Kamala Sohonie || The First Indian Woman to Receive a PhD in a Scientific Discipline

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  • Опубліковано 1 лют 2025
  • Kamala Sohonie || The First Indian Woman to Receive a PhD in a Scientific Discipline
    कमला भागवत जिनका जन्म और पालन-पोषण एक उच्च शिक्षित परिवार में हुआ था स्कूल में शीर्ष स्थान प्राप्त करते हुए बॉम्बे प्रेसीडेंसी कॉलेज से फिजिक्स एवम केमिस्ट्री से B.Sc. की डिग्री ली। पिता नारायण भगवत और चाचा माधवराव भागवत, दोनों पहले से ही रसायन विज्ञान के छात्रों के बीच प्रतिष्ठित टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ साइंसेज (अब इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस) बैंगलोर में कार्यरत थे।
    और शायद यही कारण था कि युवा कमला में विज्ञान के प्रति रुझान बढ़ने लगा था। इसलिए जब उसने फैसला किया कि वह रसायन विज्ञान भी पढ़ना चाहती है, तो इस से उसके परिवार में किसी को आश्चर्य नहीं हुआ।
    स्नातक होने के बाद कमला ने भारतीय विज्ञान संस्थान, बैंगलोर में मास्टर्स कोर्स के लिए आवेदन किया। यह न केवल उसके लिए एक "पारिवारिक परंपरा" थी, एक सफल वैज्ञानिक बनने के लिए यह उसके सपने का एक महत्वपूर्ण चरण था।
    उस समय, आईआईएससी का नेतृत्व प्रोफेसर सी वी रमन कर रहे थे, जो भौतिकी में पहला एशियाई नोबेल पुरस्कार विजेता थे जो उस वक्त वैज्ञानिक अध्ययन के लिए देश का सर्वश्रेष्ठ संस्थान माना जाता था।
    लेकिन एक Budding Scientist कमला को उस वक्त एक बुरा झटका लगा जब उसे आईआईएससी में प्रवेश से वंचित कर दिया गया था। जबकि स्नातक में उसके उच्च अंक थे, असल में सीवी रामन ने कमला को सिर्फ इसलिए reject कर दिया क्योंकि वह एक लड़की थी। यहां तक कि जब उसके पिता और चाचा ने रामन से, कमला को एक मौका देने का अनुरोध किया, तो रामन ने कथित तौर पर कहा कि "मैं अपने संस्थान में लड़कियों को नहीं लेने जा रहा हूं!"
    लेकिन कमला मज़बूत इरादों से बनी थीं और उन्होनें अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाने का फैसला किया। और खुद जाकर प्रोफेसर रामन से मिली और उनका दाखिला खारिज करने का कारण जानना चाहा।
    शुरुआत में तो, रामन ने कमला और उसके सवालों को नज़र अंदाज़ कर दिया लेकिन जब कमला ने हार नहीं मानी, तो रामन, कमला को आईआईएससी प्रवेश देने के लिए सहमत हो गया लेकिन कुछ शर्तों के साथ।
    और ये शर्तें थी, कि कमला को एक नियमित छात्र के रुप में अनुमति नहीं दी जाएगी। इसके साथ ही उन्हें अपने गाइड के निर्देशानुसार रात 10 बजे तक लैब में काम करना होगा। और वो लैब का माहौल खराब ना करें।
    बाईस वर्षीय कमला ने आईआईएससी में अध्ययन करने में के लिए यह सब स्वीकार किया और बन गई आईआईएससी की पहली महिला छात्र। लेकिन इस घटना से वह बहुत आहत हुई। और भारतीय महिला वैज्ञानिक संघ (IWSA) द्वारा आयोजित एक सम्मान समारोह के दौरान, उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा:
    "वैसे तो सीवी रामन एक महान वैज्ञानिक थे, लेकिन वे बहुत संकीर्ण सोच के थे। मैं उसे कभी नहीं भूल सकती, मेरे साथ ऐसा व्यवहार इसलिए किया गया, क्योंकि मैं एक महिला थी। यह मेरा बहुत अपमान था। महिलाओं के खिलाफ पूर्वाग्रह उस समय बहुत बुरा था। अगर कोई नोबेल पुरस्कार विजेता भी इस तरह से व्यवहार करता है, तो क्या उम्मीद की जा सकती है।"
    आईआईएससी में अपने कार्यकल के दौरान, कमला ने पूरी निष्ठा के साथ काम किया और यहीं पर उन्हें एक ऐसे शिक्षक मिले, जिन्होनें उनके जीवन पर एक अमिट छाप छोड़ी। और वो थे, भारत में सूक्ष्म जीव विज्ञानी अनुसंधान के अग्रदूतों में से एक, श्रीनिवासय्या, जो एक सख्त और determined शिक्षक थे और उन्होंने हमेशा अपने छात्रों को प्रोत्साहित करने का काम किया।
    प्रो श्रीनिवासय्या के मार्गदर्शन में ही कमला ने दूध, दाल और फलियों में पाए जाने वाले प्रोटीन पर काम किया। उनके काम के प्रति उनका समर्पण ही था कि उन्होनें रामन को भी अपनी सोच बदलने के लिए मजबूर कर दिया और साबित कर दिखाया कि महिलाएं वैज्ञानिक शोध में उत्कृष्टता प्राप्त कर सकती हैं।
    1936 में, कमला ने ब्रिटेन की प्रतिष्ठित कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में शोध छात्रवृत्ति प्राप्त की।अगले साल, रमन ने महिला छात्रों के लिए IISc के दरवाजे खोल दिए और कमला ने एक मौन क्रांति लड़ी और जीता भी।
    कमला भागवत विज्ञान के क्षेत्र में Ph.D करने वाली देश की पहली महिला वैज्ञानिक हैं।
    उन्होंने 1939 में भारत लौटने का फैसला किया। महात्मा गांधी की एक अनुयायी, वह ब्रिटिश शासन के खिलाफ राष्ट्रवादी संघर्ष में मदद करना चाहती थी।
    इस समय के दौरान, कमला ने पेशे से अभिनेता एम वी सोहोनी से शादी की और 1947 में मुंबई में ही बस गईं।
    और इस तरह एक महिला वैज्ञानिक ने साबित कर दिया कि अपने सपने पूरा करने से उन्हें कोई नहीं रोक सकता।
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