सीता माता (निमली) के मैलै मैं गंभीरा पार्टी द्वारा शानदार प्रस्तुति

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  • Опубліковано 8 жов 2024
  • #👍Gambheera bundi
    Dangal party gambhira कन्हैया गीत राजस्थान के पूर्वी भाग में विशेषकर मीणा, गुर्जर, माली समुदाय में प्रचलित सामूहिक गायन हैं जिसे नौबत , घेरा, मजीरा व ढोलक नामक वाद्य यंत्रो की मदद से गाया जाता हैं। पूर्वी भाग में ये लोगो के बीच आपसी भाईचारे और बंधुत्व को बढ़ाने में एक अनुकरणीय योगदान दे रहे है। कन्हैया गीतों के आयोजन जिसमे दो या दो से अधिक पार्टियो के बीच कन्हैया गीतों का मुकाबला होता हैं, कन्हैया दंगल कहलाता हैं। इसका आयोजन ज्यादातर पूरे गाँव के मध्य होता हैं। इसमें भाग लेने के लिए दो या दो से अधिक गाँवो को निमंत्रण भेजा जाता हैं जिसको 'कागज़ भेजना' कहा जाता है। अगर दूसरा गाँव भाग लेने पर सहमत हो जाता है तो उसे 'कागज लेना' कहते हैं और अगर सहमत नही होता हैं तो कहा जाता हैं कि उस गाँव ने 'कागज़ झेलने' से मना कर दिया।
    कन्हैया गीतों को एक निश्चित प्रारूप में बहुत सारे लोग एक घेरा बनाकर गाते हैं, इनको निर्देश देने के लिए बीच में कुछ मुख्य कलाकार खड़े रहते हैं, जिनको मेडिया कहा जाता है। ये मुख्य कलाकार होते हैं जो गीत के बीच में बोल देते हैं और गीत के प्रवाह को तय करते हैं। सामान्यतः एक पार्टी में दो मेडिया होते हैं जो बारी-बारी से बोल उठाकर अपनी तरफ के लोगो को गीत के प्रवाह से जोड़ते हैं।
    बोल गीत की वो कड़ी हैं जिसके माध्यम से मेडिया अपने गीत के प्रसंग को श्रोताओं को समझाता हैं। ये या तो पद्य रूप में बताये जाते हैं, या फिर साधारण बोलकर। इनके बिना गीत की दिशा को नही जाना जा सकता और इनको मेडिया द्वारा ही गाया जाता हैं। मेडिया इनके अलावा इन गीतों के आयोजन, गाने वालों को सिखाने, उनके एकत्रितीकरण का इंतज़ाम करता हैं, इस प्रकार उसकी भूमिका इनमें एक मार्गदर्शक के रूप में उभरती है और वो सम्मान का हक़दार बन जाता है, इसलिए दूसरे कलाकार भी मेडिया बनने के लिए संघर्षरत रहते हैं। इनका चयन कलाकारों को करना चाहिए परन्तु गाँव के पंच-पटेल कई बार इनका चयन करते हैं जिसमे वो पक्षपात जैसी चीज़े ले आते हैं जिसका नतीजा कलाकारों की अरुचि के रूप में सामने आता हैं और गीतों का पतन जैसी चीजे सामने आ जाती हैं।
    इसमें भाग लेने वाले गाँवो को अलग-अलग वृत्तांतों पर गायन करने में महारत हासिल है। हर एक गाँव के अपने-अलग गीत हैं, जिनको वे अपने रुचिकर प्रसंगो से तैयार करके दंगल के दौरान प्रस्तुत करते हैं। कुछ लोकप्रिय गाँव और उनके गीत यहाँ दिए गए हैं - गम्भीरा-सीता का बनवास, रामदेव जी की कथा
    1 खोहल्या- बुन्दा राजा कि कथा
    2 गांवड़ी मीणा - गुरु वशिष्ठ बुलाय राम ने सिंहासन बैठाया, कई नाथ मेरे मन की लगन मिटा दे जीत लिए सब भूप यज्ञ मेरो अश्वमेघ यज्ञ करा दे गुरु वशिष्ठ-राम संवाद
    3 परीता - विलोचन राजा को पेट तो बढ़े रात दिन दूजो...
    4 ऐंडा - रूप बदल कर राजा बणग्यो, बढ़ता खागो जाडी को, मन को कांटों कढ़ गयो, धोखेबाज कबाड़ी को शनिदेव का राजा चंद्रदेव से संवाद
    5 ऐंडा चौपड़ पर, भायली मोरू तालिया ने नीबू, नारंगी का फूल झड़ग्या बगिया में ऊंखा एवं अनिरुद्घ के बीच का संवाद
    6 डेकवा - pandvo ka kapat raja uttanpad
    7 पीलोदा - राजा मोरध्वज
    8 शफीपुरा - कीचक वध
    9 झाडौ़दा - हरदोल का भात
    10 नादौती - लव कुश कथा
    11 कहैन्या-पार्टी_गांवडा_मीना-कालिदास की कथा और पद्मावती की कथा
    12.गम्भीरा पार्टी -सीता का बनवास, ढोला मारू की कथा,
    रामदेव जी का ब्यावला, अहिरावण कि कथा।
    इन गीतों को सुनने के लिए दंगलों में कई गाँवो के लोगो के आने से एक हुजूम जम जाता हैं। इस भीड़ का फायदा उठाने के लिए कई राजनेता भी इनका प्रयोग राजनीतिक लाभों के लिए करने लगे हैं और इनमें शिरकत करके लोगो के बीच लोकप्रियता हासिल करते रहते हैं।
    पद दंगल हमें हमारी संस्कृति से जोडे रखने का कार्य करते हैं। पद दंगलों के माध्यम से संस्कृति जीवंत होती है, वहीं आपसी भाईचारा एवं समन्वय बढता है।
    पद दंगल भारतीय संस्कृति को बचाने में सहायक हैं। इस प्रकार के आयोजनों से लोगों में भाईचारा, समाजवाद की भावना, सामाजिक सौहार्द्रता, एकता एवं धार्मिक भावना बढ़ती है। साथ ही लोगों को धर्मलाभ मिलने के साथ-साथ धार्मिक जानकारियाँ भी मिलती हैं।
    विधायक रमेश चन्द मीना ने ऐसे धार्मिक आयोजनों को ग्रामीण संस्कृति की धरोहर की संज्ञा दी। इन्होने पद दंगलों को संस्कृति के परिचायक बताते हुए इनके आयोजनों में बढ़-चढ़ कर भाग लेने का आग्रह किया।
    इनका विस्तार सवाई माधोपुर, दौसा, करौली, धौलपुर, भरतपुर, अलवर व बूंदी के गाँवो में देखा जा सकता हैं। खासकर सवाई माधोपुर व करौली में इनका अधिक प्रचलन है। यहाँ झाडौ़दा, गांवडा मीना राणोली, नादौती, शफीपुरा, डिबसया, फुलवाड़ा, चकेरी, जड़ावता, ढेकवा, सोलतपुरा , आसलगांव,खोहल्या,मुई, गम्भीरा बुन्दी,बिलोता,उखलाना,आदि गाँवो में इनका अधिक प्रचलन हैं।
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