शक्ति, क्रिया योगी अपनी क्रिया विधि के उपयोग के द्वारा ब्रह्मांड के गहरे गर्भ में उतर करके प्राप्त करता है।
    क्रिया योग एक पुरातन आध्यात्मिक विज्ञान है जिससे सामान्य से सामान्य व्यक्ति भी अपने अंदर छिपी मानसिक और आध्यात्मिक शक्तियों का विकास कर सकता है।
    इस विज्ञान का संबंध किस धर्म या संप्रदाय से नहीं है। यह एक सार्वभौम और सर्वकालिक विज्ञान है।
    ऐतिहासिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो इसका सबसे पहले विधिवत ज्ञान भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को दिया था। यह ज्ञान भगवान ने अर्जुन को कुरुक्षेत्र के मैदान में दिया था। भगवत गीता महाभारत का एक अंश है उसमें क्रिया योग की विस्तृत व्याख्या की गई है।
    इसी महान विज्ञान का ज्ञान हिमालय के अजर,अमर योगी महावतार बाबाजी ने लाहिड़ी महाशय को दिया था। लाहिड़ी महाशय के अनेक शिष्यों में एक महान स्वामी युक्तेश्वर महाराज थे।

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